पुतीलोव कारख़ाने के मज़दूरों पर गोलीबारी और उसके विरुद्ध संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-6)
प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में छठी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं। बोल्शेविकों ने अपनी बात लोगों तक पहुँचाने और पूँजीवादी लोकतन्त्र की असलियत का भण्डाफोड़ करने के लिए संसद के मंच का किस तरह से इस्तेमाल किया इसे लेखक ने अपने अनुभवों के ज़रिए बख़ूबी दिखाया है। यहाँ हम जो अंश प्रस्तुत कर रहे हैं उनमें उस वक़्त रूस में जारी मज़दूर संघर्षों का दिलचस्प वर्णन होने के साथ ही श्रम विभाग तथा पूँजीवादी संसद की मालिक–परस्ती का पर्दाफ़ाश किया गया है जिससे यह साफ़ हो जाता है कि मज़दूरों को अपने हक़ पाने के लिए किसी क़ानूनी भ्रम में नहीं रहना चाहिए बल्कि अपनी एकजुटता और संघर्ष पर ही भरोसा करना चाहिए। इसे पढ़ते हुए पाठकों को लगेगा कि मानो इसमें जिन स्थितियों का वर्णन किया गया है वे हज़ारों मील दूर रूस में नहीं बल्कि हमारे आसपास की ही हैं। ‘मज़दूर बिगुल’ के लिए इस श्रृंखला को सत्यम ने तैयार किया है।
जुलाई की शुरुआत से, सेण्ट पीटर्सबर्ग की फ़ैक्टरियों में हड़ताल की गति काफ़ी तेज़ी से बढ़ी। 1 जुलाई को लैगेसिप्पेन, लेसनर, एरिक्सन, सीमेंस-शुकर्ट, ऐवाज़ और दूसरी फ़ैक्टरियों के मज़दूरों ने काम करना छोड़ दिया। फ़ैक्टरियों को छोड़ने से पहले, मीटिंग की गयीं और बाकू के मज़दूरों पर अत्याचार के ख़िलाफ़ प्रतिवाद करने के फ़ैसले लिये गये। “बाकू के कॉमरेडों,” सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूरों ने ऐलान किया, “हम तुम्हारे साथ हैं, और तुम्हारी जीत हमारी जीत होगी।” कई दूसरी संस्थाओं में मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा नहीं की, मगर एक घण्टा पहले काम छोड़ दिया और मीटिंगों तथा बाकू के मज़दूरों के लिए चन्दे की व्यवस्था की।
पुतिलोव के मज़दूरों द्वारा फ़ैक्टरी के अहाते में आयोजित की गयी मीटिंग में बारह हज़ार लोग उपस्थित थे। लेकिन जैसे ही पहले वक्ता ने दो शब्द कहे, चिल्लाने की आवाज़ आयी “पुलिस” और मीटिंग कोई फ़ैसला लेने के पहले ही बिखर गयी। दो दिनों के बाद, पुतिलोव के मज़दूर बाकू की घटनाओं के सम्बन्ध में एक मीटिंग के लिए फिर से जमा हुए और इस मीटिंग के कारण ऐसी घटनाएँ सामने आयीं, जो सेण्ट पीटर्सबर्ग के जुलाई आन्दोलन में एक नया मोड़ साबित हुईं।
पुतिलोव के मज़दूरों ने कार्य-दिवस समाप्त होने के दो घण्टे पहले काम छोड़ दिया और लगभग 12,000 मज़दूर मीटिंग में शरीक हुए। दो वक्ताओं ने बाकू के मज़दूरों की परिस्थितियों के बारे में कहा और मज़दूरों को हड़तालों की मदद में सहयोग करने तथा प्रतिवाद में एकदिवसीय हड़ताल की घोषणा करने के लिए पुकार लगायी।
पुतिलोव कारख़ाने के मज़दूरों पर गोलीबारी
मीटिंग समाप्त होने पर मज़दूर गेटों की ओर बढ़े और उन्हें खोल दिये जाने की माँग की। मगर जब वे खोले गये तो यह मज़दूरों को बाहर जाने देने के लिए नहीं बल्कि घुड़सवार और पैदल पुलिस को अन्दर आने देने के लिए किया गया। तब गेटों को फिर से बन्द कर दिया गया और पुलिस, जो फ़ैक्टरी के पास छिपे हुए थे, को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बुलाया गया, हालाँकि गेट बन्द होने पर ऐसा हो ही नहीं सकता था। मज़दूरों ने विरोध किया और जवाब में पुलिस ने गोलियों की बौछार कर डाली। “बैरिकेड की ओर” की चीख़ के साथ, भीड़ अहाते की एक छोर की ओर दौड़ पड़ी और वहाँ से पुलिस पर पत्थर चलाये। पुलिस ने दूसरी राउण्ड फ़ायरिंग की और तब घायलों की चीख़ों के बीच उसने एक-एक करके लोगों को गिरफ़्तार करना शुरू किया।
मज़दूरों के कथन के अनुसार, दो लोग मारे गये, लगभग पचास घायल हुए और एक सौ से अधिक लोगों को पुलिस स्टेशन ले जाया गया। जैसे ही मुझे गोली चलने की सूचना मिली, मैं कारख़ाने पर चला गया। मज़दूरों की एक भीड़ ने मुझे गोलीयाँ चलने, तलवारों व चाबुक के इस्तेमाल और गिरफ़्तारियों के बारे में बताया; मगर जनहानि की असल संख्या कोई भी नहीं जानता था। जैसा कि इस तरह के हालात में सामान्य है, भीड़ द्वारा पूरी तरह भिन्न अफ़वाहें फैलायी गयीं, लेकिन पुलिस की कार्रवाई को लेकर लोगों में आक्रोश की बात की जाये तो सभी एकमत थे।
कारख़ाने पर
मैंने निश्चित जानकारी के लिए कार्य प्रबन्धन से आवेदन किया, लेकिन जिनसे भी बातें कीं, वे ख़ुद के वचनबद्ध होने से भयभीत थे और पूरे वार्तालाप से दूर रहना चाहते थे। अस्पताल में डरे हुए मेडिकल असिस्टेण्ट ने कह दिया कि उसने कुछ नहीं देखा और वहाँ किसी भी मृत या घायल को नहीं ले जाया गया था। कई मज़दूरों से सवालों को दोहराने के बाद मैं अन्त में जाकर तथ्यों तक पहुँचने में सफल हुआ।
कार्यस्थल से मैं गिरफ़्तार किये गये लोगों की नियति की जाँच करने पुलिस स्टेशन गया। एक दर्जन पूरी तरह हथियारों से लैस पुलिस अफ़सरों ने प्रिस्ताव* के कमरे में भीड़ लगा दी और आश्चर्य के साथ उस अनुरोध को सुन रहे थे, जिसके साथ मैंने कई सारे सवालों के तुरन्त जवाब दिये जाने की माँग की। मैंने पूछा कि निहत्थे मज़दूरों पर गोली चलाने का आदेश किसने दिया, कितने लोग मारे गये और कितने लोगों को गिरफ़्तार किया गया, और किस आरोप पर।
प्रिस्ताव ने कहा कि वह किसी अंजान व्यक्ति को स्पष्टीकरण देने के लिए बाध्य नहीं था और यह कि पुलिस की कार्रवाई में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को भी नहीं था। जब मैंने उसे अपना डिप्टी का कार्ड दिखाया तो वह कुछ हद तक पराजित हो गया, और उसने शहर के गवर्नर को फ़ोन लगाया, जिसने कड़े आदेश दिये कि मुझे कोई सूचना ना दी जाये।
तब पुलिस अधिकारियों ने मुझे धक्का देकर स्टेशन से बाहर निकाल दिया और गिरफ़्तार किये गये मज़दूरों से बातचीत करने की अनुमति देने से मना कर दिया। यह बिल्कुल साफ़ था कि मज़दूरों को बुरी तरह पीटा जा रहा था; कई मज़दूर फ़र्श पर पड़े हुए थे, इतने कमज़ोर थे कि ना ही खड़े हो पा रहे थे और ना ही बैठ पा रहे थे।
घटना की छाप, घायलों का कष्ट, पुलिस का रोबदार रवैया और मज़दूरों के बीच आतंक और आक्रोश को अपने मन में भरकर रात के मेरे व्यावहारिक कार्य के लिए मैं प्राव्दा के दफ़्तर गया। मैंने जो कुछ भी देखा था, उसे वहाँ पर दर्ज कर दिया और अख़बार के लिए एक संक्षिप्त रिपोर्ट निकाली। उसी समय हमने लिक्विडेशनिस्ट अख़बार देन (दी डे), जो उसी प्रेस का इस्तेमाल करते थे, के सम्पादकों को सूचित किया।
अगले दिन प्राव्दा घटनाओं के एक सम्पूर्ण विवरण और उनके महत्व को विस्तार से बताते हुए एक छोटे नोट के साथ प्रकाशित हुआ। सामग्री को वह जगह दी गयी जो आमतौर पर प्रमुख लेखों को दी जाती थी।
गृह मन्त्री जुंकोवस्की से मुलाक़ात
रात के समय मैंने आन्तरिक मामलों के मन्त्रालय को टेलीफ़ोन किया और पुतिलोव की घटना पर सवाल का सामना करने को कहा। मालकाकोव नगर के बाहर थे और उनके असिस्टेण्ट, जुंकोवस्की, ने मुझे एक मैसेज भेजा, यह कहते हुए कि वे मुझसे अगली सुबह 8 बजे उनके घर पर मिलेंगे।
नियुक्त घण्टों के कुछ मिनट बाद, मैं सेर्गेएव्सकया स्ट्रीट में उनके घर पहुँचा। “मुझे देर हो गयी,” मैंने शुरू किया, “क्योंकि सारी रात मुझे ट्रूडोवाया प्राव्दा पर आपके छापा मारने वालों का सामना करना पड़ा।” इस बहाने से जनरल अचानक असुविधा महसूस करने लगे।
“अवश्य ही आपके पास समय नहीं होगा, आप हमेशा फ़ैक्टरी में मज़दूरों को हड़ताल करने के लिए भड़काते रहते हैं। मैं हैरान हूँ कि आपको पुतिलोव कार्यस्थल में प्रवेश करने की अनुमति दे दी गयी। आप राज्य दूमा के एक डिप्टी हैं, आपका काम क़ानून बनाना है – इसीलिए आपको निर्वाचित किया गया है – लेकिन इसके बजाय आप अपना समय वर्कशॉपों में, साजिशें करने में, पर्चे निकालने में और एक ऐसा अख़बार प्रकाशित करने में बिताते हैं, जो उसके पाठकों को आपराधिक कार्य करने के लिए उकसाता है।” उन्होंने ट्रूडोवाया प्राव्दा के नवीनतम अंक की ओर इशारा किया, जो टेबल पर पड़ा हुआ था और आगे बढ़ गये : “मैंने आप पर और इस अख़बार पर मुक़दमा दायर करने के लिए एक विशेष आयोग को अनुमति दे दी है।”
“यह पहली बार नहीं है कि आपके किसी ना किसी क़ानून के अन्तर्गत मुझ पर मुक़दमा चलाया जा रहा है,” मैंने जवाब दिया, “और मुझे पता है कि आप ऐसा कर सकते हैं, मगर अभी मैं यहाँ किसी दूसरे उद्देश्य से आया हूँ। मुझे बताइए कि पुलिस ने किस अधिकार से पुतिलोव मज़दूरों पर गोलियाँ बरसायीं; मैं आपके जवाब को सेण्ट पीटर्सबर्ग की दूसरी फ़ैक्टरियों और कार्यस्थलों के मज़दूरों तक पहुँचाऊँगा।”
“वहाँ एक भी गोली नहीं चलायी गयी,” उन्होंने तेज़ी से कहा, “पुलिस ने ख़ाली कारतूस के दो राउण्ड चलाये।”
हम दोनों उठे और टेबल के दोनों तरफ़ से एक-दूसरे की ओर देखते हुए खड़े हो गये। “हम मज़दूरों को पुलिस पर पत्थर नहीं चलाने देंगे।” वे आगे बढ़े, “पुलिस के पास राइफ़ल और तलवार हैं और आने वाले दिनों में इस तरह की परिस्थितियों में वे ज़रूर गोली चलायेंगे। इसीलिए तो उन्हें हथियारों से लैस किया गया है।”
“मुझे हमारे मन्त्रियों से किसी और जवाब की उम्मीद नहीं थी,” मैंने जवाब दिया, “मैं मज़दूरों को सूचित करूँगा। आप मुझे फ़ैक्टरियों में जाने से नहीं रोक सकते। मज़दूरों द्वारा निर्वाचित किया गया एक डिप्टी कभी भी अपने आप को केवल दूमा के भाषणों तक ही सीमित नहीं करेगा जबकि मज़दूरों को आपके पुलिस स्टेशनों में पीटा जा रहा है।”
मैंने जल्द ही बातचीत ख़त्म कर दी ज़ार के फ़ायरिंग-स्क्वाड के प्रमुख के पास से चला गया।
जुंकोवस्की के साथ मेरे इण्टरव्यू का एक विवरण प्राव्दा में प्रकाशित हुआ; वह अंक ज़ब्त कर लिया गया। मगर इसके अगले अंक में, प्राव्दा ने इसे फिर से छापा; हम लोग दृढ़संकल्पी थे कि मज़दूरों को यह जानना चाहिए कि पुतिलोव के कार्यस्थलों पर गोलियाँ चलाना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि दमनकारी तरीक़ों का एक हिस्सा था, जिसे लागू करने के लिए ज़ार की सरकार तुली हुई थी।
पुतिलोव कार्यस्थलों पर गोलियाँ चलने की ख़बर ने सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूरों पर ज़बरदस्त प्रभाव डाला। उनमें उतना ही ज़्यादा आक्रोश था, जितना लीना की गोलियाँ चलने की ख़बर के कारण था। गुप्त पुलिस, जिसने सभी चीज़ों को “आपराधिक आन्दोलन” पर ला दिया था, ने यह रिपोर्ट की कि “पुतिलोव मज़दूरों पर गोलियाँ चलने के बारे में मज़दूरों के छापेखाने में लेखों के प्रकाशन ने जनता पर एक छाप छोड़ी है, जो अपनी तीव्रता और प्रभाव के मामले में एक अपवाद है।”
पुलिस ने इस आग को सीमित रखने के प्रयास किये। गोली चलने की ख़बर वाली प्राव्दा की सभी कॉपियों को ज़ब्त कर लिया गया, हालाँकि कोई क़ानूनी आदेश जारी नहीं किया गया था। ऐसा केवल सड़कों पर ही नहीं हुआ; नारवा जि़ले में रहने वाले सभी अख़बार विक्रेताओं के घरों में भी तलाशियाँ ली गयीं। प्राव्दा की जिस कॉपी पर पुलिस के हाँथ पड़ते, वे उसे ले लेते थे।
“यूनियन ऑफ़ रशियन पीपल” ने मज़दूरों के ख़ून की माँग की
ब्लैक हण्ड्रेड्स ने ख़तरे को भाँप लिया और ज़ार और पितृभूमि तथा क्रान्तिकारी आन्दोलन के सभी निशानों को ख़त्म करने के लिए अपनी ड्यूटी निभाने के लिए पुलिस को बुलाया। “यूनियन ऑफ़ रशियन पीपल” का अंग, रुशकोए ज़नामया, ने “फाँसी के तख़्ते की ओर बादायेव” नामक अपने एक लेख में ऐतिहासिक रूप से ख़ून की माँग की।
गोली चलने के बाद वाले दिन, पूरे सेण्ट पीटर्सबर्ग में हड़तालें हुईं; कम से कम 70,000 लोगों ने काम बन्द किया। विंकलर वर्क्स के मज़दूरों ने अपने प्रस्ताव में ऐलान किया : “इस नये ख़ूनी-स्नान की ख़बर सुनने पर, हमने काम शुरू ना करने की बल्कि हड़ताल द्वारा इसका जवाब देने की प्रतिज्ञा ली है। हमारा आक्रोश शब्दों से परे है और हमने प्रतिज्ञा ली है कि अब हम ऐसी चीज़ों को सहन नहीं करेंगे…।” अगले दिन, प्राव्दा इस तरह के प्रस्तावों से भरा हुआ था और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ लगी हुई थी। हड़तालियों ने अपने कॉमरेडों को आन्दोलन में शामिल होने के लिए पुकारते हुए दूसरी फ़ैक्टरियों के चारो ओर मार्च किया और प्रदर्शन बर्फ़ के गोले की तरह तेज़ी से बढ़ गया।
सेण्ट पीटर्सबर्ग के मॉस्को जि़ले के प्रदर्शन ख़ास तौर पर तूफ़ानी थे; सभी कार्यस्थल और फ़ैक्टरियाँ बन्द थीं और मज़दूर बाहर सड़कों पर निकले हुए थे। सभी सराय और सरकारी वोदका की दुकानें मज़दूरों की माँग पर बन्द कर दीं गयीं और हाट की सभी दुकानों को बन्द करना पड़ा क्योंकि असिस्टेण्टों ने प्रदर्शन में शामिल होने के लिए काम बन्द किया था। दोपहर के आस-पास, एक विशाल भीड़ ने क्रान्तिकारी गीत गाते हुए पुतिलोव कार्यस्थल की ओर मार्च किया, भीड़ के आगे एक लाल झण्डा ले जाया जा रहा था।
भीड़ का सामना पुतिलोव रेलवे साइडिंग पर पुलिस से हो गया, जिसने गोलियों की बौछार कर दी; प्रदर्शनकारी तितर-बितर नहीं हुए, बल्कि पत्थरों से इसका जवाब दिया। करीब पन्द्रह मिनट तक चलने वाले इस संघर्ष के बाद पुलिस को भगा दिया गया, क्योंकि वे अपनी आख़िरी कारतूस को फ़ायर कर चुके थे। चार मज़दूर घायल हुए और उन्हें अस्पताल ले जाया गया।
दूसरी झड़प वीबोर्ग जि़ले में हुई। ऐवाज़ मज़दूरों के नेतृत्व में एक बड़ा प्रदर्शन सम्प्सोनिव्स्की प्रॉस्पेक्ट के समानान्तर चलते हुए शहर के केन्द्र तक मार्च कर रहा था और तब पुलिस उनके रास्ते में रुकावट पैदा करने की कोशिश कर रही थी। गोलियाँ चलायी गयीं और पत्थर फेंके गये, मगर सौभाग्यवश कोई घायल नहीं हुआ और भीड़ को पीछे सड़क के किनारे धकेल दिया गया। शहर के सभी कोनों में दिनभर पुलिस के साथ छोटी-छोटी मुठभेड़ें हुईं।
सेण्ट पीटर्सबर्ग में बैरिकेडों पर लड़ाई
उसी दिन बाद में शाम को पार्टी की सेण्ट पीटर्सबर्ग कमेटी ने अगली कार्रवाई की योजना पर चर्चा की। हमारा काम मज़दूरों की स्वतन्त्र कार्रवाई को सख़्त बनाना और इसे एक शक्तिशाली, संगठित आन्दोलन में रूपान्तरित करना था। हमने इस जन हड़ताल को अगले तीन दिनों तक चलाने और नये प्रदर्शनों को संगठित करने का फ़ैसला किया, जिनमें से पहला वीबोर्ग क्षेत्र में हो। 7 जुलाई के लिए एक बड़ा प्रदर्शन तय किया गया, वह दिन जब फ़्रांसीसी गणराज्य के राष्ट्रपति, पॉइनकेयर, सेण्ट पीटर्सबर्ग आने वाले थे।
पहले हमने बाकू के हड़तालियों के समर्थन में आवेदन जारी किये थे; अब आन्दोलन का सबसे बड़ा मक़सद सेण्ट पीटर्सबर्ग में मज़दूरों पर गोलियाँ चलाये जाने के विरोध में प्रतिवाद जताना था। कार्रवाई की एक आम योजना तैयार करने के लिए हमने शहर के बाहर पोरोखोव्ये स्टेशन के पास फ़ैक्टरियों से आये प्रतिनिधियों की एक मीटिंग का प्रबन्ध किया। प्रतिनिधियों को एक पासवर्ड दिया गया और किसी व्यक्ति को इसका इस्तेमाल करके जंगल से होकर मीटिंग की जगह तक लाने के लिए मार्गदर्शक नियुक्त किये गये।
5 जुलाई को, प्रदर्शन और पुलिस के साथ मुठभेड़ फिर से हुईं, मगर एक भी गोली नहीं चलायी गयी, हालाँकि पुलिस ने अपनी तलवारों और चाबुकों का खुलकर इस्तेमाल किया। रविवार का दिन होने के कारण 6 जुलाई को कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ, लेकिन अगले दिन के लिए तय किये गये जन-कार्रवाई की तैयारियाँ मज़दूर-वर्ग के क्षेत्रों में की गयीं।
7 जुलाई की सुबह शहर वैसा ही दिखा जैसा वह 1905 के दौरान दिखा था। बहुत कम अपवादों के साथ, फ़ैक्टरियाँ और कार्यस्थल बन्द कर दिये गये और लगभग 130,000 मज़दूर हड़ताल पर थे। मज़दूर सड़कों पर आते चले गये और पुलिस की पहरेदारी उन्हें नियन्त्रित करने में पूरी तरह नाकाम रही; वे केवल नेवस्की प्रोस्पेक्ट में ही किसी प्रदर्शन को होने से रोकने में कामयाब हुए। फ़्रांस के राष्ट्रपति की उपस्थिति में किसी “बदनामी” से बचने के मक़सद से, मज़दूरों को शहर के केन्द्र में पहुँचने से रोकने के लिए वहाँ विशाल पुलिस बल की तैनाती की गयी। आन्दोलन केवल प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं था। सामान्य ट्रैफि़क बाधित हुआ; ट्रामगाड़ियों को रोका गया और यात्रियों को बाहर आने के लिए मजबूर किया गया, और नियन्त्रण को हटा दिया गया। मज़दूर गाड़ियों में घुस गये और उन्हें चलने से रोका। बाद में दिन के समय एक ट्रामवे डिपो के लोग हड़तालियों के साथ शामिल हो गये।
मज़दूरों ने फिर से सभी सरकारी वोदका की दुकानें और बीयर-हाउस को, कुछ मामलों में बोतलें तोड़कर और बीयर को दूर उड़ेलकर, बन्द करवा दिया। इसके बाद यहाँ तक कि बुर्जुआ अख़बारों ने भी असल गम्भीरता का उल्लेख किया, जो उन दिनों मज़दूर-वर्गीय क्षेत्रों में उभरी थी। पिछले दिनों के अनुभव से शिक्षा लेकर पुलिस ने आग वाले हथियारों का इस्तेमाल करने का जोखिम नहीं उठाया, लेकिन बिखरे हुए अलग-थलग समूहों और व्यक्तियों पर चाबुकों और तलवारों से हमले किये। मज़दूरों में पुलिस के सारे डर ग़ायब हो गये; उन्होंने पुलिस के अत्याचार के खि़लाफ़ ज़बरदस्त लड़ाई लड़ी, और कई हाथापाई भी हुईं।
उसी शाम शहर के गवर्नर और आन्तरिक मामलों के मन्त्री ने दिन की घटनाओं के बारे में एक ज़रूरी सलाह-मशविरा करके सख़्त क़दम उठाने का फ़ैसला किया। अगली सुबह शहर के गवर्नर ने लोगों को इन गड़बड़ियों के नतीजों की धमकी देते हुए और 1905 में ट्रेपोव द्वारा जारी किये गये मशहूर आदेश : “किसी भी कारतूस को बेकार ना होने दिया जाये” को फिर से लागू करते हुए एक घोषणा की।
इसके बावजूद ढीला पड़ने के कोई निशान तक नहीं थे और आने वाले दिनों में 12 जुलाई तक आन्दोलन और बढ़ता ही चला गया। हड़तालों की संख्या 150,000 तक पहुँच गयी, और 9 जुलाई को सेण्ट पीटर्सबर्ग की सड़कों पर बैरिकेड देखे गये। ट्रामगाड़ियाँ, बैरल, खम्भे इत्यादि ने बैरिकेड बनाने के लिए सामग्री का काम किया, जो ख़ास तौर पर वीबोर्ग जि़ले में बनाये गये थे। सारा ट्रैफि़क बाधित हो गया और कई क्षेत्रों में मज़दूरों ने सड़कों पर पूरा क़ाबू पा लिया।
1914 का जुलाई आन्दोलन युद्ध के ऐलान के कारण बाधित हो गया। हालाँकि 17 जुलाई (पुरानी शैली) को युद्ध का ऐलान होने से दो दिन पहले ही हड़तालें रोक दी गयी थीं, देशभक्तिपूर्ण प्रदर्शन पहले ही शुरू हो गये थे और पुलिस का काम आसान था। उसी समय, वे निर्माता जिन्होंने तालेबन्दी का ऐलान किया था, अब युद्ध की माँग और मुनाफ़े की उम्मीद में रियायतें देने को तैयार थे।
यह पूरी तरह सम्भव है कि किसी भी मामले में जुलाई के प्रदर्शन ने इन्क़लाबी संघर्ष के एक निर्णायक बिन्दु तक नहीं पहुँचाया, मगर उस पल के लिए अब ज़्यादा देर नहीं की जा सकती थी। यह इस इन्क़लाबी ज्वार के अगले मोड़ पर पहुँचने वाला था, जो जुलाई के बाद के भाटे के पीछे-पीछे तुरन्त आ गया होता। लेकिन युद्ध के द्वारा उस पल को लगभग ढाई सालों के लिए टाल दिया गया। हालाँकि युद्ध के वर्षों के मामले में जुलाई 1914 और फ़रवरी 1917 अलग-अलग थे, फिर भी वे इन्क़लाबी आन्दोलन के आम विकास में सीधे तौर से आपस में जुड़े हुए थे।
* एक वार्ड के पुलिस ऑफ़िसर इंचार्ज।
अनुवाद : अभिषेक
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