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आसाराम बापू पर बलात्कार का आरोप
आख़िर कब खोलोगे अन्धी आस्था की पट्टी अपनी आँखों से?
आसाराम बापू पर एक बार फिर एक किशोरी के साथ बलात्कार का आरोप लगा है। इससे पहले भी उस पर बच्चों के साथ दुष्कर्म के आरोप कई बार लग चुके हैं। ये वही आसाराम बापू है जिसने यह बेहूदा बयान दिया था कि 16 दिसम्बर को दिल्ली में जिस लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना घटी, वह इसके लिए खुद ज़िम्मेदार थी; क्योंकि उसने इन पाशविक अपराधियों के सामने घुटने टेककर, हाथ जोड़कर दया की भीख माँगने की बजाय लड़ना और मुक़ाबला करना पसन्द किया।
साधु-सन्तों, तांत्रिकों आदि द्वारा स्त्रियों के साथ दुष्कर्म की शिकायतें अनगिनत हैं। मगर ऐसी ज़्यादातर शिकायतें दबा दी जाती हैं या सबूत न मिलने, गवाहों के मुकर जाने आदि के कारण कोई कार्रवाई नहीं होती। अन्धश्रद्धा के मारे शिष्यों और बाबाओं से हित सधाने वाले चेले-चाँटियों की तादाद भी काफी बड़ी होती है और धर्म के ठेकेदार भी उनके साथ खड़े हो जाते हैं। इसलिए उन पर लगे दुष्कर्म के आरोपों को साज़िश या छवि धूमिल करने का प्रयास कहकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। ऐसे अनगिनत धार्मिक बाबा और धर्म का व्यापार करने वाले ठेकेदार हैं जिन पर बलात्कार, हत्या, अपनी भक्तिनों के यौन-उत्पीड़न, आश्रमों में वेश्यालय चलवाने आदि जैसे आरोप हैं!
आसाराम बापू पर यह पहला आरोप नहीं है। पहले भी उस पर बच्चों के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा था। 2008 में उसके आश्रम के बाहर दो बच्चों के मृत पाये जाने पर भी ऐसे आरोप लगे थे और आसाराम के एक करीबी आश्रम कर्मचारी ने उनके दुष्कर्मों का खुलासा किया था। अभी जोधपुर में अपने आश्रम की जिस 13 वर्षीय लड़की ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया है, उसने ख़ुद पुलिस में रिपोर्ट लिखायी है। बलात्कार सम्बन्धी क़ानून के तहत पीड़ित स्त्री का बयान ही गिरफ़्तार करने के लिए काफी माना जाता है। लेकिन इस ढोंगी बाबा को गिरफ़्तार करना तो दूर, पुलिस ने अब तक उससे पूछताछ भी नहीं की है। ये वही आसाराम बापू है जिस पर आश्रम के लिए किसानों की ज़मीन कब्ज़ा करने से लेकर अपने आश्रम के कर्मचारी की हत्या कराने जैसे गम्भीर आरोप लगे हैं। लोगों को भक्ति और त्याग के प्रवचन देने वाले इस बाबा के पास अरबों-खरबों की सम्पत्ति है। मर्दानगी की दवा से लेकर चूरन-साबुन तक के कारोबार से ही सैकड़ों करोड़ की कमाई होती है। धर्म और धन की ताक़त से हर काले कारनामे पर पर्दा डाल दिया जाता है।
इस बार भी साधु-सन्त और हिन्दू धर्म का झण्डा ढोने वाले संगठन पूरी बेशर्मी के साथ आसाराम के समर्थन में खड़े हो गये हैं। हिन्दू संस्कृति की रक्षा का दावा करने वाले विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल खुल्लमखुल्ला आसाराम के बचाव में आ गये हैं। भाजपा और संघ के तमाम हिन्दुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता दिल्ली की सड़कों पर बलात्कारी बाबा के पक्ष में प्रदर्शन करने उतर आये। और भला उनसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है? देश में “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” और धार्मिक उन्माद के ध्वजाधारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 16 दिसम्बर के सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद कहा था कि बलात्कार की बढ़ती घटनाओं का कारण यह है कि उस भारतीय परम्परा का पालन नहीं हो रहा है जिसके अनुसार स्त्रियों को सिर्फ़ गृहिणी होना चाहिए! बाहर निकलने और कमाने की ज़िम्मेदारी केवल मर्दों की होनी चाहिए। वे यह भी बोले कि पश्चिमी मूल्यों के प्रभाव के कारण स्त्री-विरोधी अपराध हो रहे हैं और इसीलिए वे ‘भारत’ में नहीं हो रहे हैं, ‘इण्डिया’ में हो रहे हैं! हिटलर और मुसोलिनी के विचारों में यक़ीन रखने वालों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? हिटलर और मुसोलिनी भी यही कहते थे कि स्त्रियाँ घर सम्भालने और बच्चा पैदा करने का यन्त्र हैं। ज़ाहिर है, जर्मन और इतालवी फ़ासीवाद की जारज भारतीय औलादों से स्त्रियों के प्रति और किसी नज़रिये की उम्मीद नहीं की जा सकती। सबसे शर्मनाक यह है कि संघ को अपना मार्गदर्शक संगठन बताने वाली भाजपा की महिला नेता भी संघी नेताओं और हिन्दू बाबाओं के स्त्री-विरोधी अपराधों और बयानों के समर्थन में खड़ी हो जाती हैं। जब गुजरात में नरेन्द्र मोदी की देखरेख में विहिप और बजरंग दल के गुण्डों की अगुवाई में पागल भीड़ सड़कों पर औरतों का बलात्कार कर रही थी और तलवारों से गर्भवती स्त्रियों का पेट चीरकर अजन्मे शिशुओं को मार रही थी तब भी ये तथाकथित महिला नेत्रियाँ चुप थीं और अब उसी मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का समर्थन कर रही हैं।
सवाल सिर्फ़ एक बाबा या सिर्फ़ हिन्दू धर्म का नहीं है। न जाने कितने ईसाई पादरियों पर बच्चों और ननों के यौन शोषण के आरोप लगे हैं। मौलवी और इमाम भी इसमें पीछे नहीं हैं। स्त्री-विरोधी बयान और फतवे जारी करने में इस्लामिक कट्टरपंथी मुल्ले कब पीछे रहते हैं? कभी जमात-ए-इस्लामी हिन्द के कठमुल्ले ऐलान करते हैं कि स्त्री-विरोधी अपराधों को रोकने के लिए स्त्रियों और पुरुषों की बचपन से अलग पढ़ाई होनी चाहिए, तो कभी कोई कट्टरपंथी नेता बयान देता है कि लड़कियों को मोबाइल फोन पर बात करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए।
हमारे देश की नेताशाही की भी सोच धार्मिक कट्टरपंथियों और रूढ़िवादियों से भिन्न नहीं है। जब पूरा देश अपनी एक बेटी के बलात्कार और हत्या के ख़िलाफ़ सड़कों पर उबल रहा था, उसी समय इस देश की संसदों-विधानसभाओं में बैठने वाले तथाकथित जनप्रतिनिधि क्या कह रहे थे? ममता बनर्जी ने कहा कि आधी रात को लोग हाथों में हाथ डालकर घूमेंगे तो ऐसी घटनाएँ तो घटेंगी ही; तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा कि स्त्रियाँ जब सीमा पार करेंगी तो उनके साथ बलात्कार ही होगा; एक भाजपा नेता ने कहा कि महिलाओं को लक्ष्मण रेखा नहीं लाँघनी चाहिए; राजस्थान के एक कांग्रेस नेता ने कहा कि स्त्रियों के स्कर्ट पहनने पर रोक लगा दी जानी चाहिए; एक सपा नेता ने लड़कियों के मोबाइल प्रयोग और जींस पहनने पर पाबन्दी लगाने की माँग की! और ये वे लोग हैं जिन पर खुद पोर्न फिल्म बनाने, बलात्कार करने, दहेज़ के लिए जलाकर मारने, छेड़खानी और यौन-उत्पीड़न करने के आरोप दर्ज़ हैं! संसद में 286 ऐसे सांसद हैं जिन पर स्त्री-विरोधी अपराधों के लिए मुकदमे चल रहे हैं! राज्यसभा के उपाध्यक्ष और कांग्रेसी सांसद पीजे कुरियन पर सामूहिक बलात्कार में शामिल होने का गम्भीर आरोप है।
ज़ाहिर है कि हम इन स्त्री-विरोधी, रूढ़िवादी, प्रतिक्रियावादी, तानाशाहाना, और बर्बर ताक़तों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे स्त्री के अधिकारों का सम्मान करेंगी, स्त्रियों को समानता का हक़ देंगी, उनकी सुरक्षा के इन्तज़ाम करेंगी, या उन्हें समाज में पुरुषों के समान मानेंगी! यही तो वे ताक़तें हैं जो स्त्री की गुलामी के लिए ज़िम्मेदार हैं, यही तो वे लोग हैं जो स्त्री-विरोधी अपराधों के लिए जवाबदेह हैं और अक्सर स्वयं उन्हें अंजाम देते हैं, यही तो वे लोग हैं जो स्त्रियों को पुरुषों की दासी समझते हैं और उन्हें पैर की जूती बनाकर रखना चाहते हैं! इनसे भला क्या उम्मीद की जा सकती है? कुछ भी नहीं! हम एक ही चीज़ कर सकते हैं: इस समाज के सभी विद्रोही, संवेदनशील और न्यायप्रिय युवा और युवतियाँ, मेहनतकश और आम मध्यवर्गीय नागरिक सदियों पुरानी रूढ़ियों, कूपमण्डूकताओं, पाखण्ड और ढकोसलेपंथ के इन अपराधी ठेकेदारों की बन्दिशों को उखाड़ कर फेंक दें, इन्हें तबाह कर दें, नेस्तनाबूद कर दें! ये हमारे देश और समाज को पीछे ले जाने वाले प्रतिक्रियावादी हैं, राष्ट्रवादी या देशभक्त नहीं! आगे अगर हम ऐसे धार्मिक कट्टरपंथियों, बाबाओं, स्त्री-विरोधियों की कोई भी बात या प्रवचन सुनते हैं, तो हममें और भेड़ों की रेवड़ों में कोई फ़र्क नहीं रह जायेगा! अगर हम इन अन्धकार की ताक़तों के ख़िलाफ़ उठ नहीं खड़े होते तो सोचना पड़ेगा कि हम ज़िन्दा भी रह गये हैं या नहीं!
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2013
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन