जम्मू में रहबरे-तालीम शिक्षकों पर बर्बर लाठीचार्ज!
बिगुल संवाददाता, जम्मू
इस 13 अप्रैल को जम्मू में अपने बकाया वेतन जारी करने की माँग को लेकर आरईटी टीचरों नें जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी जम्मू स्थित सचिवालय का घेराव कर रहे रहबरे-तालीम शिक्षकों पर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया। काफ़ी शिक्षक घायल हुए और चार शिक्षकों को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया। इस प्रदर्शन में सर्व-शिक्षा अभियान के तहत लगे शिक्षक, एजुकेशन वॉलंटियर से स्थायी हुए शिक्षक और कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय के अध्यापक शामिल थे। इस श्रेणी के तहत नियुक्त अध्यापकों का एक से तीन वर्षों का वेतन बकाया था जिसके विरोध में यह प्रदर्शन किया गया था। इससे पहले जब शिक्षकों द्वारा सरकार व शिक्षा विभाग को बकाया वेतन जारी करने के लिए कहा गया तो वहाँ से सिवा कोरे आश्वासनों के कुछ नहीं मिला, इसलिए शिक्षकों ने सचिवालय के बाहर प्रदर्शन किया, परन्तु पुलिस ने शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियाँ बरसायीं जिसमें 10 शिक्षक घायल हुए। इस प्रदर्शन का नेतृत्व रहबरे-तालीम फोरम कर रहा था। नेतृत्वकारी घायल शिक्षकों में रंजीत सिंह, किशोर देव, लेख राज व जाकिर भट को पुलिस ने अस्पताल से ही हिरासत में ले लिया।
इससे पहले भी कार्यकाल बढ़ाने की माँग को लेकर शिक्षा मन्त्री के आवास के बाहर शान्तिपूर्ण तरीक़े से भूख हडताल कर रहे अस्थायी शिक्षकों पर भी पुलिस ने बर्बरतापूर्ण तरीक़े से लाठीचार्ज किया था जिसमें दर्जन भर शिक्षकों के चोटें आयीं और अस्थायी शिक्षकों की एसोसिशन के नेताओं को हिरासत में ले लिया। यह लाठीचार्ज सुनियोजित साज़िश का नतीजा था। इसमें पुलिस ने अँधेरा होने के बाद शान्तिपूर्ण अनशन कर रहे अस्थायी शिक्षकों पर लाठियाँ बरसायीं। महिला शिक्षक भूख हड़ताल में भारी संख्या में मौजूद थीं। उन पर पुरुष पुलिसकर्मियों ने लाठियाँ बरसायीं, जोकि वैसे भी नियम विरुद्ध है। नियमतः महिला पुलिसकर्मी ही महिलाओं को गिरफ्तार कर सकती हैं या लाठी चला सकती हैं। वैसे तो पूँजीवादी सरकारें किसी नियमों को नहीं मानती, परन्तु संविधान व क़ानूनों के दायरे में जो रहे-सहे जनवादी अधिकार हैं, उनका भी सरेआम उल्लंघन होता है। अस्थायी शिक्षकों की यही माँग थी कि शिक्षा मन्त्री ख़ुद मौक़े पर आये और शिक्षकों को कार्यकाल बढ़ाने का आश्वासन दे, परन्तु सरकार का कोई प्रतिनिधि भी शिक्षकों से मिलने तक नहीं आया।
जम्मू-कश्मीर में अभी हाल ही में पीडीपी व भाजपा ने मिलकर सरकार बनायी है। पीडीपी अपने आपको उदारवादी चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करती है। परन्तु उसने सत्ता पाने के लिए फासिस्ट भाजपा से भी हाथ मिला लिया। मुख्यमन्त्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू-कश्मीर से अफ़स्पा हटाने व सेना वापसी की माँग के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। परन्तु अब वह उन मुद्दों पर चुप है। और उसकी पुलिस अपने हक़ों के लिए संघर्ष कर रहे मज़दूरों, शिक्षकों व जनवादी कार्यकर्ताओं पर लाठियाँ बरसा रही है। अब एक बात साफ़ हो जाती है कि चाहे सरकार नेशनल कांफ्रेन्स की हो या पीडीपी की हो बुनियादी मुद्दों पर ये सभी चुनावबाज़ पार्टियाँ एक हैं चाहे वे क्षेत्रीय पार्टियाँ हों या राष्ट्रीय पार्टियाँ। क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय आकांक्षाओं को उभारने का काम करती हैं। राष्ट्रीय पार्टियों के बजाय यह क्षेत्रीय मुद्दों को ज़्यादा जुझारू तरीक़े से उठाती है। यह मुख्यतः क्षेत्रीय बुर्जुआ वर्ग व धनी फ़ार्मर किसानों, व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करती है। अब यह भी साफ़ हो गया कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा भी मज़दूरों का दमन करने में नेशनल कांफ्रेन्स व कांग्रेस से उन्नीस नहीं बीस ही साबित होगी। अतः किसी चुनावबाज़ पार्टी के भ्रमजाल से निकलकर मेहनतकश आबादी को क्रान्तिकारी संगठन में संगठित होना होगा और आर्थिक और राजनीतिक माँगों के मुद्दों को उठाने के साथ ही दूरगामी लक्ष्य के तौर पर इस दमन और लूट पर टिकी व्यवस्था के खात्मे की लड़ाई लड़नी होगी।
मज़दूर बिगुल, मई 2015
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