हरियाणा में राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल का मतलब शिक्षा का और बाज़ारीकरण

– आशु

पिछले दिनों हरियाणा में खट्टर सरकार ने शिक्षा के बाज़ारीकरण के लिए एक और क़दम उठाया।
ज्ञात हो कि हरियाणा प्रदेश में लगभग 1000 से ज़्यादा प्राथमिक स्कूलों को मॉडल संस्कृति स्कूल में बदलने का फ़ैसला लिया गया था। इस वर्ष से मॉडल संस्कृति स्कूल में छात्रों से एडमिशन फ़ीस 500 रुपये व हर माह 200 रुपये फ़ीस का प्रावधान किया गया है जो सीधे तौर पर ‘शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009’ के तहत मिलने वाली मुफ़्त शिक्षा के अधिकार का उल्लघंन है। हम जानते हैं कि ‘शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009’ की धारा (3) में 6-14 वर्ष की उम्र के प्रत्येक बच्चे को अपने पड़ोस के स्कूल (नेबरहुड स्कूल) में निशुल्क व अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। साथ ही धारा (6) में भी स्पष्ट किया गया है कि कक्षा 1-5 तक के लिए 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूल स्थापित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।
दूसरी बात इन स्कूलों में एडमिशन की शर्त है कि छात्रों को केवल अंग्रेज़ी माध्यम से ही पढ़ाई करनी होगी। ये नियम भी सरकार की नयी शिक्षा नीति का उल्लघंन करता है क्योंकि एक तरफ़ तो नयी शिक्षा नीति के तहत मातृ/क्षेत्रीय भाषाओं में बुनियादी शिक्षा देने की बात की जाती है दूसरी तरफ़ अंग्रेज़ी माध्यम थोपकर छात्रों को मातृभाषा में पढ़ने से वंचित किया जा रहा है। यानी जो परिवार फ़ीस नहीं दे सकता है या जो बच्चे अंग्रेज़ी माध्यम में नहीं पढ़ना चाहते उन छात्रों से सरकार शिक्षा के अधिकार को छीन रही है। ये क़दम भी भाजपा-संघ परिवार के नक़ली राष्ट्रवाद की पोल खोल रहा है।
वहीं हरियाणा में कार्यरत एक अध्यापक ने बताया कि पिछले 7 साल से सरकार ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का ढिंढोरा पीट रही है जबकि काफ़ी स्कूलों में सफ़ाई कर्मचारी ही नहीं हैं! कुछ स्कूलों में ना तो कोई कच्चा सफ़ाई कर्मचारी है और ना कोई पक्का। ऐसे में कई जगह स्कूल के अध्यापक ही पैसे इकट्ठे करके ठेके पर किसी मज़दूर से काम करवा रहे हैं। अभी मेवात और मोरनी हिल में टीचर की इतनी कमी है कि सरकार ने एक सर्कुलर जारी करके 10 प्रतिशत वेतन ज़्यादा देकर अन्य क्षेत्रों से टीचर को भेजने का फ़ैसला किया है। ऐसे में जिन स्कूलों से टीचर जायेंगे उन स्कूल में टीचरों की कमी हो जायेगी। लेकिन सरकार द्वारा मॉडल स्कूलों में भी टीचर को बिना नयी भर्ती किये सामान्य स्कूलों से ही भेजा जा रहा है जो आने वाले दिनों में सरकारी स्कूलों में ही एक ग़ैर-बराबरी पैदा कर देगा। आज हरियाणा के सरकारी स्कूलों में 34 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों के नियमित पद ख़ाली पड़े हैं तमाम स्कूलों में प्रधानचार्यों से लेकर स्टाफ़ की कमी है। जबकि हरियाणा में पढ़े-लिखे बेरोज़गार नौजवानों की बहुत अधिक संख्या है जिनकी पक्की भर्ती करके स्कूल शिक्षा को बेहतर किया जा सकता है लेकिन सभी पूँजीवादी पार्टियों का मक़सद है शिक्षा का बाज़ारीकरण करना। ऐसे में हरियाणा के इन्साफ़पसन्द लोगों को शिक्षा के बाज़ारीकरण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए। हमारी माँग होनी चाहिए 1.) मॉडल संस्कृति स्कूलों में फ़ीस व अंगेज़ी माध्य्म की बाध्यता ख़त्म की जाये 2) सरकार द्वारा संचालित सभी स्कूल में ‘एक समान-स्कूल’ की व्यवस्था की जाये 3) शिक्षा के बजट में बढ़ोत्तरी की जाये 4) प्रदेश में ख़ाली पड़े शिक्षकों के पदों पर तत्काल नियमित भर्ती की जाये और अस्थाई तौर पर काम कर रहे शिक्षकों को नियमित किया जाये।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2022


 

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