नये साल पर मज़दूर साथियों के नाम ‘मज़दूर बिगुल’ का सन्देश

breaking chains-2नये वर्ष पर नहीं है हमारे पास आपको देने के लिए
सुन्दर शब्दों में कोई भावविह्वल सन्देश
नये वर्ष पर हम सिर्फ़ आपकी आँखों के सामने
खड़ा करना चाहते हैं
कुछ जलते-चुभते प्रश्नचिह्न
उन सवालों को सोचने के लिए लाना चाहते हैं
आपके सामने
जिनकी ओर पीठ करके आप खड़े हैं।
देखिये! अपने चारों ओर बर्बरता का यह नग्न नृत्य
जड़ता की ताक़त से आपके सीने पर लदी हुई
एक जघन्य मानवद्रोही व्यवस्था
देखिये! अपने आस-पास की इस दुनिया को
जहाँ सामूहिक बलात्कार के शिकार
युवा स्वप्न पड़े हैं सरेआम सड़क पर लथपथ
क्या सचमुच हम बगल से होकर
चुपचाप गुज़र सकते हैं?
लांछित और कलंकित किया जा रहा है
हमारे अतीत के गौरवशाली संघर्षों और कुर्बानियों को
और सनक और बेवकूफ़ी बताया जा रहा है
मुक्ति के हमारे सपनों को
भविष्य की हमारी परियोजनाओं को हवाई मंसूबा
बताया जा रहा है
विद्वानों की सैद्धान्तिक उल्टियों से सड़क-चौराहे
बदबू कर रहे हैं
क्या ये सारी स्थितियाँ आपको
सचमुच काबिले-बर्दाश्त लगती हैं?
कृत्या राक्षसी की तरह हू-हू करती
पूँजी भाग रही है भूमण्डल पर चारों ओर
उठ रहे हैं और लड़ रहे हैं यहाँ-वहाँ
हमारे आपके साथी और भाई-बहन
और एक स्पष्ट दिशा और अपने जैसों के साथ के अभाव में
टूट जा रही हैं और बिखर जा रही हैं उनकी लड़ाइयाँ
क्या सचमुच हम और आप ऐसी लोहे की दीवारों के बीच
क़ैद हो गये हैं जहाँ कोई भी पुकार हमें सुनाई नहीं देती?
नये साल पर हम सिर्फ़ आपसे यही पूछना चाहते हैं
हम आपको एक लम्बी, सुदूर, बीहड़ यात्रा पर
फिर से चल पड़ने के लिए
तैयार हो जाने का न्यौता दे रहे हैं।
हम आपसे फिर उठ खड़े होने के लिए कह रहे हैं
यह दुनिया यूँ ही रेंगती हुई ख़त्म नहीं होने वाली है
और पूँजी को दफ़्न करने का इतिहास का जो हुक़्म है
उसकी तामील आप ही को करनी है
चाहे आप जितनी भी देर करें
आप अपने इस ऐतिहासिक दायित्व से
मुँह नहीं चुरा सकते।
नये साल पर कहने के लिए हमारे पास
बस यही कुछ असुविधजनक और चिन्ता
और चुनौतियों से भरी हुई बातें हैं
अगर आप सुन पायें तो इन पर सोचियेगा ज़रूर!

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2013


 

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