उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर ज़िले में बिजली के बिलों की धाँधली
जनदबाव से हरकत में आया प्रशासन
– बिगुल संवाददाता
उत्तर प्रदेश की फ़ासीवादी योगी सरकार आम जनता की जेब काटकर अपने आक़ाओं की तिजोरियाँ भरने का एक भी मौक़ा छोड़ने को तैयार नहीं है। उत्तर प्रदेश के तमाम ज़िलों में ठेकेदार की लापरवाही के चलते बिजली के फ़र्ज़ी बिलों का बोझ लाद देने की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। पिछले दिनों प्रदेश के अम्बेडकरनगर ज़िले की आलापुर तहसील में सैकड़ों गाँवों में परिवारों को पचास हज़ार से एक लाख रुपये के फ़र्ज़ी बिल भेजे गये तथा एफ़आईआर और कनेक्शन काटने की धमकी देकर लोगों से ज़बरन वसूली करने की कोशिश की गयी। कई जगहों पर लोगों के कनेक्शन काटकर डिसकनेक्शन की पर्ची थमा दी गयी। जब भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से इस मामले की जाँच-पड़ताल और सर्वे करना शुरू किया गया तो पूरा मामला सामने आया। बहुत से परिवारों को पुराने कनेक्शन को रद्द किए बग़ैर नया कनेक्शन दे दिया गया जिससे उनके परिवार में दो-दो बिल आने लगे। इतना ही नहीं, जल्दबाज़ी में मीटर लगाने के कारण मीटर रीडिंग में भी भयंकर गड़बड़ियाँ हुई जिससे बिल कई गुना बढ़कर आने लगा। यह सारा काम ठेकेदारों के माध्यम से कराया गया।
कई गाँवों में 4 वर्ष या उससे कम समय पहले ही मीटर लगाया गया था और विद्युत विभाग द्वारा कहा गया था कि ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को निःशुल्क कनेक्शन दिया जायेगा तथा 1 वर्ष तक एक बल्ब जलाने का कोई भी शुल्क नहीं लगेगा। लेकिन अन्य विद्युत उपभोक्ताओं के साथ-साथ इन परिवारों का भी बिजली का बिल 10 हज़ार से 50 हज़ार और कई मामलों में 1 लाख रुपये से ऊपर भेजा गया था। कई लोगों के मीटर को किसी दूसरे के परिवार में लगा दिया गया था। लेकिन सबसे बड़ी समस्या मानक से अधिक विद्युत बिल की ही थी। इन गाँवों में अधिकतर लोग मज़दूर एवं ग़रीब किसान हैं जो किसी तरह मज़दूरी करके अपना जीवन-यापन करते हैं और छप्पर डालकर या झोपड़ी के मकान में रहते हैं, केवल एक ही बल्ब जलाते हैं व मोबाइल चार्ज करते हैं। इन लोगों का भी बिजली का बिल ग़लत तरीक़े से भेजा जा रहा था एवं जमा करने के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा था। गाँव के लोगों के शिकायत करने पर भी विभाग द्वारा इस पर कोई सुनवाई नहीं की जा रही थी। साथ ही लोगों से विद्युत चार्ज के अलावा अन्य कई चार्ज भी लिये जा रहे थे।
इन मुद्दों को लेकर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कई गाँवों में पर्चा निकालकर अभियान की शुरुआत की तथा 3 जनवरी को स्थानीय अधिशासी अभियन्ता को तथा 5 मार्च 2020 को आलापुर के उपज़िलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया था। लेकिन प्रशासन द्वारा केवल आश्वासन का झुनझुना थमा दिया गया। इसके बाद लॉकडाउन की वजह से लोगों के सामने संकट की स्थिति और गहरा गयी। ग़ौरतलब है कि पूँजीपतियों की चाकरी करने वाली मोदी सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 50 पूँजीपति घरानों का 68,607 करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ़ किया था। लेकिन जब बात जनता के संकट का बोझ कम करने की आती है तो सरकार राजकोषीय घाटे का रोना रोने लग जाती है।
जुलाई महीने से ही लोगों से बिल जमा कराने के लिए दबाव बनाया जाने लगा था। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से जब इस मुद्दे पर संघर्ष की शुरुआत की गयी तो इलाक़े में बहुत सारे दलाल भी सक्रिय होकर लोगों से सम्पर्क करने लगे कि आप बिजली बिल का आधा दे दीजिए, हम आपका बिल कम करवा देंगे। लेकिन ग्रामीणों ने भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ खड़े होकर संघर्ष को आगे बढ़ाया। 2 महीने तक आसपास के लगभग 30 गाँवों में जनसम्पर्क कर लोगों से हस्ताक्षर करवाया गया तथा हज़ारों की संख्या में 15 अक्टूबर को तहसील पर धरना-प्रदर्शन कर ऊर्जा मंत्री, ज़िलाधिकारी और अधिशासी अभियन्ता को ज्ञापन सौंपकर पूरे मामले का समाधान करने के लिए दबाव बनाया गया।
ज्ञापन में प्रशासन से यह माँग की गयी थी कि जनता को ऑफ़िस का चक्कर कटवाने की बजाय हर गाँव में कैम्प लगाकर प्रशासन ख़ुद ही लोगों के बीच जाकर पूरे मामले को हल करे। लोगों की एकजुटता और संघर्ष के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और अगले ही दिन विद्युत विभाग द्वारा शेड्यूल जारी किया गया। 19 अक्टूबर से 5 नवम्बर तक अलग-अलग गाँवों में कैम्प लगाकर इन समस्याओं को हल किया गया। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के वालण्टियर इस पूरी प्रक्रिया के दौरान अपने दस्ते बनाकर चौकसी बरतने के लिए इन कैम्पों पर तैनात रहे। परिणाम यह हुआ कि जिन लोगों को 50 हज़ार से एक लाख तक के फ़र्ज़ी बिल का भुगतान करने के लिए बाध्य किया जा रहा था, प्रशासन ने ख़ुद उनके गाँवों तक पहुँच कर बिल में सुधार किया और ज़्यादातर लोगों को 3000-5000 के बीच में बिल भुगतान करना पड़ा।
वास्तव में इस प्रकार की समस्याएँ बिजली विभाग को निजी हाथों में सौंपने की क़वायद की वजह से उत्पन्न हुई हैं जिससे लोगों को इन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2015 में आलापुर तहसील क्षेत्र में राजीव गाँधी विद्युतीकरण योजना के तहत मीटर लगाया गया था जिसका कार्य ठेके पर कराया गया था जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा बटोर लेने की कोशिश में ग़लत तरीक़े से मीटर फ़ीड कर दिया गया। इसके अलावा आलापुर तहसील के 472 गाँवों की ज़िम्मेदारी सँभालने वाले विद्युत विभाग में कर्मचारियों की संख्या भी काफ़ी कम है। कर्मचारियों की संख्या कम होने की वजह से लोगों को बहुत दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों की समस्याओं का निदान न होने की वजह से लोगों का ग़ुस्सा सरकारी कर्मचारियों के ऊपर होता है। दूसरी ओर सरकार कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाने की बजाय सरकारी विभागों के कर्मचारियों के सर ठीकरा फोड़ कर, चोर दरवाज़े से निजीकरण की नीतियों को अंजाम देती रहती है। 20 गाँवों में आन्दोलन की जीत के बाद तमाम अन्य गाँवों में भी भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ता इन सवालों को लेकर अभियान चलाने में जुट गये हैं। साथ ही लोगों को संगठित करके सत्ताधारी योगी सरकार द्वारा बिजली विभाग के निजीकरण करने के ख़िलाफ़ भी लोगों को संगठित किया जा रहा है ताकि इस लूट को क़ानूनी जामा पहनाने की सरकार की कोशिश को नाकाम किया जा सके।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020
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