एक मज़दूर की आपबीती
एक मज़दूर, गुड़गाँव
जैक ग्रुप 293 प्राईवेट लिमिटेड उद्योग विहार, फेज-4, गुड़गाँव हरियाणा – कम्पनी के पहचान पत्र की यही पहचान होती है मगर मैं हीरो होण्डा चौक के पास सेक्टर-37 में स्थित इसकी कम्पनी में काम करता था। इस कम्पनी में लगभग 600 मज़दूर काम करते है और यहाँ लेदर के बैग बनते हैं। ठेकेदार सतीश की तरफ से इस कम्पनी में मेरी तनख्वाह 4500 रुपये महीने तथा 25 रुपये घण्टा ओवरटाईम था। लगभग तीन महीने तो मुझे जबर्दस्ती ओवर टाईम व नाईट लगानी पड़ी जिससे तनख्वाह सात-आठ हजार तक बन जाती थी। मगर फिर दीपावली के टाईम पर काम में अचानक मन्दी आ गई। कई मज़दूरों को 15 दिन का जबर्दस्ती रेस्ट दिया गया; जिसमें एक मैं भी था और सूनी रही दीवाली, न बोनस मिला, न मिठाई का डिब्बा। फिर काम जोर पकड़ा और ठेकेदार ने सबको फोन करके बुला लिया। मैं भी सारे गम भूलाकर फिर से लग गया। एक महीने बाद फिर काम बन्द हो गया और फिर 15 दिन का रेस्ट दे दिया गया और कुछ नहीं मिला। 15 दिन खाली बैठना पड़ा। बहुत गुस्सा आया मगर मैं कुछ नहीं कर सका क्योंकि निकाले तो बहुत गये थे; कोई रास्ता किसी के पास न था। दबी आवाज़ में एक ने कहा भी चलो हम सब मिलकर उससे (ठेकेदार) पूछते है कि ऐसा करने का तुमको क्या अधिकार बनता है? मगर साहस न हुआ किसी को। सब एकदूसरे का मुँह ताक रहे थे कि कोई आगे चल पड़े। किसी की हिम्मत न पड़ी क्योंकि सबको डर था कि कहीं मेहनत का पैसा भी न डूब जाये। और करीब 15-20 मज़दूरों ने तनख्वाह लेकर काम छोड़ दिया; जिसमें एक मैं भी था। फिर कल ठेकेदार सतीश का फोन आया कि आजा काम दबाकर चल रहा है तब मैंने फोन पर अपने दिल की भड़ास निकाली।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल-मई 2013
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