डीएमकेयू ने क़ानूनी संघर्ष में एक क़दम आगे बढ़ाया।

पिछले दिनों दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन ने आम सभा बुलाकर यूनियन पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी का चुनाव किया। सभा में चुने गये पदाधिकारियों ने यूनियन के पंजीकरण की कार्रवाई को आगे बढ़ाने की एक ठोस योजना बनायी। दिल्ली मेट्रो रेल प्रशासन और उसके तहत काम करने वाली ठेका कम्पनियों के ख़िलाफ़ ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ लम्बे समय से श्रम-क़ानूनों को लागू कराने का संघर्ष लड़ रही है। पिछले तीन वर्ष में यह संघर्ष काफ़ी उतार-चढ़ाव से गुज़रा है।

जैसा कि आप जानते ही होगें कि दिल्ली मेट्रो रेल में क़रीब 70 फ़ीसदी आबादी ठेका मज़दूरों की है जिसमें मुख्यत: सफ़ाईकर्मी, गार्ड तथा टिकट व मेण्टेनेंस ऑपरेटर हैं। इस मज़दूर आबादी का शोषण चमकते मेट्रो स्टेशनों के पीछे छिपा रहता है। ठेका मज़दूरों को न तो न्यूनतम वेतन, न ही ईएसआई कार्ड और साप्ताहिक अवकाश जैसी बुनियादी सुविधायें ही मिलती हैं जिसके ख़िलाफ़ 2008 में सफ़ाईकर्मियों ने एकजुट होकर ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ का गठन कर अपने हक़-अधिकारों के संघर्ष की शुरुआत की थी। यूनियन ने उस बीच ‘मेट्रो भवन’ के समक्ष कई प्रदर्शन भी किये। इन प्रदर्शन से बौखलाये डीएमआरसी और सरकारी प्रशासन का तानाशाही पूर्ण रवैया भी खुलकर सामने आया जिसके तहत 5 मई के प्रदर्शन में क़ानूनी जायज़ माँगों का ज्ञापन देने गये 46 मज़दूरों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। लेकिन इस दमनपूर्ण कार्रवाई के बावजूद मज़दूरों ने संघर्ष जारी रखा।

विगत 10 जुलाई 2010 को जन्तर मन्तर पर यूनियन के बैनर तले सैकड़ों मज़दूरों के प्रदर्शन ने डीएमआरसी तथा टॉम ऑपरेटर ठेका कम्पनी को झुका दिया। यूनियन ने टॉम ऑपरेटर कम्पनी ट्रिग तथा बेदी एण्ड बेदी में न्यूनतम मज़दूरी लागू कराने में सफलता पायी। अब तक टॉम ऑपरेटरों और सिक्योरिटी गार्डों के लिए न्यूनतम मज़दूरी लागू करवाने में यूनियन सफल रही है। ज़ाहिरा तौर पर यूनियन को अभी आंशिक जीत ही मिली है। लेकिन ये जीत ऐसे दौर में मिली है जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के हक़-अधिकार लगातार छीने जा रहे हैं। सीटू, इंटक और एटक जैसी लाखों की सदस्यता वाली केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनें सफ़ेद कॉलर वाले सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के आर्थिक संघर्ष में ही अपनी गत्तो की तलवार भाँजती हैं। इसीलिए ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ के तहत मेट्रो रेल कारपोरेशन में जारी आन्दोलन की शुरुआत महत्वपूर्ण है। यह मुहिम दिल्ली मेट्रो रेल की बिखरी हुई कार्यशक्ति को एकजुट करने का प्रयास कर रही है। इस कड़ी में 15 फ़रवरी को ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ ने यूनियन के पंजीकरण के लिए श्रम विभाग में आवेदन दाखिल कर दिया है। निश्चित ही क़ानूनी पंजीकरणा यूनियन के संघर्ष में एक बढ़ा हुआ क़दम होगा लेकिन मज़दूरों को क़ानूनी संघर्ष की सीमाओं को समझना होगा और अपनी असली ताक़त पर भरोसा करना होगा। यानी उन्हें व्यापक मज़दूर एकता क़ायम करनी होगी क्योंकि आज के दौर में क़ानूनी संघर्ष में भी आप तभी कामयाबी पा सकते हैं जब आपके साथ संगठित मज़दूर आबादी हो।

 

मज़दूर बिगुलमार्च 2012

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments