सारण (बिहार) में साम्प्रदायिक उत्पात 

चंदन कुमार मिश्र

अगस्त में बिहार के सारण ज़िले में साम्प्रदायिक तनाव इस क़दर फैलने लगा कि चार दिन में सैकड़ों दुकानों और मकानों पर पत्थर फेंके गए; मुस्लिमों को डराने का कार्य भी हिन्दूवादी समूहों के द्वारा किया गया। अगस्त की शुरुआत में सारण के मकेर प्रखंड से व्हाट्सएप पर कुछ चित्र और वीडियो सामने आए, जिनमें एक मुस्लिम युवक द्वारा देवी देवताओं के चित्र के साथ अशोभनीय हरकत दिखायी गयी थी। हमारी सरकारें और पुलिस जिस तरह जनजीवन को बर्बाद करना चाहती हैं, उसका उदाहरण यहाँ भी दिखा। परसा और मकेर थाने में लोगों ने शिकायत की, लेकिन पुलिस ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को समझना ज़रूरी नहीं समझा। 5 अगस्त को अचानक आगजनी, बंद जैसे कारनामे शुरू हो गए। यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस किस्म के कारनामे धार्मिक उग्रवादियों ने मुस्लिम समुदाय को डराने के लिए किए। पूरा ज़िला जलने लगा, धारा 144 पूरे ज़िले में लागू कर दी गई। इधर आरोपी के घर तोड़-फोड़ की गई, घर भी जलाया गया। कई बाज़ार बंद हो गए। पुलिस ने लाठियाँ भी भाजीं।

16saran-violenceजिलाधिकारी ने इंटरनेट सेवा की तीव्रता और सोशल मीडिया की ताकत को देखते हुए सोशल नेटवर्किंग साइटों पर रोक लगा दिया। इतना कुछ हो रहा हो, तो विहिप, बजरंग दल, अभाविप जैसे संगठन पीछे रहें, यह तो हो नहीं सकता था। बजरंग दल ने मशाल जुलूस निकाला। इन संगठनों ने 6 अगस्त को ज़िला बंद का आह्वान किया। मढ़ौरा में भगवा झंडे लहराती मोटरसाइकिलें और जय श्रीराम के नारे ने सबको डरा दिया। मुस्लिमों की दुकानों पर पत्थर फेंके गए, कई के फ्लेक्स फाड़े गए, शीशे भी तोड़े गए। जो पिछले कई दशक से दुकानदार था, सामान्य जीवन गुजार रहा था, अचानक वह धर्म के आधार पर भेदभाव का शिकार होने की आशंका से घिर गया; मुस्लिम हो चला। कई लोगों से बातचीत में यह भी पता चला कि हिन्दू नौजवान अपनी ऊर्जा धार्मिक ध्रुवीकरण में, समुदाय विशेष को गाली देने, उनकी भावनाओं को चोट पहुँचाने में खपा रहे थे। फासीवादी दलों का किस कदर असर नयी पीढ़ी पर है, यह इससे भी पता चलता है कि एक युवक ने साफ़ कहा कि हिन्दू-मुस्लिम की बात होगी, तो हम जाएंगे ही। ज़िले की कई मस्जिदों में बड़ी संख्या में हिन्दुओं ने जाकर हल्ला मचाया, तोड़-फोड़ भी की। कई गाड़ियों के तोड़े जाने की भी बात सुनने को मिली।

ज़िले में आइटीबीपी ने दौड़ा कर महिलाओं और बच्चों को भी पीटा। 40 से ज़्यादा अफसर ज़िले में तैनात कर दिए गए। पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे, पैलेट गन भी चलाई। देखते देखते यह सब कुछ ज़िले के दूसरे प्रखंडों में फैलता चला गया। इसी में लूटपाट भी हुई। पुलिस ने किसी को पकड़ लिया, तो लोगों ने हंगामा किया और उपद्रवियों को छोड़ भी दिया गया। कई अफसर घायल हुए। स्थानीय पत्रकार को इस हंगामे की तस्वीर लेने के बाद डिलीट करने को कहा गया और रिपोर्टिंग में सच न लिखने को भी कहा गया, वैसे पत्रकार भी हिन्दूवादी रुझान का ही होगा। सिवान, गोपालगंज, वैशाली में भी नेट पर पाबंदी लगा दी गई। पानापुर, एकमा में दर्जनों गाड़ियों को क्षति पहुँचाई गई। स्कूल बंद रहे। सात-आठ दिन में 36 से ज़्यादा प्राथमिकी दर्ज हुई और 100 से ज़्यादा गिरफ्तार किए गए।

इस घटना पर राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा नहीं के बराबर हुई। इसे उत्तरप्रदेश के निकटवर्ती ज़िले के कारण उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव के लिए फायदेमंद मानना भी ग़लत नहीं होगा। इससे फायदा हिन्दूवादी दल ही लेगा, क्योंकि बिहार के इन ज़िलों के हज़ारों लोगों के रिश्ते उत्तरप्रदेश में हैं और धार्मिक भावनाओं के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होना मुश्किल भी नहीं है। मढ़ौरा प्रखंड में तो यह भी सुनने को मिला कि सड़कों पर मुस्लिम महिलाओं के बुरके हटवाए गए; मोटरसाइकिल सवार अगर मुस्लिम लगा, तो उसे रोककर जय श्री राम बोलने को कहा गया। ऐसा नहीं कि मुस्लिम वर्ग एकदम चुप रहा, लेकिन हिन्दुओं की तरह उसने शांति खत्म करने की ऐसी कोशिश नहीं की। कहीं-कहीं प्रतिकार ज़रूर किया, जवाबी हमले भी किए। हालांकि पुलिस और प्रशासन ने कुल मिलाकर बाद में नियंत्रण बना लिया। बिहार गुजरात तो नहीं बन सकता! मंदिर के पुजारी और हिन्दू युवा मिलकर किसी मस्जिद में किताबें फाड़ दें, तोड़ फोड़ कर दें, मूत्र विसर्जन तक कर दें, तो समाज की दिशा का पता तो चलता ही है! ऐसा लगता है कि आरोपी मुस्लिम युवक ने मजाक समझ कर जो हरकत की, वह इतना गंभीर रूप ले लेगी, इसका उसे अंदाजा नहीं था। बाद में उसने आत्मसमर्पण कर दिया, पुलिस छपरा ले आई। सोशल मीडिया पर गाली गलौज और उन्माद छाया रहता है, इससे बचना ज़रूरी है। खास तौर पर हिन्दूवादी जिनके रहनुमा पूँजीपतियों के चाकर हैं, ऐसी बातों, अफवाहों को हवा देने में माहिर हैं। उनसे और अन्य धर्मों के कट्टरपंथियों से बचें। धर्म या समुदाय पर आधारित ऐसी चीज़ें हमेशा अफीम की तरह ही होती हैं। आम जनता यह नहीं समझेगी, तो डर, नफरत और मौत का खेल सबको दफ्न कर देगा।

हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार और संघ परिवार के संगठन किसी भी ऐसी घटना की ताक में रहते हैं जिसका लाभ उठाकर वे साम्प्रदायिक आधार पर नफ़रत फैला सकें। इनका भण्डाफोड़ करना होगा और इनकी साज़ि‍शों से लोगों को सावधान करना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2016


 

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