स्मार्ट सिटी के नाम पर ग़रीबों को उजाड़ रही राजस्थान सरकार
मुनीश मैन्दोला
राजस्थान के जयपुर में पिछले कुछ दिनों से कच्ची बस्तियों को हटाने का सरकारी अभियान शुरू किया गया है। कुण्डा, सिरसी रोड, खड्डा बस्ती, झालाना इन्दिरा नगर आदि में बहुत से लोगों के मकान तोड़ दिये गये हैं। इन्दिरा नगर में पुलिस ने इसका विरोध कर रहे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं व नागरिकों को गिरफ़्तार किया, उनको धमकाया और अदालत में जज ने भी उनको ज़मानत देने से इंकार कर दिया। नगर निगम व पुलिस के दस्ते ने इतना भी समय नहीं दिया कि लोग अपना सामान निकाल पायें। लोगों को उजाड़ने के पीछे सरकार का आधुनिक स्मार्ट सिटी बनाने का तर्क दे रही है। सुनने में यह एक अच्छी योजना लगती है, लेकिन दरअसल यह योजना अपने चरित्र से ही भयंकर जनविरोधी है। शहरों को स्मार्ट बनाने की इस पूँजीवादी योजना का खामियाजा ग़रीब जनता को ही चुकाना होगा। इसी के तहत राजस्थान में सरकार ने जयपुर आदि शहरों में एक-एक करके कच्ची बस्तियों से लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया है।
सरकार कहती है कि बस्ती वालों से सरकारी ज़मीन के ग़ैरक़ानूनी क़ब्ज़ों को ख़ाली करवाया जा रहा है। सरकार एकदम झूठ बोल रही है व उसकी नीयत कुछ और ही है। अगर सरकार वाक़ई सरकारी ज़मीन पर होने वाले अवैध क़ब्ज़ों को मुक्त कराना चाहती है तो इसकी शुरुआत उन प्रभावशाली धनी तबक़ों से करे जो संगठित होकर सरकारी ज़मीनों का घोटाला कर रहे हैं जिनमें भाजपा-कांग्रेस जैसे तमाम पूँजीवादी दलों के नेता, पूँजीपति-बिल्डर लॉबी, अफ़सर और भूमाफि़या शामिल हैं। सरकार केवल ग़रीब तबक़े पर सारा दोष डालकर प्रभावशाली अमीर लोगों के खि़लाफ़ चुप क्यूँ है?! जयपुर में उद्योग मैदान, मेवाड़ मिल, सूत मिल, पोद्दार मिल, जयपुर मेटल, दुर्लभजी अस्पताल, सुबोध स्कूल, महावीर कैंसर अस्पताल आदि कई ज़मीनें हैं जो व्यापक जनहित के नाम पर कौड़ियों के दाम निजी हाथों में दी गयीं और आज इनसे कहीं भी आम जन का हित नहीं सध रहा है व शर्तों का उल्लंघन करते हुए इन ज़मीनों का उपयोग मुनाफ़ा कमाने व अन्य कार्यों में हो रहा है। फ़ोर्टिस अस्पताल को करोड़ों की ज़मीन कौड़ियों के दाम दी गयी, इस शर्त पर कि वहाँ कुल मरीजों में से 15 से 20% तक ग़रीब तबक़े से होंगे व उनका नि:शुल्क इलाज होगा, लेकिन अस्पताल बन जाने के बाद फ़ोर्टिस अस्पताल ने इन शर्तों को मानने से साफ़ मना कर दिया और इसके बावजूद उसका भू-आवंटन निरस्त नहीं हुआ, न ही सरकार ने उस ज़मीन को वापस अपने क़ब्ज़े में लिया! सरकार उक्त सभी मसलों पर धनपशुओं के खि़लाफ़ चुप है व उनके क़ानूनी-ग़ैरक़ानूनी क़ब्ज़ों को नियमित करने के लिए कोई-न-कोई तिकड़म व गली निकाल ही देती है। पूँजीवादी सरकारों के सारे क़ानून केवल ग़रीबों को लूटने के लिए ही होते हैं।
दूसरी बात यह है कि कच्ची बस्ती में रहने वाले लोग भी इस देश के नागरिक हैं, इसलिए उनको रोज़ी-रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा और आवास की सुविधा देना इस सरकार की जि़म्मेदारी है। सरकार शहरों को आधुनिक बनाये, सड़कों को चौड़ा करे, यातायात की व्यवस्था को ठीक करे – इससे जनता को कोई परहेज़ नहीं है, लेकिन ऐसा करने की प्रक्रिया में सरकार यदि आम जनता को उजाड़े और प्रभावशाली लोगों को भाँति-भाँति की छूटें, रियायतें, लाभ आदि दे, तो स्पष्ट हो जाता है कि यह सरकार केवल धनपशुओं की सरकार है, जो धनी तबक़ों के हितों की रक्षा करने के लिए ग़रीबों को कुचलती है। तब ऐसे में जनता को भी अपने हक़ों के लिए एकजुट होकर लड़ते हुए, समूची पूँजीवादी व्यवस्था के विकल्प के बारे में सोचना होगा।
मज़दूर बिगुल,अगस्त 2017
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