कैसा है लोकतन्त्र, कैसा है संविधान पूँजी की चक्की में पिस रहा मज़दूर-किसान!
26 जनवरी को बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र, गोरखपुर में सभा

बिगुल संवाददाता

2015-01-26-GKP-Azadi-2गणतन्त्र दिवस पर कार्यक्रम की शुरुआत ‘तोड़ो बन्धन तोड़ो’ गीत से की गयी। नौजवान भारत सभा के प्रसेन ने कहा कि गणतन्त्र दिवस पर होने वाले भव्य जलसे में भारत के सबसे बड़े लिखित संविधान होने का दम भरा जाता है, सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी किया जाता है। इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा को आमन्त्रित किया गया है। मगर ओबामा भारत में बनारसी पान और गुजराती कढ़ी खाने नहीं, बल्कि अमेरिकी पूँजीपतियों के लिए लूट के नये रास्ते खोलने के मकसद से आये हैं। दिल्ली के मज़दूरों-ग़रीबों  की भारी आबादी की झुग्गी-झोपड़ियों को उजाड़ कर लुटेरों के लिए गलीचे बिछाये गये। तब बताइये कैसा है यह लोकतन्त्र ?

सुई से लेकर जहाज़ तक सब इस देश के मज़दूर-किसान पैदा करते हैं। फ़ैक्ट्रियों से लेकर खेतों-खदानों में दो जून की रोटी के लिए पूरी ज़िन्दगी खपाते हैं, फिर भी उन्हें जीने लायक बेहतर चीज़ें नहीं मिल पाती हैं। सरकारें भी इस चीज़ को मानती हैं कि देश में 84 करोड़ लोग 20 रुपये पर या उससे कम पर गुज़र बसर करते हैं। 18 करोड़ लोग फुटपाथों पर और 18 करोड़ 2015-01-26-GKP-Azadi-17लोग झुग्गियों में रहते हैं। 34 करोड़ लोग प्रायः भूखे सोते हैं। दूसरी ओर मुकेश अम्बानी जैसे लोग 1 मिनट में 40 लाख रुपये कमाते हैं। देश की 80 प्रतिशत सम्पदा पर मुट्ठी भर पूँजीपतियों का क़ब्ज़ा है। संविधान के तहत होने वाला चुनाव बस इसलिए होता है कि जनता तय करे उन्हें पाच सालों तक किससे लुटना है। 2014-2015 के बजट में पूँजीपतियों को 5.32 लाख करोड़ रुपये की छूट दी गयी। बीमा से लेकर रक्षा क्षेत्र में 49 से लेकर 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने की तैयारी है। आज ज़रूरी है कि मज़दूर वर्ग यह जाने कि राजकाज समाज का पूरा ढाँचा काम कैसे करता है और किस प्रकार इस लुटेरे तन्त्र का ध्वंस होगा और मेहनतकशों का राज कैसे बनेगा। भगतसिंह और उनके जैसे हज़ारों नौजवानों की कुर्बानियाँ हमें ललकार रही हैं कि हम उनके सपनों को पूरा करने में जुट जाये।

बिगुल मज़दूर दस्ता के राजू ने कहा कि इस समय देश भर में लवजिहाद, घरवापसी, मन्दिर-मस्जिद का मुद्दा नेताओं धर्मध्वजाधारियों द्वारा उठाया जा रहा है तककि आम लोग जो अपने हक-अधिकार से वंचित किये जा रहे हैं वे इकट्ठा ना हो सकें। मज़दूर साथियों को भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ की बातों पर ज़रूर ध्यान देना होगा। क्रन्तिकारियों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर और उससे भी बढ़कर वर्गीय एकता पर ज़ोर दिया था। इसके बाद स्वदेशी-स्वदेशी का राग भरने वालों की चारसौबीसी का पर्दाफ़ाश करने वाला गीत ‘जय श्रीराम-जय श्री राम’ पेश किया गया।

2015-01-26-GKP-Azadi-11बिगुल मज़दूर दस्ता के एक और साथी अंगद ने ट्रेडयूनियन के मसले पर अपनी बात रखते हुए कहा कि  उच्च न्यायालय ने भी माना है कि श्रम न्यायालयों से एवं समूची न्यायपालिका से श्रमिकों को न्याय नहीं मिल पाता । देश के 93 प्रतिशत कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। संविधान में लिखित काम के घण्टे, न्यूनतम मज़दूरी, छुट्टी, मेडिकल आदि सुविधाएँ केवल काग़ज़ों पर हैं, कहीं लागू नहीं होतीं। पूँजीपति श्रम क़ानूनों को अपना जेबी माल बना चुके हैं। इसलिए ज़रूरी है कि पेशा आधारित व इलाक़ा आधारित क्रान्तिकारी ट्रेडयूनियन बनायी जाये। पुरानी धन्धेबाज हो चुकी परम्परागत ट्रेडयूनियन का पीछा छोड़ा जाये। उनकी स्थिति एकदम साफ़ हो चुकी है कि वे पूँजीपतियों और मज़दूरों के बीच के दल्ले बन चुके हैं। अंगद ने मज़दूर अख़बार के अध्ययन और अख़बार के लिए रिपोर्ट लिखने पर भी ज़ोर दिया।

2015-01-26-GKP-Azadi-5टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के अजय मिश्रा ने मज़दूरों के बीच की कमियों कमजो़रियों पर चर्चा की कि अभी मज़दूर ख़ुद पहल नहीं ले रहे हैं। दूसरों के भरोसे बैठे रहते हैं। यह ठीक नहीं है। यूनियन के कामों में सभी साथी बढ़चढ़कर भाग लें। फ़ैक्ट्रियों के सभी खातों में प्रतिनिधि चुनें जाये ताकि आपसी संवाद व ज़िम्मेदारियों का सही बँटवारा हो। हम एकजुट होकर ही मालिकों से लड़ सकते हैं। इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन के रामआशीष ने स्वरचित गीत ‘इंक़लाब-ज़िन्दाबाद’ सुनाया और विस्तार से फ़ैक्टरी मालिकों की चालों, भितरघातियों की करतूतों के बारे में बताया और मज़दूर साथियों से नयी शुरुआत की अपील की। इसी क्रम में अन्य मज़दूर साथियों चन्द्रभूषण व रमेश ने भी बात रखी। स्त्री मुक्ति लीग की निशू ने कहा कि मज़दूर साथी अपने आयोजनों व अपने संघर्षों से अपनें घरों की महिलाओं को दूर रखते हैं, यह बहुत बड़ी कमजोरी है। महिलाएँ आधी आबादी होती हैं, इन्हें साथ लेकर ही हम कोई भी संघर्ष लड़ व जीत सकते हैं, इनके बिना नहीं। असली संघर्ष मज़दूर वर्ग के हर तरह के शोषण, उत्पीड़न से पूर्णमुक्ति का है महिलाएँ इससे अलग नहीं रह सकती हैं। कार्यक्रम में संसद में चलनें वाली नौटंकी का पर्दाफ़ाश करने वाला नाटक देख फ़कीरे लोकतन्त्र का फूहड़ नंगा नाच उर्फ़ हवाई गोले खेला गया। क्रान्तिकारी साहित्य की प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी। अन्त में क़दम मिलाओ साथियों चलेंगे साथ-साथ हम गीत गाया गया। इंक़लाब ज़िन्दाबाद! कैसा है लोकतन्त्र, कैसा है संविधान पूँजी की चक्की में पिस रहा मज़दूर-किसान! जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो! आदि ज़ोरदार नारों के साथ सभा का समापन किया गया।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2015

 


 

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