कानपुर देहात में मुनाफ़े के लिए आपराधिक लापरवाही की भेंट चढ़े 6 मज़दूर!
फ़ैक्ट्रियों में लगने वाली आग कोई हादसा नहीं बल्कि पूँजीपतियों की लूट की हवस का नतीजा है

कार्यालय संवाददाता

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के औद्योगिक क्षेत्र रनियां में गद्दा फ़ैक्ट्री में भीषण आग लगने से छह मज़दूरों की दर्दनाक मौत हो गयी। शनिवार सुबह 6 बजे कारख़ाने की एलपीजी यूनिट में गैस रिसाव हो गया। इसके बाद तेज़ धमाका हुआ और आग लग गयी। कारख़ाने में न तो अग्निशमन यंत्र था और न ही अलार्म। ऊपर से मानकों को धता बताकर बनाया गया टिनशेड और दीवार आग की वजह से गिर गयी जिसके नीचे कई मज़दूर दब गये। इस वक़्त कारख़ाने में काम कर रहे 11 मज़दूरों में से 10 अन्दर ही फँस गये। 3 मज़दूर कारख़ाने में ज़िन्दा जल गये और तीन ने इलाज़ के दौरान दम तोड़ दिया।

कारख़ानों में लगने वाली आग की यह कोई पहली घटना नहीं है। मुनाफ़े की अन्धी हवस में सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर किये जाने वाले उत्पादन से औद्योगिक दुर्घटनाओं की बारम्बारता में तेजी से वृद्धि हुई है। इस घटना से ही समझा जा सकता है कि इन घटनाओं के पीछे शासन, प्रशासन और पूँजीपतियों का गठजोड़ काम करता है जो मुनाफ़े के लिए आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगियों का भी सौदा करते रहते हैं। प्रारम्भिक जाँच के मुताबिक़ यह फ़ोम कारख़ाना बिना फ़ायर एनओसी के चल रहा था और वहाँ सुरक्षा के कोई इन्तज़ाम नहीं थे। आग बुझाने के लिए जो वाटर टैंक था, उसमें पानी भी बहुत कम था। दमकल को आसपास की फ़ैक्ट्रियों से पानी लेना पड़ा जिसकी वजह से आग पर काबू पाने में काफ़ी वक़्त लगा। दरअसल, इन्वेस्टर्स सम्मिट में एमओयू पर हस्ताक्षर के बाद डेढ़ साल पहले मानकों को दरकिनार कर फ़ैक्ट्री में उत्पादन शुरू कर दिया गया। फ़ैक्ट्री के निर्माण के दौरान प्रोविज़नल (अस्थायी) प्रमाणपत्र तक नहीं लिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना एनओसी के इस कारख़ाने का संचालन किसकी अनुमति से हो रहा था। क्या कानपुर देहात के प्रशासन और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इसकी भनक नहीं थी?

दरअसल सच्चाई यह है कि ऐसी घटनाएँ आम तौर पर मालिकों के साथ शासन और प्रशासन की मिलीभगत का परिणाम होती हैं जब चुनावी चन्दे और रिश्वत के बदले पूँजीपतियों को मेहनतकशों की ज़िन्दगी से खेलने का पूरा हक़ दे दिया जाता है। अब इस घटना के बाद भाजपा और दूसरे पूँजीवादी दलों के नेता घड़ियाली आँसू बहाना शुरू कर चुके हैं। तू नंगा-तू नंगा का खेल शुरू हो चुका है। आने वाले दिनों में जाँच की नौटंकी होगी और अगले क़त्लेआम की तैयारी में यह पूरी मशीनरी लग जायेगी।

कारख़ानों में होने वाली यह कोई पहली घटना नहीं है और न ही आख़िरी होने वाली है। श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते पाँच वर्षो में 6500 मज़दूर फ़ैक्ट्री, खदानों, निर्माण कार्य में हुए हादसों में अपनी जान गँवा चुके हैं। इसमें से 80 प्रतिशत हादसे कारख़ानों में हुए। 2017-2018 कारख़ाने में होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2017 और 2020 के बीच, भारत के पंजीकृत कारख़ानों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई और 11 घायल हुए। 2018 और 2020 के बीच कम से कम 3,331 मौतें दर्ज की गयी। आँकड़ों के मुताबिक़, फ़ैक्ट्री अधिनियम, 1948 की धारा 92 (अपराधों के लिए सामान्य दण्ड) और 96ए (ख़तरनाक प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दण्ड) के तहत 14,710 लोगों को दोषी ठहराया गया, लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि 2018 और 2020 के बीच सिर्फ़ 14 लोगों को फ़ैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अपराधों के लिए सज़ा दी गयी। यह आँकड़े सिर्फ़ पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि पूरे देश में लगभग 90 फ़ीसदी श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हैं और अनौपचारिक क्षेत्र में होने वाले हादसों के बारे में कोई पुख़्ता आँकड़े नहीं हैं।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने माँग की है कि –

  1. बिना एनओसी के संचालित इस कारख़ाने के मालिक और अन्य ज़िम्मेदार लोगों को तत्काल गिरफ़्तार किया जाये। कारख़ाने कों सील किया जाये और इसके ख़िलाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई की जाये। आपराधिक लाहरवाही के लिए ज़िम्मेदार प्रशासन और शासन के लोगों को चिह्नित कर गिरफ़्तार किया जाये।
  2. देश भर में सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर चल रहे कारख़ानों कों चिन्हित कर उन पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाये।
  3. इस घटना में जान गँवाने वाले और घायल मज़दूरों को क़ानूनी तौर पर उचित मुआवज़ा दिया जाये।

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2024


 

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