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स्तालिन शब्द का मतलब होता है इस्पात का इन्सान – और स्तालिन सचमुच एक फौलादी इन्सान थे। मेहनतकशों के पहले राज्य को नेस्तनाबूद कर देने की पूँजीवादी लुटेरों की हर कोशिश को धूल चटाते हुए स्तालिन ने एक फौलादी दीवार की तरह उसकी रक्षा की, उसे विकसित किया और उसे दुनिया के सबसे समृद्ध और ताकतवर समाजों की कतार में ला खड़ा किया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि मेहनतकश जनता अपने बलबूते पर एक नया समाज बना सकती है और विकास के ऐसे कीर्तिमान रच सकती है जिन्हें देखकर पूरी दुनिया दाँतों तले उँगली दबा ले। उनके प्रेरक नेतृत्व और कुशल सेनापतित्व में सोवियत जनता ने हिटलर की फासिस्ट फौजों को मटियामेट करके दुनिया को फासीवाद के कहर से बचाया।
सच तो यह है कि स्तालिन हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के समय से ही पश्चिमी देशों को लगातार फसीवाद के ख़तरे से आगाह कर रहे थे लेकिन उस वक्त तमाम पश्चिमी देश हिटलर के साथ न सिर्फ समझौते कर रहे थे बल्कि उसे बढ़ावा दे रहे थे। स्तालिन पहले दिन से जानते थे कि हिटलर समाजवाद की मातृभूमि को नष्ट करने के लिए उस पर हमला जरूर करेगा। उन्होंने आत्मरक्षार्थ युद्ध की तैयारी के लिए थोड़ा समय लेने के वास्ते ही हिटलर के साथ अनाक्रमण सन्धि की थी जबकि दोनों पक्ष जानते थे कि यह सन्धि कुछ ही समय की मेहमान है। यही वजह थी कि सन्धि के बावजूद सोवियत संघ में समस्त संसाधनों को युद्ध की तैयारियों में लगा दिया गया था। दूसरी ओर, हिटलर ने भी अपनी सबसे बड़ी और अच्छी फौजी डिवीजनों को सोवियत संघ पर धवा बोलने के लिए बचाकर रखा था। इस फौज की ताकत उस फौज से कई गुना थी जिसे लेकर हिटलर ने आधे यूरोप को रौंद डाला थां रूस पर हमले के बाद भी पश्चिमी देशों ने लम्बे समय तक पश्चिम का मोर्चा नहीं खोला क्योंकि वे इस इन्तजार में थे कि हिटलर सोवियत संघ को चकनाचूर कर डालेगा। जब सोवियत फौजों ने पूरी सोवियत जनता की जबर्दस्त मदद से जर्मन फौजों को खदेड़ना शुरू कर दिया तब कहीं जाकर पश्चिमी देशों ने मोर्चा खोला।
जब 1941 में नाजियों ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो पूँजीवादी जगत ने घोषणा कर दी कि साम्यवाद मर गया। लेकिन उन्होंने सोवियत समाजवाद की ताकत और अपने समाज की रक्षा करने वाले सोवियत जनगण की अकूत इच्छाशक्ति को कम करके आँका। स्तालिनग्राद के कंकड़-पत्थरों में आप इस सच्चाई का दर्शन कर सकते हैं कि जनगण हथियारों के जखीरे से लैस और तकनीकी रूप से उन्नत पूँजीवादी शत्रु को कैसे परास्त कर सकते हैं।
यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि युद्ध में महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं…। मोर्चे पर दौरा करने वाला कोई भी यह देख सकता था कि महिलाएं तोपरोधी इकाइयों में बन्दूकचियों का काम कर रही थीं, जर्मन हवाबाजों के विरुद्ध लड़ाई में विमानचालकों का काम कर रही थीं, हथियारबन्द नावों के कैप्टन के रूप में, वोल्गा जहाजी बेड़ों में काम करती हुईं, उदाहरण के तौर पर, नदी के बायें तट से दायें तट पर सामान नावों में लादकर आने-जाने को काम बेहद कठिन दशाओं में कर रहीं थीं।
लेकिन जब जान की बाजी लगाकर स्तालिनग्राद को बचाये रखने के लिए लड़ाई करने के आदेश आये, तब तो जनसमुदायों को तेजी से समझ में आने लगा कि उनके कन्धों पर एक ऐतिहासिक दायित्व आ पड़ा था। लोगों के दिलों में एक अटूट एकता और दृढ़निश्चय की भावना भर उठी। उनका गर्वीला नारा गूँज उठा: ‘‘स्तालिनग्राद हिटलर की कब्र बनेगा!’’
दुनिया का पूँजीवादी मीडिया एक ओर नये-नये मनगढ़न्त किस्सों का प्रचार कर मज़दूर वर्ग के महान नेताओं के चरित्र हनन में जुटा रहता है वहीं दूसरी ओर नये-नये झूठ गढ़कर उसके महान संघर्षों के इतिहास की सच्चाइयों को भी उसके नीचे दबा देने की कवायदें भी जारी रहती हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में भी तरह-तरह के झूठ का प्रचार लगातार जारी रहता है। इतिहास की किताबों में भी यह सच्चाई नहीं उभर पाती कि मानवता के दुश्मन, नाजीवादी जल्लाद हिटलर को दरअसल किसने हराया?
पार्टी को सर्वप्रथम मज़दूर वर्ग का अग्रदल (हिरावल दस्ता) होना चाहिए। उसे मज़दूर वर्ग के सर्वोत्तम लोगों को ग्रहण करना चाहिए और उनके अनुभव, उनकी क्रान्तिकारी क्षमता और अपने वर्ग की नि:स्वार्थ सेवा की उनकी भावना का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। किन्तु पार्टी वास्तव में अग्रदल तभी बन सकती है जब वह क्रान्तिकारी सिद्धान्त के अस्त्र से लैस हो और उसे आन्दोलन एवं क्रान्ति के नियमों का ज्ञान हो। ऐसा न होने से वह सर्वहारा आन्दोलन का संचालन और सर्वहारा क्रान्ति का नेतृत्व करने में समर्थ न हो सकेगी। मज़दूर वर्ग का आम हिस्सा जो कुछ सोचता और अनुभव करता है, पार्टी का काम अगर उसे ही व्यक्त करने तक सीमित रहा, अगर पार्टी स्वत:स्फूर्त आन्दोलन की पूँछ बनकर उसके पीछे–पीछे घिसटती रही, अगर वह उक्त आन्दोलन की राजनीतिक उदासीनता और जड़ता को दूर करने में समर्थ न हुई, अगर वह मज़दूर वर्ग के क्षणिक हितों के ऊपर न उठ सकी, और अगर वह जनता की चेतना को सर्वहारा के वर्गहितों के धरातल तक पहुँचाने में समर्थ न हुई तो फिर पार्टी एक वास्तविक पार्टी नहीं बन सकती।
सोवियत संघ, जो खून बहा
तुम्हारे संघर्षों में,
जो तुमने दिया एक मां के रूप में इस दुनिया को
ताकि मरती हुई आजादी जिन्दा रह सके,
यदि हम इकट्ठा कर सकते वो सारा खून,
तो हमारे पास एक नया सागर होता
मौजूदा समाज-व्यवस्था पूँजीवादी व्यवस्था है। इसका मतलब यह है कि दुनिया दो विरोधी दलों में बँटी हुई है। एक दल थोड़े से मुट्ठी भर पूँजीपतियों का है। दूसरा दल बहुमत का, यानी मजदूरों का है। मजदूर दिन रात काम करते हैं, परन्तु फिर भी गरीब रहते हैं। पूँजीपति काम कौड़ी का नहीं करते, परन्तु फिर भी मालामाल रहते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि मजदूरों में बुद्धि नहीं है और पूँजीपति अकल के पुतले हैं। ऐसा इसलिए होता है कि पूँजीपति मजदूरों की मेहनत के फल को हड़प लेते है, मजदूरों का शोषण करते हैं। पर इसका क्या कारण है कि मजदूरों की मेहनत से जो कुछ पैदा होता है उस पर पूँजीपति कब्जा कर लेते हैं और वह मजदूरों को नहीं मिलता? इसकी क्या वजह है कि पूँजीपति मजदूरों का शोषण करते हैं और मजदूर पूँजीपतियों का शोषण नहीं करते?
उसकी पीठ और कमर झुक गई थी
लगातार काम करते करते।
जो कल तक दासता की बेड़ियों में बंद
घुटने टेके हुए था,
वह अपनी आशा के पंखों पर उड़ेगा
सबसे ऊपर, ऊपर उठेगा।
मैं कहता हूँ उसकी ऊंचाई पर
पहाड़ तक
अचरज और ईर्ष्या करेंगे।