अँधेरा है घना मगर संघर्ष है ठना!
होंडा मज़दूरों ने जंतर मंतर पर 52 दिनों तक की भूख हड़ताल! अब राजस्थान में करेंगे फिर से संघर्ष की शुरुआत!

8 महीने के लम्बे संघर्ष के बाद भी होंडा मज़दूर अपनी जिजीविषा और जज्बे के बदौलत लड़ रहे हैं। पिछले 19 सितम्बर से होंडा मज़दूरों ने जंतर मंतर पर अपना खूँटा गाड़ा और अपने संघर्ष की आवाज़ को देशभर के मेहनतकश अवाम के बीच ले गये। यह तब है जब होंडा मेनेजमेंट के पक्ष में सारी पुलिस, कोर्ट-कचहरी, हरियाणा सरकार, राजस्थान सरकार और मोदी सरकार खड़ी है। इस विराट ताक़त का मुकाबला करने वाले होंडा 2एफ़ कामगार समूह ने साबित किया है कि मज़दूर सही रणनीति और बहादुरी के साथ किसी भी ताक़त का मुकाबला कर सकते हैं। 16 फरवरी को बाउन्सरों और पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज, धारा 307 के तहत जेल जाना और कई बार पुलिस प्रशासन का कहर झेलने के बाद भी यह संघर्ष जारी है। देश में विदेशी और देशी पूँजी के चाकरों की सरकारों को होंडा मजदूरों ने मिसाल कायम करने वाली चुनौती दी है। परन्तु अभी संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ है अभी भी लड़ाई बाकी है।

honda-strikeइस संघर्ष ने 19 सितम्बर से एक नई तेज़ी हासिल की है। 19 सितम्बर के बाद से यूनियन के 5 साथियों नरेश मेहता, सुनील, अविनाश, रवि और विपिन ने जन्तर मन्तर पर भूख हड़ताल शुरू की। यह भूख हड़ताल पूरे 20 दिन चली जिसमें अपनी ज़िन्दगी को दाँव पर लगाकर भी ये साथी लड़ते रहे। तबियत बेहद खराब होने के बावजूद भी भूख हड़ताल पर बैठे साथियों ने अपनी ज़ि‍द और संघर्ष के दम पर इस हड़ताल को जारी रखा। कई बार साथियों की तबियत बेहद ख़राब हो गयी पर उन्होंने अस्पताल में ग्लूकोज़ लगवाने से इनकार कर दिया। 19वें दिन भी नरेश, विपिन और सुनील की तबियत काफी बिगड़ गयी थी परन्तु उन्होंने हड़ताल को अस्पताल में जारी रखा और अगले दिन जंतर मंतर पर अपने साथियों के दबाव में अनशन ख़त्म किया। इस भूख हड़ताल ने होंडा के प्लांट के अन्दर तक खलबली मचा दी थी और कम्पनी में काम करने वाले कई मज़दूर इस संघर्ष का समर्थन करने जंतर मंतर आये, कई साथी उड़ीसा, राजस्थान, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में अपने घरों से लौट आये और संघर्ष में जुट गये। अपने 5 साथियों को मौत के मुँह से बचाने के लिए यूनियन ने फ़ैसला लिया कि संघर्ष को आगे बढ़ने के लिए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की जगह साथी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठेंगे। हालाँकि क्रमिक भूख हड़ताल से शुरू करते हुए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की ओर जाना ज़्यादा तार्किक रणनीति होती है पर हमें समझना होगा कि लड़ाई को लड़ने में समय-समय पर अपनी और दुश्मन की ताक़त का आकलन करते रहना चाहिए और उसके हिसाब से अपनी लड़ाई को जारी रखना चाहिए। लम्बी लड़ाई को नज़र में रखते हुए यह ठीक फ़ैसला था। जो वक्त के अनुसार अपनी रणनीति नहीं बदलता वो युद्ध में हारता है। 52 दिन तक भूख हड़ताल चलाने के बाद 9 नवम्बर 2016 को होंडा के मज़दूरों ने अपनी क्रमिक भूख हड़ताल ख़त्म करने और राजस्थान में फिर से अपना संघर्ष जारी रखने का निर्णय लिया।

होंडा मज़दूरों को जन समर्थन

honda-strike-1होंडा मजदूरों को इस लड़ाई में जनता के बीच दिल्ली आने पर भारी समर्थन भी मिला। इसमें सबसे कारगर तरीका होंडा प्रोडक्ट बहिष्कार अभियान का रहा है। होंडा के संघर्ष से निकला यह विचार किस तरह एक भौतिक शक्ति बन गया यह यहाँ देखा जा सकता है। व्हाट्सएप्प पर शुरू हुआ यह अभियान होंडा मजदूरों की लड़ाई का सबसे कारगर हथियार बन गया जिसके कारण होंडा कम्पनी को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा है। 26 सितम्बर को दिल्ली में हुए बहिष्कार के बाद होंडा ने कोर्ट में जाकर होंडा मजदूरों को शोरूम के आगे प्रदर्शन न करने की माँग की और 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय बहिष्कार के बाद कम्पनी ने नरेश मेहता पर केस कर दिया कि वे सोशल मीडिया पर भी होंडा के ख़ि‍लाफ़ कोई प्रचार न कर सकें। पटना में बहिष्कार अभियान चला रहे साथियों पर होंडा के बाउन्सरों ने हमला किया जिसमें एक साथी का सर फूट गया और महिला साथियों के साथ भी बदतमीजी की गयी। जयपुर में भी होंडा के बाउन्सरों ने ऐसा ही हमला किया। कम्पनी को अखबारों में बाकायदा इश्तिहार निकलवाना पड़ा कि होंडा का बहिष्कार अभियान झूठा है परन्तु फैक्टरी भी इस सच को जानती है कि फैक्टरी में 3000 प्रशिक्षित मजदूरों को काम से निकालने के बाद लिए अप्रशिक्षित 8वीं और 10वीं पास मजदूरों से बनी गाड़ियों में दिक्कतें आ रही हैं। इस कारण होंडा के बाज़ार पर असर पड़ रहा है। हमारा मानना है कि हमें आगे लड़ाई में बहिष्कार अभियान का जमकर इस्तेमाल करना होगा क्योंकि इस हथियार ने ही होंडा को सबसे ज़्यादा तिलमिलाने पर मजबूर किया है। इस अभियान के साथ हमने न्याय संघर्ष रैली भी निकाली जिसमें धारुहेडा से दिल्ली तक पद यात्रा की गयी। 2 अक्टूबर को एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें नीमराना से लेकर गुडगाँव, मानेसर के मज़दूर व यूनियन प्रतिनिधि शामिल हुए। न्याय संघर्ष यात्रा के अन्त में जे.एन.यू में सभा आयोजित की गयी जिसे प्रशासन ने हर हाल में टालने की कोशिश की परन्तु रोक नहीं पाया।

आगे का संघर्ष

साथियों जंतर मंतर पर शुरू हुए संघर्ष को पूरे 52 दिन तक जुझारू स्पिरिट से लड़ा गया। पिछले 8 महीनों में हमने सबसे अधिक जनसमर्थन जुटाया है। यह समर्थन हमें इसलिए मिला कि हम जंतर मंतर पर खूंटा गाड़ कर बैठे थे व इस संघर्ष को लगातार जनता के बीच लेकर जा रहे थे। बहिष्कार अभियान के ज़रिये होंडा के म़नाफ़े पर चोट कर रहे थे। अब हमें आगे इस संघर्ष को बढाने के लिए इस अनुभव का सार संकलन करना चाहिए। सबसे ज़रूरी बात यह कि हम अपने संघर्ष को तब तक चला पायेंगे जब तक हमें खूँटा गाड़कर बैठने की जगह मिले। यह जगह चाहे दिल्ली में हो, जयपुर में या अलवर में मिले परन्तु हमें एक जगह जमकर विरोध प्रदर्शन करना चाहिए। दूसरा हमें जनता के बीच अपनी बात को पहुँचाते रहना चाहिए जिससे कि हमारी लड़ाई को व्यापक जनसमर्थन मिले। इसमें बहिष्कार अभियान काफी कारगर रहा है जिसे हमें आगे भी जारी रखना चाहिए व जनता तक जाने के लिए अन्य माध्यमों का इस्तेमाल करना चाहिए। अन्त में सबसे ज़रूरी बात यह कि किसी भी आन्दोलन या संघर्ष को पुलिस की गोलियाँ, जेल और लाठियाँ नहीं तोड़ सकती हैं, कोई भी आन्दोलन सिर्फ़ अपनी आन्तरिक कमज़ोरी या अन्‍दरूनी बिखराव की वजह से टूटता है। आपसी एकता कायम रखने का एकमात्र तरीका यूनियन जनवाद को लागू करना है क्योंकि सिर्फ़ यही यूनियन नेतृत्व को मज़बूत बनता है और यूनियन के सदस्य नेतृत्व के फ़ैसले पर हर हाल में अडिग रहते हैं। यह इस संघर्ष में भी लागू करना चाहिए और अपनी जीत सुनिश्चित करने की सही रणनीति को मिलकर लागू करना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2016


 

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