मोगा ऑर्बिट बस काण्ड: राजनीतिक सरपरस्ती तले पल-बढ़ रही गुण्डागर्दी का नतीजा
लखविन्दर
पंजाब सरकार पर काबिज बादल परिवार की ऑर्बिट कम्पनी की एक बस में मोगा में 30 अप्रैल को एक तेरह वर्ष की लड़की अर्शदीप और उसकी माँ को चलती बस से बस स्टाफ़ द्वारा धक्का देकर सड़क पर फेंक दिया गया। लड़की तो मौक़े पर ही दम तोड़ गयी जबकि माँ को गम्भीर चोटें आयीं, लेकिन उसकी जान बच गयी। इस घटना के बाद पंजाब के लोगों का बादल परिवार, पुलिस-प्रशासन, प्राइवेट बस कम्पनियों और सियासी शह पर पलने वाली गुण्डागर्दी के खि़लाफ़ गुस्सा भड़क उठा है। इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है। प्राइवेट बसों ख़ासकर बादल परिवार की मालिकी वाली बसों में सवारियों से मारपीट, गाली-गलौज, ज़्यादा किराया वसूलना, स्त्रियों से छेड़छाड़, ग़लत जगह उतारना जैसी चीज़ें साधारण बात है। दूसरे वाहन चालकों, पैदल लोगों, ट्रैफ़िक पुलिस वालों आदि से मारपीट, गाली-गलौज, धक्केशाही, दूसरी बसों के टाइम छीनना तो बादल परिवार की बसों में स्टाफ़ के नाम पर भर्ती किये गये गुण्डे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। बादल परिवार की बसों में स्टाफ़ के भेस में दो या तीन नहीं बल्कि पाँच-पाँच गुण्डे होते हैं। बादल परिवार ने पिछले समय में ख़ासकर पिछले 7-8 साल के सत्ता काल में जो नाजायज सम्पत्ति खड़ी की है, वह बिना गुण्डागर्दी के हो ही नहीं सकता था और इस सम्पत्ति की रक्षा और इसे और फैलाने के लिए भी सरकारी-ग़ैरसरकारी गुण्डागर्दी की ज़रूरत है। सभी पूँजीपति (समेत अन्य निजी प्राइवेट कम्पनियों के) ऐसा करते हैं लेकिन पंजाब में बादल परिवार का सरकारी-ग़ैरसरकारी गुण्डागर्दी का झण्डा सबसे ऊँचा है।
राजनीतिक सरपरस्ती में पलने वाली गुण्डागर्दी पंजाब में बहुत बढ़ चुकी है। इसके खि़लाफ़ लोगों का गुस्सा फूटना ही था। लोगों का मानना है कि मोगा ऑर्बिट बस काण्ड का वास्तविक दोषी बादल परिवार है, इसलिए उसे सज़ा मिलनी चाहिए। ऑर्बिट बस कम्पन्नी के मालिक बादल परिवार के सदस्यों ख़ासकर पंजाब के उपमुख्यमन्त्री सुखबीर बादल और केन्द्रीय मन्त्री हरसिमरत कौर बादल पर भारतीय दण्ड संहिता व मोटर वेहिकल एक्ट के तहत केस दर्ज करने, ऑर्बिट कम्पनी के सभी रूट रद्द करने और पंजाब रोडवेज को देने, बसों में स्टाफ़ के नाम पर गुण्डे भर्ती करने पर रोक लगाने आदि माँगों पर विभिन्न संगठनों, पार्टियों ने संघर्ष छेड़ा हुआ है। पाँच दिन तक तो पीड़ित परिवार भी इन माँगों पर खड़ा रहा और बेटी का अन्तिम संस्कार नहीं किया। लेकिन इस ग़रीब परिवार को बादल परिवार ने राजनीतिक-आर्थिक दहशत से डरा-धमकाकर और पैसे का लालच देकर चुप करा दिया। भारी पुलिस फ़ोर्स लगाकर रात में अर्शदीप का अन्तिम संस्कार कर दिया गया। बादल परिवार ने सोचा था कि इसके बाद मामला ख़त्म हो जायेगा। लेकिन लड़ाई अभी भी जारी है। चुनावी हितों के लिए इस मसले में धरने-प्रदर्शनों की ड्रामेबाज़ी करने वाली कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियाँ तो लगभग चुप्पी साध चुकी हैं लेकिन मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों, सरकारी कर्मचारियों आदि तबकों के जनसंगठनों ने ऑबिट बस काण्ड विरोधी एक्शन कमेटी, पंजाब का गठन करके लड़ाई आगे बढ़ाई है। 12 मई को ‘एक्शन कमेटी’ के बैनर तले पंजाब में ज़िला स्तर पर डीसी कार्यालयों पर प्रदर्शन और घेराव हुए हैं। संघर्ष को और आगे बढ़ाने की योजनाएँ बन रही हैं। ऑर्बिट बस काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी, पंजाब ने माँग की है कि ऑर्बिट बस कम्पनी के मालिकों पर आपराधिक केस दर्ज हो, ऑर्बिट बस कम्पनी के सारे रूट रद्द कर पंजाब रोडवेज को दिये जायें, पंजाब का गृहमन्त्री सुखबीर बादल जो ऑर्बिट कम्पनी के मालिकों में भी शामिल है इस्तीफ़ा दे, इस मसले पर संसद में झूठा बयान देने वाली केन्द्रीय मन्त्री हरसिमरत कौर बादल भी इस्तीफ़ा दे, समूचे बादल परिवार की जायदाद की जाँच सुप्रीम कोर्ट के जज से करवाई जाये। प्राइवेट बस कम्पनियों के द्वारा स्टाफ़ के नाम पर गुण्डे भर्ती करने पर रोक लगाने, बसों की सवारियों ख़ासकर स्त्रियों की सुरक्षा की गारण्टी करने के लिए काले शीशे और पर्दों पर पाबन्दी लगाने, अश्लील गीत, फ़िल्में, ऊँचे होर्न से होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने आदि माँगें भी उठाई गयी हैं। 6 मई को फरीदकोट में इन माँगों पर निजी बसों का घेराव कर रहे नौजवानों-विद्यार्थियों पर लाठीचार्ज किया गया था और 14 लोगों पर इरादाकत्ल जैसे झूठे दोषों में जेल में ठूँसा गया है। एक्शन कमेटी ने यह केस रद्द करने व जेल में बन्द नौजवान-छात्रों को रिहा करने की माँग भी उठाई है।
जमहूरी अधिकार सभा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 10-15 वर्ष पहले सरकारी बस परिवहन (पीआरटीसी व पंजाब रोडवेज़) के पास 70 प्रतिशत सेवाएँ थीं। लेकिन 2011 में निजी बस परिवहन 60 प्रतिशत से अधिक पर काबिज हो चुका था जो 2015 में बढ़कर 70 प्रतिशत हो गया है। आज इसके चलते सरकारी बस परिवहन आर्थिक संकट का शिकार है, जिसके नतीजे के तौर पर कर्मचारी वेतन, पेंशन, आदि के लिए संघर्ष लड़ने पर मजबूर हैं। सरकारी बस परिवहन विभाग की जायदाद बैंकों के पास गिरवी रखी जा चुकी है, स्थाई नौकरियाँ ख़त्म की जा रही हैं और विभाग को ठेकेदारों के चंगुल में फँसा दिया गया है। दूसरी ओर बादल घराने के पास नब्बे के दशक में 4 बसें थीं। 2007 में इसके पास 40 बसों के रूट थे लेकिन अब 230 हो गये हैं। बेनामी बसें इसके अलावा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कई वर्षों से नये रूट के परमिटों पर पाबन्दी लगाई हुई है। सरकारी बस परिवहन के एक हज़ार रूट बसों की कमी के चलते बन्द हैं। लेकिन बड़े घरानों की बसें बिना परमिटों के सड़कों पर दौड़ रही हैं। पंजाब में चल रही 492 लग्ज़री (ए.सी., सुपर डीलक्स आदि) बसों में 167 बादल घराने की, 125 अन्य निजी ट्रांसपोटरों की हैं। कुल 17 सुपर इंटेगर्ल बसें जो विभिन्न शहरों को चण्डीगढ़ से जोड़ती हैं सभी ही सरकार पर काबिज घराने की मालकी में हैं। सरकारी नीति को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया है कि लग्ज़री बसों को 90 प्रतिशत तक छूट और सरकारी बसों को सिर्फ़ 5 प्रतिशत।
राज्य द्वारा निजीकरण की नीतियों के तहत अन्य आर्थिक क्षेत्रों की तरह बस परिवहन पर भी बादल परिवार ने राज्य सत्ता पर क़ब्ज़ा होने का ख़ूब फ़ायदा लिया है। जैसे लग्ज़री ट्रांसपोर्टरों को करों से छूट, मिनी बसों और साधारण बसों पर अधिक टैक्स लगाने, बसों के किराये बढ़ाते रहना, छोटे ट्रांसपोटरों की बाजू मरोड़कर उनके परमिट हासिल करना आदि।
सम्पत्ति को बढ़ाने और इसकी रक्षा के लिए बादल परिवार ने सभी सरकारी-ग़ैरसरकारी हथकण्डे अपनाये हैं। कुछ अन्य छोटे हिस्सेदारों के साथ मिलकर पंजाब के बेरोज़गार नौजवानों को नशों में डुबोकर, रेता बजरी की चोरी, शहरों से हफ्ता वसूली, भूमि, ट्रांसपोर्ट और अन्य हर तरह के माफ़िये में लम्पट तत्वों को बड़े स्तर पर भर्ती किया गया है।
बादल घराने की बस कम्पनियों ने हॉकरों, ड्राइवरों, कण्डक्टरों, हेल्परों आदि के नाम पर बड़ी संख्या में गुण्डे भर्ती किये हैं जो गुण्डागर्दी करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। इसकी कुछ चर्चा हम ऊपर कर आये हैं। यहाँ कुछ तथ्य देना नावाजिब नहीं होगा। अख़बारी रिपोर्टों के मुताबिक़ मई 2012 से आज तक लगभग 26 केस ऑर्बिट बसों के खि़लाफ़ दर्ज हुए हैं, काफ़ी सारे पुलिस ने दर्ज ही नहीं किये। सन् 2012 में ऑर्बिट बस के टायरों तले बरनाला में एक बच्चा कुचला गया, संगरूर में फ़रवरी 2013 में एक ऑर्बिट बस ने कार को टक्कर मार दी जिसमें कार ड्राइवर की मौत हो गयी। फ़रवरी 2014 में एक ऑर्बिट बस ने मोटर साइकिल सवारों को कुचल दिया, एक की मौत हो गयी। 30 अप्रैल 2014 को तपा में पेट्रोल पम्प के मालिक को स्कूटर समेत कई मीटर तक खींच ले जाना, 2014 में लुधियाना में एक मोटर साइकिल सवार को कुचलना, फतेहगढ़ साहिब में एक आदमी को अपाहिज बनाना कुछ उदाहरण भर हैं। 30 मई 2015 को मोगा में हुआ ऑर्बिट बस काण्ड भी बादल घराने द्वारा की जा रही गुण्डागर्दी, नियम-क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाये जाने की कहानी बयान करता है। बस का ड्राइवर पहले भी ख़तरनाक ड्राइविंग के कारण दो व्यक्तियों को कुचल चुका है। उसका लाइसेंस पुलिस ने जब्त किया हुआ है। 30 अप्रैल वाले दिन उसके पास लाइसेंस नहीं था। अपराधी होने के बावजूद कम्पनी ने उसे हटाया नहीं था और उसके पास लाइसेंस न होने के बावजूद भी उससे गाड़ी चलवायी जा रही था। इसके सीधे दोषी कम्पनी मालिक हैं। बस में स्टाफ़ में कई गुण्डे थे जिन्होंने माँ-बेटी को छेड़छाड़ के बाद चलती बस से नीचे फेंक दिया।
जैसे-जैसे देश में उदारीकरण-निजीकरण की तीखी लुटेरी आर्थिक नीतियाँ लागू की जाती रही हैं वैसे-वैसे सरकारी-ग़ैरसरकारी दमन भी बढ़ता गया है। जहाँ पुलिस, फ़ौज, अदालतों के दाँत और नाख़ून तीखे किये जाते रहे हैं, वहीं पूँजीपतियों द्वारा निजी गुण्डा गिरोहों, लम्पट गुण्डा तत्वों को शह देना और इस्तेमाल करना भी बढ़ता गया है। पंजाब में अकाली दल (बादल) और कांग्रेस दो मुख्य चुनावी पार्टियाँ हैं। दोनों ही जमकर गुण्डागर्दी का सहारा लेती हैं। लेकिन अकाली दल (बादल) पिछले 7-8 सालों से सत्ता में होने के चलते इस मामले में आगे है। अकाली दल (बादल) पर बादल घराना काबिज है। बादल परिवार ने पंजाब में जो गुण्डागर्दी का माहौल बनाया है उसके कारण रोज़ाना पता नहीं कितनी ही दुखदाई घटनाएँ घटती हैं। इनमें से कुछ ही सामने आती हैं और इनमें से भी कुछेक ही जनता में चर्चा का विषय बनती हैं। 30 अप्रैल को मोगा में घटित हुआ ऑर्बिट बस काण्ड न सिर्फ़ जनता में चर्चा का विषय बना बल्कि इस पर लोगों का गुस्सा भी फूटा और लोग सड़कों पर आये। मज़दूरों, किसानों, नौजवानों, छात्रों, सरकारी मुलाजिमों के संगठनों ने समय की ज़रूरत को समझते हुए इस घटना के आधार पर बादल परिवार की गुण्डागर्दी समेत समूची गुण्डागर्दी, सार्वजनिक बस परिवहन के निजीकरण के खि़लाफ़ काबिले-तारीफ़ संघर्ष छेड़ा है। इस संघर्ष को आगे बढ़ाया जाना वक़्त की आवाज़ है।
मज़दूर बिगुल, मई 2015
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