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(मज़दूर बिगुल के जुलाई 2017 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
बेहिसाब बढ़ती महँगाई यानी ग़रीबों के ख़िलाफ सरकार का लुटेरा युद्ध
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
जीएसटी : कॉरपोरेट पे करम, जनता पे सितम का एक और औज़ार / मुकेश असीम
फासीवाद / साम्प्रदायिकता
मुस्लिम आबादी बढ़ने का मिथक / नितेश शुक्ला
गाय के नाम पर ”गौ-रक्षक” गुण्डों के पिछले दो वर्षों के क़ारनामों पर एक नज़र / राजिन्दर सिंह
उड़ती हुई अफ़वाहें, सोती हुई जनता! / विजय राही (अलवर से चिट्ठी)
संघर्षरत जनता
दिल्ली आँगनवाड़ी की महिलाओं की हड़ताल जारी है!
यूनियन बनाने की कोशिश और माँगें उठाने पर ठेका श्रमिकों को कम्पनी ने निकाला, संघर्ष जारी
लुधियाना में राजीव गाँधी कालोनी के हज़ारों मज़दूर परिवार बस्ती उजाड़ने के खि़लाफ़ संघर्ष की राह पर
ऑटोमैक्स में तालाबंदी के ख़िलाफ़ आन्दोलन
महान शिक्षकों की कलम से
विरासत
साम्प्रदायिकता और संस्कृति / प्रेमचन्द
समाज
इक्कीसवीं सदी में भी नन्हीं जिन्दगियों को बाल विवाह की बलि चढ़ा रहा है समाज / बिन्नी
मध्य प्रदेश में रोज़ाना 64 बच्चों की मौत / बलजीत
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
आधार पर सरकारी ज़बर्दस्ती की वजह क्या है? / मुकेश असीम
साम्राज्यवाद / युद्ध / अन्धराष्ट्रवाद
उत्तरी कोरिया के मिसाइल परीक्षण और तीखी होती अन्तर-साम्राज्यवादी कलह / नवगीत
शिक्षा और रोजगार
भारत में सूचना तकनीक (आईटी) क्षेत्र के लाखों कर्मचारियों पर लटकी छँटनी की तलवार
स्वास्थ्य
जेनरिक दवाओं के बारे में मोदी की खोखली बातें और ज़मीनी सच्चाई / डॉ. जश्न जीदा
स्त्री मज़दूर
नोएडा में ज़ोहरा के साथ हुई घटना : घरेलू कामगारों के साथ बर्बरता की एक बानगी / तपिश
कला-साहित्य
पाब्लो नेरूदा की कविता ‘सड़को, चौराहों पर मौत और लाशें’ का एक अंश
मज़दूरों की कलम से
मैं काम करते-करते परेशान हो गया, क्योंकि मेहनत करने के बावजूद पैसा नहीं बच पाता / अमित मोदी, वज़ीरपुर
मालिक का भाई मरे या कोई और, इसे कमाने से मतलब है / विष्णु, वज़ीरपुर, ठण्डा रोला मज़दूर
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन