कांस्टेबल चेतन सिंह अकेला नहीं!
देश भर में साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ज़ॉम्बीज़ की फ़सल तैयार कर रहा है संघ परिवार
अविनाश (मुम्बई)
सोमवार (31 जुलाई, 2023) को एक दिल दहला देने वाली घटना घटी। सुबह करीब 5:20 के आस-पास मुंबई जाने वाली, 12956 जयपुर-मुंबई सुपरफास्ट एक्सप्रेस में, रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के एक कांस्टेबल चेतन सिंह ने चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। कांस्टेबल चेतन सिंह द्वारा मारे गये लोगों में से एक उसका वरिष्ठ सहयोगी था व बाकी तीन ट्रेन में सफर कर रहे मुस्लिम यात्री थे। यह ट्रेन सुबह 6:55 में मुंबई सेंट्रल पहुंचने वाली थी। जब घटना घटी, तब ट्रेन वापी और पालघर स्टेशन के बीच थी।
अपने वरिष्ठ सहयोगी टीकाराम मीणा को गोली मारने के बाद सबसे पहले कांस्टेबल चेतन सिंह ने 60 वर्षीय अब्दुल कादरभाई भानपुरवाला की हत्या कोच नं. B-5 में की, फिर उसके बाद सदर मोहम्मद हुसैन की और अन्त में कई कम्पार्टमेंट पार करने के बाद, S-6 में 35 वर्षीय असगर अब्बास अली को गोली से मार दिया। जैसे ही असगर अली का शरीर नीचे गिरा, कांस्टेबल चेतन सिंह ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत से भरा एक छोटा सा भाषण देना शुरू किया, “अगर हिंदुस्तान में रहना है, तो योगी और मोदी को वोट देना होगा…”
एक वरिष्ट अधिकारी ने कांस्टेबल चेतन सिंह को मानसिक तौर पर असन्तुलित बताया है। बिल्कुल, सही बात है! जब कोई मुसलमान कोई ऐसा साम्प्रदायिक काण्ड करे, तो वह आतंकवादी कहलायेगा और उस पर रासुका, पोटा, टाडा सबकुछ लगा दिया जायेगा। लेकिन अगर कोई संघी रुग्ण साम्प्रदायिक फ़ासीवादी मानसिकता का व्यक्ति ऐसी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देगा तो वह “मानसिक रूप से असन्तुलित” कहलायेगा!
ऐसी रुग्ण साम्प्रदायिक ज़हर से ग्रसित आबादी कैसे पैदा हो रही है? यह समझने की ज़रूरत है कि यह एक दिन में तैयार नहीं होती। बल्कि इसके लिए पूरा माहौल सालों से तैयार किया जा रहा है। यह अपने आप में इकलौती घटना नहीं है। ऐसी ही साम्प्रदायिक नफ़रत से लैस घटना अभी हाल ही में 24 अगस्त को उत्तरप्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में घटी है। यह घटना गुरुमंसूरपुर पुलिस थाने के अन्तर्गत आने वाले खुब्बापुर गाँव में हुई जिसमें एक शिक्षिका तृप्ता त्यागी, एक बच्चे को मुस्लिम होने की वजह से सज़ा दे रही थी। इस घटना में वह उस बच्चे को अन्य बच्चों से पिटवाते हुए कह रही है, “मैंने तो घोषणा कर दिया, जितने भी मुसलमान बच्चे हैं, इनके वहाँ चले जाओ।” फिर पीटने वाले बच्चों को डाँटते हुए कह रही है “क्या तुम मार रहे हो? ज़ोर से मारो ना।”
इसी तरह देशभर में अलग-अलग जगह साम्प्रदायिक दंगों व तनाव की घटनाएँ घटी हैं। भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) के कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मुस्लिम और ईसाई समुदायों का आर्थिक बहिष्कार करने का संकल्प लिया। इस कार्यक्रम में बस्तर के पूर्व लोकसभा सांसद भी मौजूद थे। मुजफ्फरपुर(बिहार), शबाना नाम की एक महिला और एक लड़के को रामनवमी रैली में हिस्सा ले रहे 10-12 लोगों के एक समूह ने पीटा और “मुल्ले काटे जायेंगे” जैसे नारे लगाये। ख़बर यह है कि ये सब बजरंग दल से जुड़े हुए थे। रामानगर (कर्नाटक) में पुनीथ केरेहाली के नेतृत्व में पाँच गोरक्षकों ने एक मुस्लिम पशु व्यापारी इदरीस पाशा का पीछा किया और उसे पीटा, जिससे उसकी मौत हो गयी। उन्होंने पाशा से कहा, “पाकिस्तान वापस जाओ।” पाशा के परिवार ने आरोप लगाया कि गोरक्षकों ने उसे छोड़ने के लिए पाशा से 2 लाख रुपये की माँग की थी। ये घटनाएँ किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अन्दर तक झकझोर कर रख सकती हैं और यह सवाल पूछने पर मजबूर कर सकती हैं कि आख़िर देश किस तरफ जा रहा है?
बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा व तनाव के पीछे भाजपा व आरएसएस का साम्प्रदायिक फ़ासीवादी एजेण्डा है ज़िम्मेदार
भाजपा ने सत्ता में आने के बाद ‘हिदुत्ववादी’ एजेण्डे के तहत साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का काम बहुत तेजी से किया है, जिसकी पुष्टि इण्डिया स्पेण्ड की हालिया पहल पर बनी एक स्वतन्त्र एजेंसी ‘हेट क्राइम वॉच’ भी करती है। जिसके अनुसार पिछले दशक में दर्ज किये गये लगभग 91 प्रतिशत नफ़रती अपराध (HATE CRIME) प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के चलते हुए हैं। हेट क्राइम वॉच द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, जनवरी 2009 से 30 अप्रैल, 2019 तक दर्ज किये गये 287 नफ़रती अपराधों में से 262 पिछले पाँच वर्षों में हुए। उत्तर प्रदेश, जो भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जिसका नेतृत्व आज भाजपा के फायरब्राण्ड साम्प्रदायिक नेता अजय सिंह बिष्ट उर्फ “योगी आदित्यनाथ” कर रहे हैं, यहाँ नफ़रती अपराधों की संख्या भी सबसे अधिक दर्ज की गयी है। हेट क्राइम वॉच ने पाया कि लगभग 66 प्रतिशत मामले भाजपा शासित राज्यों में हुए हैं। मई 2014 से 30 अप्रैल, 2019 के बीच देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 23 राज्यों में धार्मिक पूर्वाग्रह से प्रेरित नफ़रती अपराधों से सम्बन्धित घटनाओं में 99 लोग मारे गये और लगभग 703 घायल हुए है। अन्य राज्यों में भी ज़्यादातर मामले भाजपा और संघ परिवार की गुण्डा वाहिनियों द्वारा किये गये हैं।
एक और बात जो अधिक स्पष्ट हुई कि 83 प्रतिशत नफ़रती अपराध उन हमलावरों द्वारा किये गये थे, जो कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित संघ परिवार के अनुषंगी संगठनों से जुड़े थे, जैसे की बजरंग दल, हिंदू युवा वाहिनी और विश्व हिन्दू परिषद व अन्य। साथ ही कुछ भाजपा और शिवसेना के राजनीतिक दलों में भी शामिल थे। बजरंग दल के सदस्य सबसे अधिक संख्या में नफ़रती अपराधों में शामिल पाये गए। हेट क्राइम के 30 मामलों में बजरंग दल के सदस्यों के शामिल होने का आरोप था।
हेट क्राइम वॉच की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक नफ़रती अपराधों वाला जिला दक्षिण कन्नड़ है। जिसके बाद राजस्थान का अलवर जिला आता है। यहीं पर स्वयंभू गौरक्षकों ने 2017 में पहलू खान और 2018 में रकबर खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। अलवर के बाद, कृषि की दृष्टि से समृद्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ और शामली जिले आते हैं जहाँ 2013 के साम्प्रदायिक नरसंहार के बाद से अब तक धार्मिक और जातीय हिंसा की आग सुलगाकर रखने की कोशिशें जारी हैं।
नफ़रती प्रोपगैण्डा की मशीनरी से खड़े किये जा रहे है साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ज़ॉम्बीज़
एक पूरी ज़िन्दा-मुर्दा नरभक्षी आबादी की फ़सल खड़ी की जा रही है, जिनकी इन्सानियत पूरी तरह मर चुकी है। नफ़रत और द्वेष का ज़हर लगातार परोसा जा रहा है, जिससे सोचने-समझने की पूरी ताकत क्षीण होती जा रही है। ऐसे संवेदनविहीन व ‘इन्सानियत की बुनियादी शर्तें’ खो देने वाली ज़िन्दा-मुर्दा ज़ॉम्बीज़ की पूरी फ़सल खड़ी की जा रही रही है। इन ज़ॉम्बीज़ की फ़सल को उगाने में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है जिसे आज कल गोदी, बिकाऊ, दलाल (एजेंट) और दंगाई मीडिया के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन के 24 घंटे लगातार हिन्दू-मुसलमान व पाकिस्तान के नाम पर साम्प्रदायिक ज़हर घोलता रहता है। इन भाजपा/आरएसएस समर्थक समाचार चैनलों में प्रमुख हैं, रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ, इण्डिया टुडे और सीएनएन-न्यूज़ 18, और हिन्दी टीवी चैनल में ज़ी न्यूज़, एबीपी न्यूज़, आज तक, इण्डिया टीवी, सुदर्शन न्यूज़, न्यूज़ नेशन और न्यूज़24 है। इन चैनलों के अलावा, भारतभर में क्षेत्रीय भाषाओं में कई और समाचार और कम से कम 18 हिन्दू धार्मिक चैनल हैं, जो “हिन्दू राष्ट्र” की स्थापना के नाम पर फ़ासीवादी सत्ता को मज़बूत करने के लिए साम्प्रदायिक और मज़दूर-विरोधी ताकतों के एजेण्डे को बढ़ावा देते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह सब स्टेट स्पॉन्सर्ड यानी ‘राज्य प्रायोजित’ है।
इनमें से कुछ टीवी चैनलों में कुछ भाजपा और आरएसएस नेताओं, सांसदों और समर्थकों का स्वामित्व है या सीधे हिस्सेदारी है। जैसे रिपब्लिक टीवी का एंकर और फाउंडर अर्णब, मनोरंजन गोस्वामी का बेटा है, जो भाजपा में शामिल था। सिद्धार्थ भट्टाचार्य, अर्णब का मामा हैं, जो भाजपा विधायक और असम की राज्य सरकार में मन्त्री है। रिपब्लिक टीवी में पहले केन्द्र सरकार में मंत्री राजीव चन्द्रशेखर की बड़ी भागीदारी थी जे बाद में उसने अर्णब गोस्वामी को सौंप दी। सीएनएन-न्यूज़़18 चैनल का स्वामित्व प्रधानमन्त्री मोदी के ख़ास मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास है, इसलिए मुसलमानों के प्रति इसके पूर्वाग्रह को समझाने के लिए किसी विवरण की आवश्यकता नहीं है। ज़ी न्यूज़़ – यह एस्सेल समूह के स्वामित्व वाले कई हिन्दी, अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा समाचार चैनलों में से एक है। चैनल का मालिक सुभाष चन्द्रा भाजपा के समर्थन से राज्यसभा सदस्य बना था। इसलिए चैनल पर हिन्दुत्व एजेण्डे को बढ़ावा देना और मुस्लिम विरोधी हमला हमेशा जारी रहता है। इसके अलावा सबसे नंगे किस्म का दंगाई सुदर्शन न्यूज़़ चैनल है। यह चैनल मुस्लिम विरोधी सामग्री लगातार प्रसारित करता है और साम्प्रदायिक रंग के साथ फ़र्ज़ी ख़बरें बनाता है। इसका मालिक, सुरेश चव्हाण, लम्बे समय तक आरएसएस का स्वयंसेवक था। हाल ही में सुदर्शन न्यूज़ ने हथियार उठाने के खुले आह्वान से लेकर पत्थरबाज़ों के लिए “स्थायी इलाज” की माँग की है, जो हिटलर के “अन्तिम समाधान” के आह्वान की तरह लगता है।
नफ़रत फैलाने वालों को भाजपा ने राज्य सत्ता का पूरा संरक्षण भी दे रखा है। ‘सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का’! इसलिए मोनू मानेसर, बिट्टू बजरंगी और इसी प्रकार के अन्य दंगाई नफ़रती चिण्टुओं को ज़मीन पर खुले तौर पर नफ़रती साम्प्रदायिक भाषण देने की छूट मिली हुई है। कई जगह सभाएँ की जा रही हैं, खुलेआम “हिन्दू राष्ट्र” के नाम पर मुस्लिमों के फ़ासीवादी नरसंहार का आह्वान किया जा रहा है। नूंह में जब हाईकोर्ट के जज ने बुलडोज़र राज और ‘साम्प्रदायिक जनसंहार’ की बात की तो उनका तबादला करवा दिया गया। बिलकिस बानो के बलात्कारियों को कैद से रिहा करा दिया जाता है और बाद में भाजपा के मन्त्री द्वारा पुष्प-मालाओं से स्वागत किया जाता है। ऐसे में जो जितनी नफ़रत भरी बात करेगा, उसे उतना भाजपा में उतना ऊँचा स्थान मिलेगा। इसका हालिया उदाहरण कपिल मिश्रा के रूप में देखने को मिल जाता है, जिसने जामिया मिल्लिया और शाहीन बाग पर साम्प्रदायिक घृणा फैलाने वाले भाषण दिये थे। अब उसे दिल्ली बीजेपी का उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है! मतलब, भाजपा में भर्ती की आज दो शर्तें हैं: या तो आप अव्वल दर्जे के कमीने दंगाई हैं या आप भयंकर भ्रष्ट व्यक्ति हैं। आप में अगर दोनों में से कोई भी “क्षमता” है, तो भाजपा में नेतागीरी करने के आपके लिए दरवाज़े खुले हैं।
इसके अलावा केरला स्टोरी, 72 हूरें, कश्मीर फ़ाइल्स और अन्य झूठे प्रोपेगेण्डा वीडियो-गानों के माध्यम से भी लोगों में लगातर साम्प्रदायिक ज़हर घोला जा रहा है। यह सब एक कुण्ठित, बीमार, मानवताविहीन और मनोरोगी किस्म की टुटपुँजिया आबादी को निर्मित कर रहे हैं। ऐसे में इस संघी फ़ासीवादियों की विनाशकारी मुहिम का एक ही इलाज है और वह है जन प्रतिरोध! इसे संगठित करने में हर इन्साफ़पसन्द नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी तय करनी होगी। शिक्षा, रोज़गार, महँगाई, चिकित्सा आदि जीवन से जुड़े असल मुद्दों के आधार पर जनता की जुझारू जनएकजुटता खड़ी करनी की ज़िम्मेदारी उठानी ही होगी। आज जनता का अच्छा-ख़ासा हिस्सा इस बात को समझ रहा है कि देश में दंगे और साम्प्रदायिकता की जो लहर फैलायी जा रही है, उसका मुख्य कारण यह है कि मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में देश की जनता को केवल बरबादी दी है, बेरोज़गारी, महँगाई और भ्रष्टाचार दिया है। ऐसे में, अपने काम पर मोदी सरकार वोट माँग नहीं सकती। उसके पास आख़िरी चारा यही है कि फिर से साम्प्रदायिकता का तन्दूर गर्म किया जाय, समाज में साम्प्रदायिक नफ़रत का ज़हर घोला जाये। नूंह में यही प्रयास जारी है। लेकिन इस बार मेवात की और हरियाणा की जनता इस चक्कर में पड़ने से इन्कार कर रही है। ऐसे में, भाजपा व संघ परिवार साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए और भी ज़्यादा ज़ोर लगायेंगे। जनता को सावधान रहना होगा।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2023
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