अस्पताल या कसाईखाना
एक मज़दूर, गाज़ियाबाद
जयभगवान ग़ाजि़याबाद के पास एक छोटे से कस्बे गढ़ के रहने वाले हैं। पिछले कई सालों से नोएडा में एक हलवाई की दुकान पर मेहनत-मज़दूरी का काम कर रहे हैं। उनके पास रहने का कोई निश्चित ठौर-ठिकाना नहीं है। कभी कहीं झुग्गी डाल लेते हैं, तो कभी किराये के कमरे में भी रह लेते हैं। पिछले महीने उनकी तबयित अचानक बिगड़ गयी। उन्हें पेट में दर्द की शिकायत हुई तो अपने मोहल्ले के एक डॉक्टर टी.के. बाला (झोलाछाप) की क्लीनिक पर गये। उसने उन्हें ग़ाजियाबाद के एक दूसरे अस्पताल जीवन ज्योति में इलाज करवाने के लिए भेज दिया। जीवन ज्योति में पहुँचकर डॉक्टर ने सोनोग्राफी करवाने के लिए कहा और रिपोर्ट आने पर बताया कि हालत बहुत गम्भीर है और तुरन्त ऑपरेशन करना पड़ेगा। जयभगवान को बताया गया कि उसकी आँत फट गयी है। भर्ती होते वक्त जयभगवान ने 15000 रुपये जमा करवाये थे। ऑपरेशन के बाद बताया गया कि कुल बिल 80,000 रुपये का बना है। उनके परिवार के लोगों ने बताया कि उनके पास जितना भी पैसा था वे पहले ही जमा करा चुके थे और अब उनके पास कुछ नहीं हैा अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें बिना भुगतान किये डिस्चार्ज करने से मना कर दिया। जयभगवान ने जब अपने दुकान मालिक से मदद माँगी तो उसने भी हाथ खड़े कर दिये लेकिन काफ़ी आरज़ू-मिन्नत करने के बाद 8000 रुपये सूद पर उधार दिया। बाकी रक़म भी परिवार वालों ने तगड़े ब्याज पर इकट्ठा की और अस्पताल का बिल चुकाया। अस्पताल के एक कर्मचारी ने बताया कि जगह-जगह से झोलाछाप डॉक्टर उनके यहाँ 25 प्रतिशत कमीशन पर मरीज़ों को भेजते रहते हैं। जयभगवान को भी ऐसे ही एक डॉक्टर ने उनके यहाँ भेजा था। उस कर्मचारी ने यह भी बताया कि जयभगवान 5 मई को भर्ती हुए थे और 28 मई तक जाकर अपने बिल का भुगतान कर पाये थे लेकिन उन्हें अस्पताल भेजने वाले डॉक्टर बाला को उसके कमीशन के 20,000 रुपये ऑपरेशन के 4 दिन बाद ही पहुँचा दिये गये थे।
मज़दूर बिगुल, जून 2016
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