‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ का आह्वान भगतसिंह की बात सुनो! नयी क्रान्ति की राह चुनो!!
दिल्ली संवाददाता
चन्द्रशेखर आजाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) से भगतसिंह के शहादत दिवस (23 मार्च) तक उत्तर-पश्चिम दिल्ली के मजदूर इलाकों में नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्ता, स्त्री मजदूर संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से ‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ चलाया गया। अभियान टोली ने इस एक महीने के दौरान हजारों मजदूरों से सीधे सम्पर्क किया और उनका आह्वान करते हुए कहा कि चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू की शहादतों को याद करने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम मेहनतकश इन महान इन्कलाबियों के जीवन और विचारों से प्रेरणा लेकर पस्तहिम्मती के अंधेरे से बाहर आयें और पूँजी की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कमर कसकर उठ खड़े हों।
अभियान के दौरान हुई दर्जनों सभाओं और कार्यक्रमों तथा बाँटे गये पर्चों में अभियान टोली मजदूरों के बीच उस सच्चाई को लेकर गयी जो हुकूमत करने वालों के टुकड़ों पर पलने वाले बुद्धिजीवी कभी नहीं बताते। भगतसिंह और उनके साथी ऐसी आजादी की बात करते थे जिसमें हुकूमत की बागडोर वास्तव में मजदूरों के हाथ में हो। वे अंग्रेजों की गुलामी के साथ ही पूँजीवाद के खात्मे की बात कर रहे थे। वे साफ कहते थे कि हमारे लिए आजादी का मतलब यह नहीं है कि गोरे अंग्रेजों की काले अंग्रेज गद्दी पर बैठ जायें, हमारे लिए आजादी का मतलब है 98 प्रतिशत आम जनता का शासन। वे एक ऐसी समाजवादी व्यवस्था कायम करना चाहते थे जिसमें उत्पादन मुनाफ़े के लिए नहीं, बल्कि समाज की जरूरत के हिसाब से हो, जिसमें सबको रोजगार मिले, सभी बच्चों को एक समान मुफ्त शिक्षा और मुफ्त दवा-इलाज मिले।
यह अभियान मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम दिल्ली के समयपुर, बादली, शाहाबाद डेयरी, नरेला और रोहिणी के विभिन्न इलाकों में तथा दिल्ली की सीमा से लगे हरियाणा के कुण्डली औद्योगिक क्षेत्र और उससे लगी मजदूर बस्तियों में चलाया गया। अभियान का मुख्य जोर क्रान्तिकारियों के विचारों को मजदूरों के बीच लेकर जाने और एक नयी क्रान्तिकारी शुरुआत के लिए मजदूरों को जगाने पर था। अभियान की शुरुआत बादली के राजा विहार इलाके की मजदूर बस्ती में 27 फरवरी को चन्द्रशेखर आजाद की याद में हुए कार्यक्रम से हुई। बस्ती की मुख्य सड़क के किनारे मंच लगाकर हुए इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। करीब तीन घण्टे तक चले कार्यक्रम में दो छोटे नाटक और क्रान्तिकारी गीत पेश किये गये और कार्यकर्ताओं ने विस्तार से मजदूरों की जिन्दगी की चर्चा करते हुए अपने हकों के लिए संघर्ष के वास्ते एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज बारह-चौदह घण्टे की दिहाड़ी खटने के बाद भी मजदूरों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होतीं। सरकार के बनाये हुए श्रम कानूनों के हिसाब से हमें जो मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलता। यूनियनों के नेता मालिकों के दलाल हो गये हैं। तिरंगे और भगवा से लेकर लाल, हरे, नीले, पीले झण्डे वाली सभी चुनावी पार्टियाँ पूँजीपतियों की टुकड़खोर हैं। इस इस आजादी और लोकतंत्र का करोड़ों मेहनतकशों के लिए क्या मतलब रह गया है? देश की सारी तरक्की मेहनतकशों की बदौलत है, पर उन्हें इस तरक्की की जूठन भी नहीं मिलती। उनकी जिन्दगी में बस गुलामी की बेबसी है, नरक का अंधेरा है। इससे पहले 22 फरवरी से ही कार्यक्रम की तैयारी के लिए अभियान टोली ने सूरज पार्क और राजा विहार की बस्तियों में प्रचार शुरू कर दिया था। मजदूरों के काम पर निकलने से पहले सुबह 7 से 9 बजे के बीच गलियों में नारे लगाते हुए और छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएँ करते हुए मजदूरों और उनके परिवारों से सम्पर्क किया जाता था तथा बड़े पैमाने पर पर्चे बाँटे जाते थे। दिन में कारखाना गेटों के आसपास सभाएँ की जातीं और फिर शाम को काम से लौटते हुए मजदूरों के बीच बात रखने तथा पर्चे बाँटने का कार्यक्रम चलता। संजय कालोनी में भी शाम से लेकर रात तक प्रचार अभियान चला। इस तरह पूरे इलाके की अधिकतम मेहनतकश आबादी तक पहुँचने का प्रयास किया गया। पूरे इलाके में बड़ी संख्या में हाथ से लिखे पोस्टर भी लगाये गये। अभियान के दौरान ही अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस (8 मार्च) के मौके पर 7 मार्च को राजा विहार में सांस्कृतिक कार्यक्रम और जनसभा की गयी। (विस्तृत रिपोर्ट पेज 10 पर देखें) 14 मार्च को शाहाबाद डेयरी इलाके के मुख्य बाजार में एक बड़ी जनसभा की गयी। इससे पहले भी पूरे इलाके में कई दिनों तक सुबह से शाम तक सघन प्रचार और जनसम्पर्क अभियान चलाया गया। शाम को हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि भगतसिंह ने चेतावनी दी थी कि कांग्रेसी अंग्रेजों को हटाकर पूँजीपतियों के हाथों में राज सौंपना चाहते हैं और ये देशी लुटेरे फिर से विदेशी लुटेरों से समझौता कर लेंगे और देश लूटने के लिए उन्हें फिर से न्यौता दे देंगे। उनकी यह भविष्यवाणी हूबहू सही निकली। देश के मेहनतकश आम लोग तमाम तरक्की के बावजूद नरक की जिन्दगी बिता रहे हैं। बड़ी मेहनत से लड़कर मजदूरों ने जो हक हासिल किये थे, वे भी ज्यादातर छिन गये हैं। दुनियाभर के थैलीशाह एकजुट हैं लेकिन मजदूर बिखरे हुए हैं और निराश हैं। जमाने की हवा अभी उल्टी चल रही है। कमेरों पर लुटेरे हावी हैं मगर ये हालात हमेशा ऐसे ही नहीं रहेंगे। नब्बे प्रतिशत लोगों पर दस प्रतिशत मुनाफाखोर कब तक सवारी गाँठेंगे! मजदूरों को आपस के बँटवारों को भुलाकर उठ खड़ा होना होगा और अपनी किस्मत खुद बदलनी होगी। मजदूरों के जोश का यह आलम था कि इस सभा के बीच में ही बिजली कट जाने से पूरे इलाके में अंधेरा हो गया लेकिन बड़ी संख्या में मजदूर और महिलाएँ सभास्थल पर जमे रहे। बिजली आने तक काफी देर तक अंधेरे में ही सभा चलती रही। इसके बाद 15 से 18 मार्च तक अभियान टोली ने नरेला के भोरगढ़, और शाहपुर गढ़ी के इलाकों में तथा हरियाणा के सीमावर्ती कुण्डली औद्योगिक क्षेत्र और प्याऊ मनियारी की मजदूर बस्तियों में प्रचार अभियान चलाया तथा हजारों पर्चे बाँटे। इस बीच अभियान टोली ने कई दिन बादली से कुरुक्षेत्र और करनाल तक ट्रेनों में भी प्रचार अभियान चलाया और बादली, नरेला, सोनीपत आदि रेलवे स्टेशनों पर भी सभाएँ की गयीं तथा क्रान्तिकारी साहित्य का वितरण किया गया। 21 मार्च को शाहाबाद डेयरी में ही तीन झुग्गी बस्तियों के बीच के एक मैदान में बड़ी जनसभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया। गुरशरण सिंह के नाटक ‘तमाशा’ पर आधरित एक नाटक तथा ‘कहानी एक मेहनतकश औरत की’ नाम के दो नाटकों के अलावा दो गीतों का नाटकीय मंचन किया गया – ‘आलू-प्याज के इतने दाम, जै श्रीराम जै राम’ और गोरख पाण्डेय का गीत ‘पहिले पहिल जब ओट माँगे अइलें…’। तीन घण्टे से अधिक चले कार्यक्रम में वक्ताओं ने मेहनतकशों का आह्वान करते हुए कहा कि अब हमें एक नयी शुरुआत करनी ही होगी। नयी आजादी की लम्बी लड़ाई की शुरुआत संगठित होकर अपने छोटे-छोटे हवफ़ों के लिए लड़ने से करनी होगी। इसके बाद एक विशाल मशाल जुलूस निकाला गया। जुलूस में स्थानीय बस्तियों के सैकड़ों स्त्री-पुरुष मजदूर, नौजवान और बच्चे भी शामिल हुए। ‘भगतसिंह को याद करेंगे, जुल्म नहीं बर्दाश्त करेंगे’, ‘भगतसिंह तुम जिन्दा हो, हम सबके संकल्पों में’, ‘भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा’ जैसे गगनभेदी नारे लगाते हुए जुलूस की मशालों से पूरी बस्ती रौशन हो उठी और सबके दिल जोश से भर उठे। 22 और 23 मार्च को रोहिणी के विभिन्न सेक्टरों में साइकिल रैली निकाली गयी तथा जगह-जगह नुक्कड़ सभाएँ की गयीं। 23 मार्च की शाम को राजा विहार की बस्ती से मशाल जुलूस निकाला गया जो पूरे राजा विहार और बादली इण्डस्ट्रियल एरिया का चक्कर लगाता हुआ राजा विहार के मैदान में आकर समाप्त हुआ।
बिगुल, मार्च-अप्रैल 2010
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन