कल और आज
बीता कल महान झूठ का दिन था – उसकी सत्ता का अन्तिम दिन
– मक्सिम गोर्की
युगों-युगों से इन्सान मकड़ी की तरह, यत्नपूर्वक, तार-दर-तार, पूरी सावधानी से सांसारिक जीवन का मज़बूत मकड़जाल बुनता गया, और झूठ व लालच से इसके पोर-पोर को अधिकाधिक सिक्त करता गया। इन्सान अपने सगे-सहोदर इन्सानों के रक्त-मांस पर पलता रहा। उत्पादन के साधन इन्सानों के दमन का साधन थे – इस मानवद्वेषी झूठ को निर्विकल्प, निर्विवाद सत्य समझा जाता रहा।
और कल यह रास्ता मानवजाति को विश्वयुद्ध के पागलपन तक ले गया। इस दुःस्वप्न की लाल दमक में इस पुरातन झूठ की घिनौनी नग्नता बेनक़ाब हो गयी। अब हम ध्वस्त हो चुकी पुरानी दुनिया को देख सकते हैं। इसके पुराने रहस्य उघड़ चुके हैं और आज अन्धों तक की आँखें खुल गयी हैं और वे अतीत की अवर्णनीय कुरूपता को देख रहे हैं।
आज उस झूठ का हिसाब लगाने का दिन है जो कल राज कर रहा था।
जनता के सब्र के उग्र विस्फोट ने जीवन के जीर्ण-शीर्ण निज़ाम को ध्वस्त कर दिया है और अब वह अपने पुराने रूप में दुबारा कभी स्थापित नहीं हो सकता। पुराने जीर्ण-शीर्ण अतीत का पूरी तरह नाश नहीं हुआ है, लेकिन आने वाले कल में यह हो जायेगा।
आज काफ़ी ख़ौफ़ छाया हुआ है लेकिन यह स्वाभाविक है और इसे समझा जा सकता है। क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि पुरानी व्यवस्था के तेज़ ज़हर – शराब और सिफ़लिस – से ग्रस्त लोग उदार नहीं हो सकते? क्या यह स्वाभाविक नहीं कि लोग आज भी चोरी करेंगे – अगर चोरी ही कल का बुनियादी नियम रही है? क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि दसियों, सैकड़ों, हज़ारों लोग मारे जायेंगे, अगर वे बरसों से दसियों लाख की तादाद में मारे जाने के आदी हो गये हैं? आज का बोया बीज कल की फ़सल बनता है।
हमें समझना चाहिए कि आज की गर्द और कीचड़ और अव्यवस्था के बीच अतीत के मज़बूत, लौह जाल से मानवजाति की मुक्ति का महान कार्य शुरू हो चुका है। यह बच्चे के प्रसव जितना ही कठिन और पीड़ादायक है; लेकिन यह कल की बुराई की मृत्यु है, जो कल के मानव के साथ अपनी अन्तिम साँसें ले रही है।
ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि न्याय की जीत की निर्णायक लड़ाई में आगे बढ़ रहे लोगों का नेतृत्व सबसे कम अनुभवी और सबसे कमज़ोर योद्धा, यानी रूसी मेहनतकश, कर रहे हैं – एक पिछड़े देश के लोग, दूसरे किसी भी देश के मुक़ाबले अपने अतीत की मार से बहुत अधिक जर्जर। अभी कल तक सारी दुनिया उन्हें अर्द्धबर्बर के रूप में देखती थी, और आज प्रायः भूख से मरते हुए वे पुराने और अनुभवी सैनिकों के पूरे जोशो-ख़रोश और साहस से जीत या मृत्यु की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
हर उस आदमी को जो सच्चे मन से यक़ीन करता है कि स्वतन्त्रता, सुन्दरता और तर्कसंगत जीवन जीने की मानवजाति की आकांक्षा बेकार का सपना नहीं, बल्कि वह असली ताक़त है जो जीवन के नये-नये रूपों का सृजन कर सकती है, एक ऐसा उत्तोलक है जो पूरी दुनिया को उठा सकता है – ऐसे हर ईमानदार आदमी को आज रूस के उत्कट क्रान्तिकारियों द्वारा की जा रही गतिविधियों के सार्वत्रिक महत्व को स्वीकारना ही चाहिए।
क्रान्ति की व्याख्या मानवजाति के शिक्षकों द्वारा प्रणीत और प्रतिपादित महान विचारों और धारणाओं को जीवन में समाहित करने की दिशा में किये गये एक महान प्रयास के रूप में की जानी चाहिए। कल तक यूरोप के समाजवादी विचार रूसी जनता का मार्गदर्शन करते थे; आज रूस का मेहनतकश यूरोपीय विचारों की विजय के लिए उत्कट प्रयास कर रहा है।
अगर दुश्मनों से घिरे, भूख से निढाल, और संख्या में कम, ईमानदार रूसी क्रान्तिकारी पराजित हो जाते हैं तो इस भीषण विपदा की ज़िम्मेदारी यूरोप के पूरे मेहनतकश वर्ग के कन्धों पर भारी पड़ेगी।
रूसी मज़दूर को यक़ीन है कि उसके आत्मिक भाई-बन्धु रूसी क्रान्ति का गला घोंटने की इजाज़त नहीं देंगे, कि वे उस पुरानी व्यवस्था को नया जीवनदान दिये जाने की इजाज़त नहीं देंगे जो मर रही है, और जो तिरोहित हो जायेगी – बशर्ते कि यूरोप का क्रान्तिकारी विचार आज के महती कार्यभारों को समझे।
आइये और हमारे साथ नये जीवन की तरफ़ प्रयाण कीजिये, जिसे सिरजने का काम हम कर रहे हैं, और इसके लिए न ख़ुद को रत्तीभर छूट दे रहे हैं और न ही किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के साथ ढिलाई बरत रहे हैं। श्रम के महान आनन्द और प्रगति की ज्वलन्त कामना में चूकें करते, यातनाएँ सहते, अपने कार्यों की ईमानदार विवेचना का काम हम इतिहास पर छोड़ते हैं। पुरानी व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष में और नयी व्यवस्था लाने के हमारे उद्यम में हमारा साथ दें। मुक्त और सुन्दर जीवन की ओर आगे बढ़ें!
(गोर्की ने इसे 1917 की अक्टूबर क्रान्ति के तुरन्त बाद लिखा था)
मज़दूर बिगुल, जून 2021
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