ज़हर का शिकार बनती स्त्री मज़दूरों के सवाल पर संघर्ष (ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम-4)
प्रसिद्ध पुस्तक ‘ज़ार की दूमा में बोल्शेविकों का काम’ के कुछ हिस्सों की श्रृंखला में चौथी कड़ी प्रस्तुत है। दूमा रूस की संसद को कहते थे। एक साधारण मज़दूर से दूमा में बोल्शेविक पार्टी के सदस्य बने ए. बादायेव द्वारा क़रीब 100 साल पहले लिखी इस किताब से आज भी बहुत–सी चीज़़ें सीखी जा सकती हैं। बोल्शेविकों ने अपनी बात लोगों तक पहुँचाने और पूँजीवादी लोकतन्त्र की असलियत का भण्डाफोड़ करने के लिए संसद के मंच का किस तरह से इस्तेमाल किया इसे लेखक ने अपने अनुभवों के ज़रिए बख़ूबी दिखाया है। यहाँ हम जो अंश प्रस्तुत कर रहे हैं उनमें उस वक़्त रूस में जारी मज़दूर संघर्षों का दिलचस्प वर्णन होने के साथ ही श्रम विभाग तथा पूँजीवादी संसद की मालिक–परस्ती का पर्दाफ़ाश किया गया है जिससे यह साफ़ हो जाता है कि मज़दूरों को अपने हक़ पाने के लिए किसी क़ानूनी भ्रम में नहीं रहना चाहिए बल्कि अपनी एकजुटता और संघर्ष पर ही भरोसा करना चाहिए। इसे पढ़ते हुए पाठकों को लगेगा कि मानो इसमें जिन स्थितियों का वर्णन किया गया है वे हज़ारों मील दूर रूस में नहीं बल्कि हमारे आसपास की ही हैं। ‘मज़दूर बिगुल’ के लिए इस श्रृंखला को सत्यम ने तैयार किया है।
हड़ताल आन्दोलन का विकास
मार्च 1914 में सेण्ट पीटर्सबर्ग में ऐसी कई घटनाएँ घटीं जिन्होंने मज़दूर आन्दोलन के ज़ोरदार विस्फोट की माँग की। महीने की शुरुआत में सेण्ट पीटर्सबर्ग में कई राजनीतिक हड़तालें हुईं। मज़दूर प्रेस के उत्पीड़न, दूमा द्वारा हमारे धड़े के विप्रश्नों की सिलसिलेवार नामंजूरी, मज़दूर संगठनों और शैक्षणिक संगठनों इत्यादि के उत्पीड़न और दमन के ख़िलाफ एक दिवसीय हड़तालें कीं। आन्दोलन सारे शहर में फैल गया और इसमें बहुत से मज़दूर शामिल थे। हथियार बढ़ाने के मक़सद से दूमा के अध्यक्ष रोड्ज़ियाँको द्वारा गुप्त सम्मेलन के आयोजन का भी मज़दूरों ने विरोध किया। ट्रुडोविक्स और समाजवादी लोकतान्त्रिकों को छोड़कर दूमा के सभी धड़ों के प्रतिनिधियों को आमन्त्रित किया गया। और जब हमने हथियारों पर जनता के पैसों के इस ताज़ा दुरुपयोग की निन्दा की तो 30,000 मज़दूरों ने हड़ताल करके हमारा समर्थन किया।
मार्च भर आन्दोलन बढ़ता रहा और लेना मज़दूरों पर हुई गोलीबारों की बरसी पर इसने और भी ज़ोर पकड़ लिया। सरकार ने दूमा की मंजूरी के बावजूद जाँच की माँग करने वाले हमारे विप्रश्न का जवाब नहीं दिया। आसन्न बरसी को देखते हुए हमने सरकार को जल्द से जल्द जवाब देने पर विवश करने के लिए नया विप्रश्न लाने का निश्चय किया।
पार्टी के सभी संयोजक बरसी के निदर्शन की तैयारी कर रहे थे और सभी फ़ैक्टरियों और कारख़ानों पर प्रचार अभियान चला रहे थे। सेण्ट पीटर्सबर्ग कमिटी ने एक घोषणा पत्र जारी करके विप्रश्न के समर्थन में सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए मज़दूरों का आह्वान किया।
13 मार्च को प्रदर्शन का दिन मुकर्रर किया गया था, और विबॅर्ग ज़िले में हड़ताल शुरू हो गयी। नोबी ऐवाज़ कारख़ाने में रात की शिफ़्ट सुबह 3 बजे छूटी और सुबह दूसरे मज़दूर भी उनसे आ मिले। जल्द ही यह हड़ताल शहर-भर में फैल गयी और 60,000 से अधिक लोगों ने आन्दोलन में भाग लिया। उनमें से 40,000 मज़दूर मेटल कारख़ाने के थे। फ़ैक्टरियों में विरोध के प्रस्ताव पारित हुए और मज़दूरों के बीच मौजूद पार्टी सदस्यों ने उन्हें लेना की गोलीबारी की याद दिलायी और क्रान्तिकारी संघर्ष के सामान्य कामों के बारे में बताया।
क्रान्तिकारी गीत गाते और अपने लाल परचम लहराते हुए मज़दूर फ़ैक्टरियों और कारख़ानों के बाहर आ गये। लेसनर के मज़दूर विबॅर्ग की ओर से निकल कर दूमा की तरफ़ बढ़े लेकिन लिटेनी पुल पर पुलिस की एक गश्ती टुकड़ी ने उन्हें रोक लिया। एक दूसरी भीड़ बर्फ़ पर नेवा पार करने में कामयाब रही, और लाल परचम लिए वोस्क्रेसेंस्की पोत घाट से होते हुए दूमा भवन की ओर बढ़ी। प्रदर्शनकारियों पर घुड़सवार सैनिकों ने अपने चाबुक फटकारते हुए हमला कर दिया, भीड़ ने पत्थरों से उनका जवाब दिया जिसमें एक पुलिसिया घायल हो गया। शहर के दूसरे हिस्सों में भी पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई और नेव्स्की प्रॉस्पेक्ट के आस-पास केन्द्र में भी प्रदर्शन हुए।
हड़ताल अगले दिन भी जारी रही, जिसमें कई और फ़ैक्टरियाँ शामिल हो गयीं। और भी बहुत से प्रदर्शन हुए जिनमें 65,000 मज़दूर शामिल हुए।
इस आन्दोलन के बाद रबड़ फ़ैक्टरियों में कामकाजी महिलाओं की ज़हरख़ुरानी के कारण हड़तालों की एक नयी लहर चल पड़ी। यह नहीं, हड़ताल की यह लहर पिछली वाली के मुक़ाबले अधिक ज़ोरदार थी, उनमें भाग लेने वाले मज़दूरों की तादात और सड़क पर उनकी कार्रवाइयों, दोनों की दृष्टि से।
रिगा की सबसे बड़ी फ़ैक्टरी प्रोवोद्निक गोलोशेस के मज़दूरों की मार्फ़त महिला मज़दूरों की विषाक्तता की सूचना सबसे पहले हमारे धड़े को मिली। वहाँ के मज़दूर गोलोशेज़ को चमकाने के लिए इस्तेमाल होने वाली घटिया कि़स्म की पॉलिश से उठने वाले धुएँ से सिलसिलेवार ढंग से विषाक्तता का शिकार हो रहे थे। कुछ महिलाएँ बस मामूली सी प्रभावित हुई थीं जो बेहोशी के छोटे-से दौरे और हल्की-सी बीमारी के बाद ठीक हो गयी थीं, लेकिन कुछ मौतें भी हुई थीं। पचहत्तर कोपेक की भीख-मँगाई जैसी मामूली मज़दूरी के लिए दिन के तेरह घण्टे काम करने से मज़दूरों की सेहत ख़राब हो जाती थी जिसकी वजह से वे विषैले धुएँ को सहन नहीं कर पाते थे।
महिला मज़दूरों ने प्रबन्धन और फ़ैक्टरी निरीक्षक से कई बार कामकाजी माहौल सुधारने की माँग की थी और ख़ासतौर से इसका अनुरोध किया था कि ख़तरनाक पॉलिश का उपयोग बन्द किया जाये। अधिकारियों का जवाब यह था कि जिनकी सहनशक्ति कमज़ोर है वे काम छोड़कर जा सकते हैं। अन्ततः एक और प्रकोप के बाद, प्रोवोद्निक के मज़दूरों ने इस मामले में ध्यान देने के लिए प्रशासन को विवश करने में मदद के लिए धड़े से अनुरोध किया।
लेना की घटनाओं पर संसद में चर्चा के अवसर पर हड़ताल
हमने जाँच के लिए मालिनोव्स्कीको रिगा भेजा, उन्होंने जो तथ्य जुटाये उनके आधार पर एक विप्रश्न का मसविदा तैयार किया गया और उसे दूमा में पेश किया गया। उसकी शुरुआत कुछ इस तरह से की गयी थी:
मज़दूरों का शारीरिक क्षय और आयेदिन की मौतें पूँजीपतियों द्वारा सर्वहाराओं के शोषण का नतीजा हैं। रूसी मज़दूरों का मताधिकार से वंचित होना और शक्तिशाली पूँजीपतियों के गँठजोड़ों के मुक़ाबले जो सरकारी पदों पर आसीन सभी राजनीतियों को नियन्त्रित करते हैं, मज़दूर वर्ग की कमज़ोरी ने उन्हें भूदासों से भी बदतर हालात में पहुँचा दिया है। गोल्डफ़ील्ड्स की घटनाओं ने इन हालात में एक नमूना पेश किया था, जहाँ मज़दूरों को अश्वमांस खिलाया जाता था, निकाल बाहर किया जाता था, टैगा में तब्दील कर दिया जाता था और अन्ततः गोली मार दी जाती थी। और अब रिगा में हमारे धड़े के सदस्य मालिनोव्स्की द्वारा की गयी ताज़ा जाँच से पूँजीवादियों की उसी तरह की निर्ममता और अधिकारियों के नाकारेपन का एक और मामला सामने आया है।
रिगा के सबसे बड़े औद्योगिक उपक्रम प्रोवोद्निक रबड़ फ़ैक्टरी में, जिसमें कोई 13,000 मज़दूर काम करते हैं, जिनमें से अधिकतर महिलाएँ हैं, यह नयी त्रासदी घटी है… हमने ज़ोर देकर कहा कि विप्रश्न अत्यावश्यक है, लेकिन इससे पहले कि उसे दूमा की कार्यसूची में रखा जाता, ख़ुद सेण्ट पीटर्सबर्ग में भी उसी तरह की घटनाएँ घट गयीं।
प्रोवाद्निक और ट्रेउगोल्निक फ़ैक्टरियों में ज़हर का शिकार बनतीं स्त्री मज़दूर
12 मार्च को मुझे दूमा में संसदीय प्रश्न आयोग की बैठक से एक फ़ोन का जवाब देने के लिए बुलाया गया। वहाँ हमारे धड़े की सहायता करने वाले एक मज़दूर ने मुझे उतावले स्वर में बताया कि ट्रेउगोल्निक फ़ैक्टरी के मज़दूर किसी डिप्यूटी के उनसे मिलने की माँग कर रहे हैं। विषाक्तता की कई घटनाएँ हुई हैं और मज़दूर घबराये हुए हैं।
मैं तुरन्त उस फ़ैक्टरी पर गया और उसके गेट पर मज़दूरों की उत्तेजित भीड़ से मिला। वे मुझ पर सवालों की बौछार करने लगे, लेकिन चूँकि मुझे कुछ पता नहीं था इसलिए मैंने उनसे यह जानने की कोशिश की कि हुआ क्या है। यह बड़ा कठिन था क्योंकि महिला मज़दूरों ने विषाक्तता के बारे में अपने ढंग से बताया, यहाँ तक कि उनमें से कुछ तो उसे ताऊन बता रही थीं, और इस बीच मज़दूर-पर-मज़दूर प्रथमोपचार कक्ष में ले जाये जा रहे थे।
कई लोगों की आपबीती सुनने के बाद मैं समझ गया कि फ़ैक्टरी में हुआ क्या है। उस सुबह रबड़ के जूतों (गोलोशेज़) के लिए एक नयी पॉलिश दी गयी थी, बेंज़ीन का एक घटिया कि़स्म का विकल्प जिसका मुख्य घटक विषैली गैसें छोड़ता था। थोड़ी देर बाद बहुत-सी औरतें बेहोश होने लगीं। कारुणिक दृष्य उत्पन्न हो गया, कुछ महिलाओं पर ज़हर का प्रभाव इतना तगड़ा था कि पीड़ित पागल हो गये और कुछ की नाक और मुँह से ख़ून आने लगा। छोटा-सा अनुपयुक्त प्रथमोपचार कक्ष शवों से अटा पड़ा था और नये मरीजों को डाइनिंग रूम में ले जाया जा रहा था और उन तमाम लोगों को जो चल-फिर सकते थे, फ़ैक्टरी के बाहर भेज दिया गया था। “यदि वे वहाँ गिर गये तो उन्हें पुलिस पकड़ लेगी।” प्रबन्धन इस तरह का मानवद्वेषी बहाना बना रहा था।
10,000 मज़दूरों वाले एक विभाग में लगभग 200 (जिसमें केवल 20 पुरुष थे) मज़दूर विषाक्तता के शिकार हुए। फ़ैक्टरी में काम करने वाले 13000 मज़दूरों में अधिकांश महिलाएँ थीं और उनका सबसे निर्मम शोषण किया था। गोलोशेज मज़दूरों की आय दस घण्टे के काम के बदले चालीस से नब्बे कोपेक तक थी; शाम के भोजन तक के लिए छुट्टी नहीं दी जाती थी और ओवरटाइम आम था जबकि ट्रेउगोल्निक फ़ैक्टरी के मालिकान सालाना एक करोड़ रूबल का मुनाफ़ा कमाते थे।
दिन के अन्त तक लगभग एक हज़ार मज़दूर फ़ैक्टरी के अहाते में जमा हो गये और माँग की कि प्रबन्धन बयान जारी करके शिकारों की संख्या, उनके नाम, हादसे के कारणों के बारे में बताये। भीड़ में हादसे से प्रभावित मज़दूरों के सगे-सम्बन्धी भी थे और सभी अत्यधिक उत्तेजित थे। प्रबन्धन ने मज़दूरों को कोई भी सूचना देने से मना कर दिया और पुलिस बुला ली। एक मज़दूर फ़ैक्टरी की दीवार पर खड़ा होकर भाषण दे रहा कि पुलिस आ गयी और भीड़ को गेट के बाहर खदेड़ दिया। अपने सगे-सम्बन्धियों की नियति के बारे में आशंकित और उन मालिकान से रुष्ट होकर घर लौट गये जो ज़्यादा मुनाफ़े के लिए मज़दूरों को ज़हर दे रहे थे। अगले दिन फ़ैक्टरी के दूसरे विभाग में विषाक्तता का हादसा हो गया और प्रथमोपचार कक्ष फिर से पीड़ित महिलाओं से भर गया।
महिला मज़दूरों ने यह कहते हुए विरोध जताया कि इन हालात में काम जारी रखना असम्भव है लेकिन प्रबन्धक ने निर्दयता से जवाब में कहा कि: “यह नासमझी है तुम्हें इस तरह के माहौल का आदी हो जाना चाहिए। हम कुछ हादसों के कारण यह पॉलिश नहीं फेंक सकते, हमें अपने अनुबन्ध पूरे करने ही हैं। तुम्हें इसकी आदत पड़ जायेगी।”
काम के बाद फ़ैक्टरी के गेट के पास एक सभा बुलायी गयी जिसमें कई हज़ार मज़दूरों ने भाग लिया। कई सुझाव दिये गये लेकिन किसी फै़सले पर अमल होने से पहले बड़ी संख्या में पुलिस आ धमकी और भीड़ को खदेड़ने लगी। पुलिस पर पत्थर और सीमेण्ट के टुकड़े फेंके गये जिससे दो पुलिसिए घायल हो गये।
अगले दिन जब और मज़दूर घायल हो गये तो मज़दूरों के सब्र की इन्तिहा हो गयी। उन्होंने सभी विभागों में काम बन्द कर दिया और अहाते में जमा हो गये; बिना पूर्व तैयारी के हड़ताल की घोषणा कर दी गयी। लगभग दस ह़ज़ार हड़ताली मज़दूर फ़ैक्टरी के दरवाज़ों के गिर्द जमा हो गये और असहमति के नारे वक्ताओं के भाषणों में दख़लन्दाज़ी करने लगे। अभी वे प्रबन्धन के सामने रखी जाने वाली माँगों की चर्चा कर ही रहे थे कि घुड़सवार पुलिस घटना स्थल पर आ पहुँची और अपने चाबुक फटकारती भीड़ के बीच जा घुसी। मज़दूर प्रतिरोध में पत्थर और ईंटें फेंकने लगे। इसी बीच घुड़सवार पुलिसियों की और कुमुक आ पहुँची और खिंची तलवारों से हमले करते हुए उन्हें हर दिशा में खदड़ेने लगे। और कुछ को ओब्बोदनी कैनाल में धकेल दिया। दोनों तरफ़ कई लोग हताहत हुए और बहुत से मज़दूर गिरफ़्तार कर लिये गये।
ताज़ा विक्षोभ से बचने के लिए मैंने अपने धड़े की एक विशेष बैठक में इसकी सूचना दी जिसमें रिगा की घटनाओं को जिन्हें पहले भी उठाया गया था, जोड़ते हुए इस मामले में एक और अत्यावश्यक विप्रश्न लाने का निश्चय किया गया। बहरहाल, मार्च 15 को एक सन्देश के ज़रिये हमें विषाक्तता के एक ताज़ा मामले की सूचना दी गयी। इस बार का हादसा बोग्दानोब तम्बाकू फ़ैक्टरी में हुआ था।
कैबिनेट स्ट्रीट पर जहाँ यह फ़ैक्टरी स्थित थी, मेरी मुलाक़ात लगभग 2000 मज़दूरों से हुई जो घबराहट में काम छोड़कर भाग आये थे। मैं फ़ैक्टरी के गेट के भीतर गया और मज़दूरों से मुझे पता लगा कि वहाँ बिल्कुल ट्रेउगोल्निक जैसी घटनाएँ घटी हैं। मैं फ़ैक्टरी की विषाक्तता के बारे में उसके निदेशक का जवाब पाने के लिए उससे मिला, लेकिन उसका जवाब खुला मज़ाक़ था: “फ़ैक्टरी में विषाक्तता पैदा कर सकने लायक कुछ भी नहीं है। महिलाओं को विषाक्तता इसलिए हुई कि वे भूखी रह रही थीं और सड़ी मछलियाँ खा रही थीं। बेहोशी के दौरों का कारण यही है।” इससे स्पष्ट हो गया कि प्रबन्धन ने सारा दोष मज़दूरों के मत्थे मढ़ने का मन बना लिया है।
अगले दिन मैंने ‘प्रावदा’ के लिए फ़ैक्टरी के दौरे का विस्तृत ब्योरा लिखा और मज़दूरों का आह्वान किया: “इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए मज़दूरों का बेहतर ढंग से संगठित होना और तम्बाकू मज़दूरों का अपना मज़दूर संगठन बनाना ज़रूरी है।” प्रावदा में इस तरह की विषाक्तताओं के बारे में बहुत से लेख छपे जिनमें इसका उल्लेख किया गया था कि विषाक्तता की ये घटनाएँ शोषण का नतीजा हैं और इनके राजनीतिक निष्कर्ष निकाले गये थे।
दूसरी तम्बाकू फ़ैक्टरियों, छपाई कार्यालयों, इत्यादि, में भी विषाक्तता की घटनाएँ घटीं। पूरे सेण्ट पीटर्सबर्ग में इस रोग का बोलबाला था और इसके विस्फोट ने स्पष्ट कर दिया था कि ख़ासतौर से सेण्ट पीटर्सबर्ग में चिकित्सा सहायता पूरी तरह नदारद थी। कोई डॉक्टर या नर्स उपलब्ध नहीं थी, दवाओं का अभाव था और हताहतों के लिए कोई कमरा नहीं था।
प्रभावित फ़ैक्टरियों के उत्तेजित मज़दूर धड़े में आये और विषाक्तता के कारणों की जाँच करने और प्रभावितों को सान्त्वना देने के लिए हमसे अपनी फ़ैक्टरियों में चलने का अनुरोध किया। मुझे बहुत से मज़दूरों के यहाँ जाना पड़ा और हर जगह एक ही तस्वीर देखने को मिली। मज़दूर विषाक्तता के आसन्न ख़तरे से घबराये हुए थे और उनमें मालिकान के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त असन्तोष था। हालाँकि सभी मामलों में विषाक्तता का असली कारण स्थापित करना मुमकिन नहीं था, लेकिन सभी मज़दूरों के सामने यह बात स्पष्ट थी कि दुर्घटनाओं का मुख्य कारण मालिकों की मुनाफ़ाख़ोरी थी जिसके लिए स्वास्थ्य और मज़दूर संरक्षण सम्बन्धी साधारण और सीधे-सादे नियमों की भी उपेक्षा की जा रही थी।
मज़दूरों के बीच व्यापक स्तर पर हुई विषाक्तता की घटनाओं से समाज की लगभग सभी शाखाएँ प्रभावित हुईं – पूँजीवादी अख़बार भी चुप न रह सके। हालाँकि उनका अपने ढंग से घटनाओं की व्याख्या करना स्वाभाविक था और उन्होंने उनसे पैसे बनाने की भी कोशिश की। पूँजीवाद के सबसे कट्टर समर्थकों ने फ़ैक्टरी मालिकों का पूरी तरह समर्थन किया और घोषणा की कि असली गुनहगार वे क्रान्तिकारी पार्टियाँ हैं जिन्होंने मज़दूरों को मालिकों के ख़िलाफ़ खड़ा करने की कोशिश की है। इस आशय का झूठा लांछन लगाया गया कि बोल्शेविक धड़े के आदेश पर काम कर रही “विषाक्तता की एक कमेटी” मज़दूरों के बीच असन्तोष पैदा करने के लिए काम कर रही है। सैकड़ों महिला मज़दूरों की बीमारी की स्पष्ट ज़िम्मेदारी से बचने की नाकाम कोशिश में एकजुट बुर्जुआज़ी ने जघन्यतम साधनों सहित सभी साधनों का उपयोग किया और झूठी चापलूसी की मुहिम चला दी।
ट्रेउगोल्निक के बारे में संसद में सवाल
बहरहाल, ज़ारशाही की सरकार भी पूँजीवादी कलम घिस्सुओं के झूठ का अनुमोदन नहीं कर सकी। व्यापार और उद्योग मन्त्रालय की ओर से गठित आयोग ने माना कि “रबड़ उद्योग में मज़दूरों के बीमार होने का मुख्य कारण काम के दौरान साँस के साथ बेंज़ीन का जाना है।” दूमा में हमारे विप्रश्न का जवाब देते हुए व्यापार मन्त्रालय के एक अधिकारी लिटविनोव फ़ालिन्स्की यह मानने पर विवश हो गये कि विषाक्तताएँ घटिया कि़स्म की बेंज़ीन के कारण हुईं और यह भी कि तम्बाकू फ़ैक्टरियों में हुई विषाक्तताएँ इन विषाक्तताओं से थोड़ा-सा अलग थीं। महामारी के फैलने के मामले में लिटविनोव ने माना कि यह फ़ैक्टरियों के दमघोटू माहौल, मज़दूरों की कमज़ोरी, उनकी थकान और तनावग्रस्त तन्त्रिकाओं का नतीजा था। दरअसल, लिटविनोव उस व्यापक मनोविक्षिप्ति और उन्माद का उल्लेख करना न भूले, जिसके बारे में कहा गया था कि उसने इस रोग के फैलने में अहम भूमिका निभायी थी।
सरकार की सफ़ाइयों का जवाब
यह बहस बहुत ही तनावपूर्ण माहौल में हुई थी। दूमा में मौजूद हर कोई जानता था कि पिछले दिनों विषाक्तताओं के विरोध में हुई हड़तालों में 30,000 से अधिक मज़दूर शामिल थे और बहुत सारे प्रदर्शन और पुलिस के साथ बहुत-सी झड़पें भी हुई थीं। दूमा में बहस चल ही रही थी कि और भी बहुत-से मज़दूर काम छोड़कर हड़ताल में शामिल हो गये। सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूर आवेश में और उत्तेजित थे, उनकी उत्तेजना ताउरिदा पैलेस में घुस आयी जिससे दूमा के ब्लैक हण्ड्रेड्स घबरा गये। ब्लैक हण्ड्रेड्स ने उस अवसर की हमारी तकरीरों को मज़दूरों से और भी कार्रवाई की अपील बता कर उनकी सही व्याख्या की और वे डरे हुए थे और हमारा गला घोंट देना चाहते थे।
रोड्ज़ियाँको के पहले वक्ता तुलियाकोव के भाषण को बीच में ही रोक देने के बाद बोलने की बारी मेरी थी। लेकिन मुझे देर तक बोलने नहीं दिया गया। मेरे भाषण में दक्षिणपन्थियों की चीख़ोपुकार और सभापति रोड्ज़ियाँको की, जिन्होंने कुछ देर बाद सही मौक़ा देखकर वाक्य के बीच में ही मुझे बोलने से रोक दिया, बार-बार की चेतावनियाँ और लगातार खलल डालती रहीं। अन्ततः बहस अगले सत्र तक के लिए टाल दी गयी।
120,000 मज़दूरों की हड़ताल
मज़दूरों का गुस्सा बढ़ गया और अगले दिन लगभग 120,000 मज़दूरों ने हड़ताल आन्दोलन में भाग लिया। पार्टी प्रकोष्ठ ने सभी फ़ैक्टरियों में शुरुआती आन्दोलन जारी रखे और पुलिस ने किसी भी तरह की कार्रवाई को रोकने के प्रयास किये। मज़दूरों के इलाक़ों में सघन तलाशियाँ ली गयीं और बहुत सारे मज़दूर गिरफ़्तार किये गये। गुप्त पुलिस ने मज़दूर संगठनों और बीमा समितियों के नेताओं पर विशेष ध्यान दिया, जिनमें से अधिकांश पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे। सभी नेताओं को ढूँढ़ निकालने की इस कोशिश के बावजूद आन्दोलन ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि पुलिस उसका मुक़ाबला करने में सक्षम नहीं रह गयी।
शहर-भर में प्रदर्शन हुए। मज़दूरों ने क्रान्तिकारी गीत गाते हुए सड़कों पर जुलूस निकाले; शहर-भर के मज़दूर इलाक़ों में पैदल और घुड़सवार पुलिस भर गयी। शहर के विभिन्न हिस्सों में तेरह से अधिक विशाल प्रदर्शन हुए। एक मुठभेड़ में, जहाँ मज़दूरों ने गिरफ़्तार किये गये एक मज़दूर को छुड़ाना चाहा था, पुलिस ने रिवॉल्वरें निकाल लीं और भीड़ पर गोलीबारी की। गुत्थम-गुत्था की लड़ाई शुरू हो गयी लेकिन सख़्त प्रतिरोध के बावजूद तलवारों और चाबुकों से लैस पुलिस निहत्थे मज़दूरों पर भारी पड़ी। दूसरे ज़िलों में भी इसी तरह की झड़पें हुईं और आन्दोलनों में मज़दूरों का दृढ़ निश्चय और जोश देखने को मिला।
ताला बन्दी
सरकार और पूँजीपतियों ने इस आन्दोलन के पीछे की चेतावनी भाँप ली थी और तुरन्त जवाबी हमला करने का फ़ैसला कर लिया। मार्च 20 को मैन्युफ़ैक्चर्स असोसिएशन ने तालाबन्दी की घोषणा कर दी जिससे लगभग 70,000 मज़दूर प्रभावित हुए। सभी बड़ी कार्यशालाएँ बन्द कर दी गयीं और सहायक नौसैन्य मन्त्री ने बाल्टिक गोदी में काम रोकने के आदेश जारी कर दिये। घोषणा की गयी कि हफ़्ते भर काम बन्द रहेगा और आगे फिर से हड़तालें हुईं तो एकमुश्त बर्ख़ास्तगियाँ होंगी। सभी कारख़ानों पर गश्ती पुलिस तैनात कर दी गयी।
मज़दूरों के ख़िलाफ़ इस खुली लड़ाई में सरकार तत्परता से नियोजकों की सहायता में उतर आयी और मज़दूरों के प्रतिरोध को कमज़ोर करने के लिए मेटल वर्कर्स यूनियन का दमन किया। शहर के गवर्नर के आदेश से “अग्रिम निर्णय आने तक के लिए” यूनियनों की गतिविधियाँ निलम्बित कर दी गयीं, जिसका आशय था तब तक के लिए जब तक कि सेण्ट पीटर्सबर्ग का सर्वहारा ज़ारशाही से लड़कर अपनी यूनियन को जीवनदान न दिला देता। सारे मोर्चे पर मज़दूरों के ख़िलाफ़ हमले जारी रहे।
इस तालाबन्दी ने, जिसने दसियों हज़ार मज़दूरों को सड़क पर ला दिया था, सेण्ट पीटर्सबर्ग के सर्वहाराओं के बीच काफ़ी हो-हल्ला मचा दिया और बुर्जुआओं के लिए भी ख़तरे की घण्टी बजा दी थी। इस ख़तरे के कारण ही म्युनिसिपल अधिकारियों ने बेरोज़गार हुए लोगों के लिए सूप किचेन के आयोजन के लिए 100,000 रूबल का आबण्टन किया। इसकी विशेषता यह थी कि जैसे ही मज़दूरों की समस्या कुछ हल हुई यह फ़ैसला रद्द कर दिया गया जबकि सेण्ट पीटर्सबर्ग में पहले जितने ही लोग बेरोज़गार थे।
प्रभावित फ़ैक्टरियों और कारख़ानों के प्रतिनिधि हमारे धड़े के दफ़्तर में हमसे मिलने आये और हमसे यह तालाबन्दी तुड़वाने के उपाय करने का अनुरोध किया जिसके कारण हज़ारों मज़दूरों के सामने भुखमरी का संकट आ खड़ा हुआ था। नार्वा ज़िले के संगठित मज़दूरों ने निम्नलिखित प्रस्ताव भेजाः
हम तालाबन्दी को मैन्युफ़ैक्चरिंग एसोसिएशन की ओर से दी गयी उकसाऊ चुनौती मानते हैं। हम सामाजिक लोकतान्त्रिक धड़े के जन प्रतिनिधियों से अनुरोध करते हैं कि वे व्यापार-उद्योग मन्त्री से सवाल करें और तीन दिन के भीतर जवाब माँगें। हम यह प्रस्ताव भी रखते हैं कि सारे बेकार मज़दूर अपने बेकार भाइयों को मौद्रिक सहायता दें।
पिछली तालाबन्दियों की तरह हमारे धड़े ने बर्ख़ास्त मज़दूरों की ओर से चन्दाउगाही का आयोजन किया। साथ ही साथ, प्रावदा के लेखों के ज़रिये हमने उन फ़ैक्टरियों के मज़दूरों का, जिनमें “अनिश्चित काल के लिए” काम रोक दिया गया था, अपने मालिकान के ख़िलाफ़ बर्ख़ास्तगी के बदले पन्द्रह दिन की तनख़्वाह का मुक़द्दमा करने के लिए आह्वान किया। प्रावदा ने मज़दूरों को चेतावनी दी कि वे ध्यान दें कि प्रबन्धन अपनी भुगतान बहियों में “आगे मेरा कोई दावा नहीं बनता” की टिप्पणी न घुसेड़ने पायें। क्योंकि यदि असावधानीवश इस टिप्पणी पर दस्तख़त हो गये तो मज़दूर न्याय नहीं पा सकेंगे।
अन्त्येष्टि पर प्रदर्शन
21 मार्च को नार्वा ज़िले में फिर से विरोध प्रदर्शन हुए और कई लोग गिरफ़्तार भी हुए। साथ ही, किसी बिजली स्टेशन पर हुए विस्फोट में मारे गये दो मज़दूरों की शवयात्रा के समय हुए एक और प्रदर्शन ने सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूरों के क्रान्तिकारी हौसले को साबित कर दिखाया। 3000 से अधिक मज़दूर शवयात्रा में शामिल हुए ताबूत पर बहुत-सी क्रान्तिकारी अभिलेखों युक्त मालाएँ रखी गयी थीं।
पुलिस की गहन निगरानी में मज़दूर ओबुखोव से प्रीओब्रेजेन्स्की क़ब्रगाह तक की अट्ठारह किमी लम्बी यात्रा की। और मज़दूरों को जुलूस में शामिल हो पाने से रोकने के लिए जुलूस के रास्ते में पड़ने वाले सभी कारख़ानों के गेटों पर घुड़सवार पुलिसियों की टुकड़ियाँ तैनात की गयी थीं। इसके बावजूद भीड़ लगातार बढ़ती गयी।
पिछले दिन मज़दूरों ने मुझसे अन्त्येष्ठि में शामिल होने के लिए कहा था। मैं शामिल हुआ, और अभी ताबूत क़ब्र में उतारे ही जा रहे थे कि मैंने अपना भाषण शुरू कर दिया: “सेण्ट पीटर्सबर्ग के विशाल मज़दूर परिवार से नये शिकार नोंच लिये गये। पाषाण हृदय पूँजीवादी क्या हैं?” एक पुलिस निरीक्षक मेरे पास आया और मुझसे भाषण बन्द करने की माँग की, मैंने उसकी अनसुनी करके अपना भाषण जारी रखाः “निचोड़ देने वाली मेहनत, कारख़ानों में ख़तरनाक गैसें, असामयिक मौतें, और इन सबसे बढ़कर तालाबन्दियाँ – मज़दूर वर्ग की ज़िन्दगी ऐसी ही है। हाल-फि़लहाल में बहुत-से मज़दूर पूँजीवाद की भेंट चढ़े हैं। विस्फोट, विषाक्तताएँ….”
मैं अपना वाक्य पूरा कर पाता, इससे पहले ही घुड़सवार पुलिसिए भीड़ में घुसकर चाबुक फटकारने लगे; भीड़ को बलपूर्वक पीछे ढलेक दिया गया, और वे क्रान्तिकारी अन्त्येष्ठि गीत गाते हुए क़ब्रगाह से बाहर चले गये। कई सौ मज़दूर रेल से लौटे, और गाड़ी में क्रान्तिकारी गीत गाने के बाद उन्होंने मुझे सेण्ट पीटर्सबर्ग रेलवे स्टेशन पर अपने कन्धों पर उठा लिया और उठा कर चौक तक ले गये। चारों दिशाओं से पुलिस आ धमकी और भीड़ को तितर-बितर कर दिया।
मैं स्टेशन से सीधे दूमा पहुँचा जहाँ विषाक्तता पर स्थगित बहस में मुझे भाग लेना था। लेकिन वहाँ मैं अपना भाषण पूरा न कर सका। वहाँ रोड्ज़ियाँको ने उसी तरह रोक दिया जैसे क़ब्रगाह में पुलिस ने रोका था। ब्लैक हण्ड्रेड्स के बहुमत ने तय कर लिया था कि सामाजिक-लोकतान्त्रिक धड़े के जनप्रतिनिधियों को उस दिन बोलने नहीं दिया जायेगा। दूमा की अगली बैठक में भी इसी तरह का दृश्य उपस्थित हुआ। ब्लैक हण्ड्रेड्स में से सबसे खूँख़्वार, और नरमेधों के अगुआ ज़ेमिस्लोवस्की ने “ज़हर देने वालों की कमेटी” के ख़िलाफ़ ग़लत-सलत आरोप लगाने शुरू किये।
यह मामला सेण्ट पीटर्सबर्ग में इतना महत्त्वपूर्ण हो गया कि ब्लैक हण्ड्रेड की दूमा भी हमारे सवाल को ख़ारिज करने का साहस न कर सकी। मगर मालिकान हमलावर बने रहे। मज़दूरों को कुछ दिनों तक बेरोज़गार रखने के बाद तालाबन्दी उठा ली लेकिन कर्मचारियों को बहाल करते समय तमाम “अविश्वसनीय” और “परेशानी करने वाले तत्वों” को निकाल बाहर किया गया।
अनुवाद : विजयप्रकाश सिंह
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2019
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन