आरटी पैकेजिंग के श्रमिकों का संघर्ष
– अनन्त
गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा की औद्योगिक पट्टी में शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रता है, जब श्रमिकों का संघर्ष न होता हो! एक कारख़ाने का संघर्ष थमा नहीं कि दूसरे में शुरू हो जाता है। जेएनएस, हुण्डई मोबिस के मज़दूरों का संघर्ष थमा ही था कि एक अन्य कारख़ाने से विरोध के स्वर उभरकर सामने आने लगे। पहली अप्रैल को धारूहेड़ा स्थित आरटी पैकेजिंग लिमिटेड (ए रोलोटेनरस् ग्रुप कम्पनी) के मज़दूर संघर्ष की राह पर चल पड़े। यहाँ के श्रमिक अचानक काम से निकाले जाने के ख़िलाफ़ तथा चार महीने की बकाया तनख़्वाह और हिसाब चुकता करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे अपनी माँगों को लेकर कम्पनी गेट पर शान्तिपूर्ण तरीक़े से धरने पर बैठे हुए हैं। रिपोर्ट लिखे जाने तक उनका धरना जारी है।
यह कम्पनी प्लॉट नम्बर 73-74, फ़ेस-III औद्योगिक क्षेत्र, 123106 में धारूहेड़ा, (ज़िला रेवाड़ी, हरियाणा) में स्थित है। यह कम्पनी पैकेजिंग मटीरियल और सर्विस प्रदान करती है। इस कम्पनी ने भी श्रमिकों की छँटनी का वही पुराना हथकण्डा अपनाया, जो इस पट्टी की अन्य कम्पनियाँ अपनाती रही हैं। मज़दूरों की तरफ़ हर तरह की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कम्पनी ने उन्हें बिना किसी पूर्वसूचना के अचानक काम से निकाल दिया। श्रमिकों से 31 मार्च तक काम कराया गया और अगले दिन बिना किसी नोटिस पीरियड के उनकी छुट्टी कर दी गयी। कम्पनी ने नोटिस चिपका दिया कि कम्पनी का कारोबार घाटे में है, इसलिए काम बन्द किया जा रहा है। जब तक दोबारा काम शुरू नहीं किया जाता, तब तक नो वर्क–नो पेमेण्ट (काम नहीं तो पैसा नहीं) का नियम लागू होगा। श्रमिकों से कहा गया कि काम शुरू होने पर अगर ज़रूरत पड़ी तब ही काम पर वापस बुलाया जायेगा, तब तक के लिए श्रमिक इन्तज़ार करें। कम्पनी द्वारा दोबारा काम पर कब और किन शर्तों पर बुलाया जायेगा यह अस्पष्ट है। ऐसे में श्रमिक प्रबन्धन से हिसाब चुकाने की माँग कर रहे हैं। ग़ौरतलब है कि कम्पनी ने श्रमिकों को पिछले चार महीने के वेतन का भुगतान नहीं किया है, और अब अनिश्चितकाल के लिए काम बन्द कर रही है। सालों से इस कारख़ाने में काम कर रहे श्रमिक अचानक से बेरोज़गार हो गये हैं। इस उम्र में किसी नयी जगह काम मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में श्रमिकों के लिए संघर्ष के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।
कारख़ाना प्रबन्धन द्वारा बकाया वेतन के भुगतान तथा हिसाब चुकाने की माँग करने पर श्रमिकों को महज़ झूठा आश्वासन दिया जा रहा है। श्रमिकों द्वारा श्रम विभाग में शिकायत के बावजूद फ़िलहाल कम्पनी प्रबन्धन ने अभी तक कोई पैसा नहीं दिया है। श्रम विभाग, श्रमिक पक्ष तथा प्रबन्धन पक्ष के बीच हुई शुरुआती त्रिपक्षीय वार्ता में प्रबन्धन ने 19 अप्रैल तक भुगतान करने का आश्वासन दिया था। किन्तु इस तारीख़ के बाद श्रमिकों को अगली तारीख़ मिल गयी, लेकिन भुगतान आज तक नहीं हुआ। इस कारख़ाने में श्रमिकों को पहले भी इसी प्रकार से निकाला जाता रहा है। ज्ञात रहे कि पहले यहाँ मज़दूरों की संख्या एक हज़ार के क़रीब थी।
केवल इस कारख़ाने में ही नहीं, बल्कि पूरी औद्योगिक पट्टी में कम्पनियाँ रोज़ाना ही श्रमिकों को अलग-अलग बहाने बनाकर निकालती रहती हैं। सालों साल काम कराकर उन्हें गन्ने की तरह निचोड़कर छोड़ दिया जाता है। श्रमिकों को कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता। उनके किसी भी प्रकार के अधिकार की हिफ़ाज़त नहीं की जाती। सरकार-श्रम विभाग-पुलिस प्रशासन का गठजोड़ इस बात को सुनिश्चित करता है कि श्रमिक इसके ख़िलाफ़ आवाज़ न उठा सकें। असल में आज पूरे देश के साथ-साथ इस पट्टी में भी श्रमिकों का पक्ष कमज़ोर है। आज मज़दूर अलग-अलग कारख़ानों की चौहद्दियों में क़ैद हैं, जबकि ज़रूरत है कि इलाक़ाई व सेक्टरगत आधार पर एकजुटता क़ायम कर संघर्ष को आगे बढ़ाया जाये। बीते दो दशक का हर बड़ा छोटा संघर्ष इस ज़रूरत की पुष्टि करता है।
मज़दूर बिगुल, मई 2022
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