फ़िलिस्तीनी मज़दूरों ने ज़ायनवादी, रंगभेदी इज़रायली मालिक को घुटनों पर झुकाया
– लता
फ़िलिस्तीन की ज़मीन के बहुत बड़े हिस्से पर ज़ायनवादी इज़रायलियों ने क़ब्ज़ा कर अपनी बस्तियाँ बसा ली हैं और रोज़ाना ज़मीन हड़पते जा रहे हैं। फ़िलिस्तीन की जनता हर दिन हर पल अपने देश-ज़मीन-हक़ और अधिकार के लिए इज़रायली ज़ायनवादियों से जूझ रही है। यह संघर्ष सीधे-सीधे अपने देश की ज़मीन और घरों पर इज़रायलियों के ज़बरन क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ संघर्ष से लेकर अन्य कई रूप अख़्तियार करता है। फ़िलिस्तीन की आबादी इज़रायल में सबसे सस्ती श्रम शक्ति के रूप में भी काम करती है। इज़रायल अपनी ज़हरीली ज़ायनवादी सोच के तहत फ़िलिस्तीनियों को बेघर कर देता है, उन्हें जेलों में बन्द कर देता है और सड़कों पर मौत के घाट उतार देता है। सड़कों पर गोलियों से भूनते समय या जेलों में ठूँसते समय यह बच्चों, बूढ़ों और औरतों में कोई फ़र्क़ नहीं करता।
ये ज़ायनवादी इज़रायली, जिनसे हमारे देश की संघी आबादी भी नये-नये तरीक़े सीखती है, ऐसे घृणित, मानवद्रोही और कुत्सित नारों या नीतियों का निर्माण करते हैं, जिनकी कल्पना कोई इन्सान अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं कर सकता। इन्हीं नारों में से हाल में एक नारा आया था “एक को गोली दागो और दो को मारो” यानी गर्भवती महिलाओं को चुन-चुनकर मौत के घाट उतारो। आप सोच ही सकते हैं कि ऐसी मानवद्रोही सोच रखने वाले इज़रायली मालिक अपने कारख़ानों के फ़िलिस्तीनी मज़दूरों के साथ कैसा व्यवहार करते होंगे। लेकिन ऐसे रंगभेदी माहौल तथा ज़ायनवादी क़ानून होने के बावजूद फ़िलिस्तीनी मज़दूरों ने अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष का साथ नहीं छोड़ा और वाटर फ़िल्टर बनाने वाली फ़ैक्टरी के मालिक को अपनी हड़ताल और एकजुटता के बल पर झुका दिया।
पहली जनवरी को विदेशों में निर्यात (एक्सपोर्ट) के लिए पानी का फ़िल्टर बनाने वाली यामित शिनोन कम्पनी में काम करने वाले 75 मज़दूरों ने काम की अमानवीय परिस्थितियों, कम मज़दूरी, पीएफ़ फ़ण्ड में धान्धली आदि मुद्दों को लेकर फ़िलिस्तीन न्यू फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन के नेतृत्व में हड़ताल कर दी। काम करने की बेहद ख़राब परिस्थितियों के अलावा वेतन तो बेहद कम थे ही, साथ ही कम्पनी ने 2016 से उनके पीएफ़ फ़ण्ड को फ़्रीज़ कर दिया था और फिर मज़दूरों को बिना बताये उस फ़ण्ड से दस लाख डॉलर ख़र्च कर दिया। सात दिन तक हड़ताल जारी रखने पर भी कम्पनी का मालिक टस से मस नहीं हुआ बल्कि बेहद अहंकार भरा जवाब लिखा, जिसमें चिट्ठी पर बड़े अक्षरों में लिखा था ‘नहीं’ और साथ में लिखा था कि फ़िलिस्तीनी मज़दूर बस उतने के ही क़ाबिल हैं जितना उन्हें मिल रहा है।
बदले में मज़दूरों ने भी कमर कस ली। न केवल हड़ताल जारी रखी बल्कि भरसक अपने समर्थन में लोगों को जुटाना शुरू किया। मालिक को पुलिस, प्रशासन और क़ानून का अहंकार होता है। यह पूँजीपति भी इसी अहंकार के बल पर अपने मुनाफ़े की दर बनाये रखने के लिए कारख़ाना जल्द से जल्द खोलने का प्रयास करने लगा, मज़दूरों को नौकरी से निकालने का भय दिखाया और नयी भर्तियों की धमकियाँ दी। यहाँ मज़दूरों के बीच वर्ग एकता का ज़बर्दस्त उदाहरण देखने को मिलता है। मज़दूर एकजुट खड़े रहे और सभी स्तरों पर अपने संघर्ष के विस्तार तथा प्रचार में लगे रहे। न केवल फ़ैक्टरी के बाहर के मज़दूरों के बीच प्रचार-प्रसार किया गया बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस संघर्ष के लिए समर्थन जुटाया गया। इस हड़ताल को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी समर्थन मिला। उसकी कम्पनी यामित को अन्तर्राष्ट्रीय बहिष्कार का समाना करना पड़ा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए बहिष्कार ने उसके निर्यात आधारित व्यवसाय को इतनी बुरी तरह प्रभावित किया कि उसे हड़ताली मज़दूरों से अपने अपमान भरे पत्र के लिए माफ़ी माँगनी पड़ी। मज़दूरों की एकता और लगातार संघर्ष जारी रखने का ही नतीजा था कि कम्पनी के मालिक को झुकना पड़ा। मज़दूरों ने सारी विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए 19 दिनों तक हड़ताल जारी रखी। अन्त में मालिक मज़दूरों से यह समझौता करने को राज़ी हुआ :
– मज़दूर काम पर लौट जायेंगे और कम्पनी के साथ तीन महीने के दौरान समझौता वार्ता जारी रखेंगे।
– इस दौरान मज़दूरों को वेतन में 200 डॉलर बढ़कर मिलेगा।
– सामान्य तौर पर इज़रायली मज़दूरों को वार्षिक तौर पर जुलाई में मिलने वाले सवेतन अवकाश अब फ़िलिस्तीनी मज़दूरों को भी दिये जायेंगे।
– रिटायरमेंट के बाद सेवा लाभ दिये जायेंगे।
– मज़दूरों की समिति की रज़ामन्दी के बिना कम्पनी नये मज़दूरों को काम पर नहीं रख सकती।
हालाँकि इन माँगों को अभी इज़रायली न्यायालय से पास होकर पक्का होना है जिसमें तीन महीने लगेंगे, लेकिन फिर भी यह एक बड़ी जीत है। इन मज़दूरों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि एकता और सही राजनीति और आन्दोलन की बेहतर रणनीति मज़दूरों के संघर्ष को मज़बूत बनाती है।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2021
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