काले क़ानून के खि़लाफ़ रैली में औद्योगिक मज़दूरों की विशाल भागीदारी
बिगुल संवाददाता
लुधियाना के औद्योगिक मज़दूरों ने पंजाब सरकार द्वारा बनाये काले क़ानून ‘पंजाब (सार्वजनिक व निजी जायदाद नुक्सान रोकथाम) क़ानून-2014’ के खि़लाफ़ एक अक्टूबर को बरनाला शहर में हुई विशाल रैली में बड़ी संख्या में भागीदारी की। इसकी तैयारी के लिए टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, पंजाब व कारखाना मज़दूर यूनियन, पंजाब द्वारा लुधियाना की मज़दूर आबादी में दो सप्ताह तक सघन प्रचार अभियान चलाया गया था। बड़ी संख्या में पर्चा वितरित किया गया। घर-घर प्रचार, नुक्कड़ सभाएँ, मज़दूरों के रिहायशी लॉजों (बेहड़ों) में मीटिंगों आदि के ज़रिए संगठनों ने मज़दूरों को राज्य सरकार के काले क़ानून के बारे में जागरूक किया और इसके खिलाफ़ एकजुट संघर्ष करने की ज़रूरत के बारे में समझाया। मज़दूरों ने इस अभियान को भारी समर्थन दिया। पहली अक्टूबर को औद्योगिक मज़दूरों का बड़ा काफ़िला लाल झण्डे, बैनर, तख्तियाँ हाथों में लेकर “काला क़ानून रद्द करो”, “पंजाब सरकार मुर्दाबाद”, “जनवादी अधिकार बहाल करो” आदि रोषपूर्ण नारे बुलन्द करता हुआ बरनाला रैली में शामिल हुआ।
टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, पंजाब के अध्यक्ष साथी राजविन्दर ने रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि औद्योगिक मज़दूर यह समझ रहे हैं कि यह क़ानून उनके एकजुट संघर्ष करने के अधिकार पर हमला है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का काला कानून रद्द करवाने लिए औद्योगिक मज़दूर अन्य तबकों के साथ मिलकर ज़ोरदार संघर्ष लड़ेंगे।
मज़दूर नेताओं का मानना है कि देश के पूँजीवादी हुक़्मरान सबसे अधिक मज़दूर वर्ग के एकुजट संघर्षों से डरते हैं। मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूर वर्ग सबसे अधिक लूटा-दबाया जा रहा वर्ग है। मज़दूर वर्ग ही पूँजीपति वर्ग की सबसे बड़ी शत्रु शक्ति है। उदारीकरण, निजीकरण, भूमण्डलीकरण की नीतियों का सबसे बड़ा हमला मज़दूर वर्ग पर ही हो रहा है। पूरे देश में बहुत थोड़े मज़दूरों को श्रम क़ानूनों के तहत अधिकार हासिल हो रहे हैं। मज़दूर रोजाना 12-14 घण्टे बेहद कम उजरतों पर हाड़तोड़ मेहनत करने पर मजबूर हैं। ठेकेदारी, पीस रेट व्यवस्था ने मज़दूरों की बेहद बुरी हालत बना दी है। काम के हालात बेहद असुरक्षित है। काम के दौरान बड़े स्तर पर हादसे होते हैं। मज़दूरों की रिहायशी परिस्थितियाँ बहुत बुरी हैं। विश्व पूँजीवादी व्यवस्था आज गम्भीर संकट का शिकार है। भारतीय पूँजीवादी अर्थव्यवस्था भी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था का अंग है और इस संकट का शिकार है। संकट का बोझ मज़दूर वर्ग को झेलना पड़ रहा है। आने वाले दिनों में संकट और गम्भीर होगा और मज़दूर वर्ग पर और बोझ लादा जायेगा। मोदी सरकार के आने से मज़दूर अधिकारों पर पहले ही ज़ारी हमला और तेज़ हो गया है। श्रम क़ानूनों में बड़े स्तर पर मज़दूर विरोधी बदलाव किये जा रहे हैं। पूँजीपति हुक़्मरान जगह-जगह उठने वाले मज़दूर संघर्षों को बेहद सख़्ती से दबाने की नीति पर चल रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा बनाये गये काले क़ानून का सबसे बड़ा निशाना भी मज़दूर वर्ग ही है।
पंजाब सरकार का यह काला क़ानून रैली, धरना, प्रदर्शन, आदि संघर्ष के रूपों के आगे तो बड़ी रुकावटें खड़ी करता ही है वहीं हड़ताल को अप्रत्यक्ष रूप से गैर-क़ानूनी बना देता है। इस क़ानून के मुताबिक हड़ताल के दौरान मालिक/सरकार को पड़े घाटे की भरपाई हड़ताली मज़दूरों और उनके नेताओं को करनी होगी। इसके साथ ही घाटा डालने के ज़रिए सार्वजनिक या निजी सम्पत्ति को पहुँचाये नुक्सान के “अपराध” में जेल और जुर्माने का सामना भी करना पड़ेगा। हड़ताल होगी तो घाटा तो होगा ही। इस तरह हड़ताल या यहाँ तक कि रोष के तौर पर काम धीमा करना भी गैरक़ानूनी हो जायेगा। हड़ताल मज़दूर वर्ग के लिए संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण रूप है। हड़ताल को गैरक़ानूनी बनाने की कार्रवाई और इसके लिए सख्त सजाएँ व साथ ही रैली, धरना, प्रदर्शन, जुलूस आदि करने पर नुक्सान के दोष लगाकर जेल, जुर्माने आदि की सख्त सज़ाएँ बताती हैं कि यह क़ानून मज़दूर वर्ग पर कितना बड़ा हमला है। मज़दूर वर्ग को इस हमले के खिलाफ़ अन्य मेहतनकशों के साथ मिलकर सख़्त लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए पंजाब सरकार के काले क़ानून के खि़लाफ़ टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के कारख़ाना मज़दूरों का आगे आना महत्वपूर्ण बात है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन