उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी इलाक़े में साम्प्रदायिक माहौल बनाने में फि़र सक्रिय हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
दिल्ली संवाददाता
‘सबका साथ – सबका विकास’ और सबके लिए ‘अच्छे दिनों’ के नारे की हवा मोदी सरकार के पहले साल के कार्यकाल में ही निकल गयी। अब आम मेहनतकश जनता समझने लगी कि मोदी किसका विकास चाहते हैं और किसके अच्छे दिनों के लिए दुनिया घूमने में लगे हैं। लेकिन आम मेहनतकश जनता चुनाव के समय किये गये वायदों पर सवाल न करें और न ही सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खि़लाफ़ एकजुट हों, इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) देश में फिर अपने असली ऐजण्डे यानी साम्प्रदायिक माहौल बनाने में लग गया है।
दिल्ली-एनसीआर में जगह-जगह ऐसी कोशिशें जारी हैं। पिछले दिनों फ़रीदाबाद के अटाली गाँव में लोगों के घर व मस्जिद तोड़ी गयी जिससे आज भी सैकड़ों लोग बेघर रहने को मजबूर हैं। मुरादाबाद से मुज़फ़्फ़रनगर तक के कई इलाक़ों में आरएसएस फिर लोगों का सौहार्द बिगाड़ने में लगा है। इसी क्रम में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी की श्रीराम कॉलोनी में दो समुदाय के लड़कों के बीच हुए मामूली झगड़े को साम्प्रदायिक रंग देने में आरएसएस जी-जान से लगा हुआ है। 27 जून 2015 को इस कॉलोनी के रामलीला ग्राउण्ड (राजीव पार्क) में कुछ मुस्लिम लड़के बैडमिण्टन खेल रहे थे। इसी ग्राउण्ड में आरएसएस की शाखा लगा रहे लड़कों ने दूसरे समुदाय के लड़कों से शाखा के वक़्त यहाँ कुछ भी खेलने से मना किया। आरएसएस से जुड़े इन लड़कों द्वारा दूसरे समुदाय के लड़कों को गाली-गलौच कर ग्राउण्ड से बाहर कर दिया गया; ऐसा करने में आरएसएस के बड़ी उम्र के लोगों का भी साथ रहा है। अगले दिन यानी 28 जून को जब आरएसएस से जुड़े ये लड़के ग्राउण्ड में पहुँचे तो दूसरे समुदाय के लड़कों ने योजना बनाकर इन लड़कों की जमकर पिटाई कर दी। फिर क्या था आरएसएस ने उसी समय थाने जाकर दूसरे समुदाय के पाँच लड़कों के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज करा दी। एक या दो दिन के अन्दर इन सभी पाँचों लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है।
लेकिन अगले दिन (29 जून) आरएसएस के सैकड़ों लोग रामलीला ग्राउण्ड में एकत्रित हुए और दूसरे समुदाय के खि़लाफ़ भड़काऊ भाषण देने लगे। साथ ही ऐसे नारे लगा रहे थे कि – ‘जो ग्राउण्ड में आएगा – मार दिया जाएगा’ उसी दिन आरएसएस के यहाँ के लोगों द्वारा घोषणा की गयी कि 17 से 19 जुलाई 2015 तक इस ग्राउण्ड में उन लोगों का ‘महा-सम्मेलन’ होगा और इस दौरान किसी और व्यक्ति को ग्राउण्ड में नहीं आने दिया जायेगा। ग़ौरतलब है कि 18 या 19 जुलाई को ही ईद का त्यौहार है और हर साल इसी ग्राउण्ड में ईद की नमाज़ होती है। ऐसे में आरएसएस द्वारा इस दौरान किसी ‘महा-सम्मेलन’ की घोषणा करने से इस मुस्लिम बहुल इलाक़े में तनाव की स्थिति बन गयी है। उस दिन के बाद अभी-भी रोज़ सुबह आरएसएस के लोग शाखा लगाने आते हैं। पुलिस उनकी सुरक्षा में खड़ी रहती है और उस दौरान कॉलोनी के किसी अन्य व्यक्ति या बच्चे को ग्राउण्ड में आने नहीं दिया जाता है।
इस कॉलोनी के लोगों ने पहलक़दमी दिखाते हुए ईद वाले दिन आरएसएस द्वारा शाखा ग्राउण्ड में न लगने और सुरक्षा की माँग को लेकर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से मुलाक़ात की थी; लेकिन उनकी तरफ़ से भी इस सम्बन्ध में कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। जबकि राजनीतिक दबाव के चलते इलाक़े के एसएचओ और डीसीपी ने साफ़ कहा कि ईद पर भी आरएसएस के लोग ज़रूर आयेंगे और प्रशासन उन्हें नहीं रोकगा। उनके मुताबिक़ ग्राउण्ड में शाखा लगने के बाद नमाज हो जायेगी। यहाँ बता दें कि पिछले साल ईद (बकराईद) पर भी यही तय हुआ था; लेकिन आरएसएस के लोगों ने तय समय में ग्राउण्ड ख़ाली नहीं किया, इस पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भड़क गये थे और आरएसएस के लोगों से थोड़ी-सी झड़प हो गयी थी। आरएसएस के लोगों ने मुस्लिम समुदाय पर मार-पीट के कई झूठे केस दर्ज करा दिये और फिर इस घटना को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। इस बार भी दो समुदाय के लड़कों के मामूली झगड़े को साम्प्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है। हालाँकि अब इसमें यहाँ के मुस्लिम कट्टरपन्थी भी पीछे नहीं हैं। ऐेसे में काफ़ी आशंका है कि इस बार भी ईद वाले दिन साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक यह तय हुआ कि यहाँ काम कर रहे संगठन ‘नौजवान भारत सभा’ के साथ कॉलोनी के लोग फिर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से मिलेंगे और ज़रूरत पड़ी तो लोगों के साथ मिलकर कोर्ट में इस सम्बन्ध में याचिका भी लगायी जायेगी।
दिल्ली-एनसीआर में हो रही ऐसी घटनाओं से साफ़ हो रहा है कि संघ परिवार (आरएसएस) साम्प्रदायिक तनाव की आग सुलगाये रखना चाहते हैं, ताकि वक़्त आने पर उसके शोलों को हवा दी जा सके और लोगों को एक होकर लुटेरी सत्ता से लड़ने की बजाय आपस में लड़ाया-मराया जा सके। लेकिन मेहनतकश जनता को समझना होगा कि धार्मिक कट्टरपन्थी हमें आपस में लड़वाते हैं, स्वयं हमेशा सुरक्षित रहते हैं। हम उनके झाँसे में आकर अपने ही वर्ग भाइयों से लड़ते हैं। जबकि ज़िन्दगी को बदलने की असली लड़ाई में लगने के लिए सभी मेहनतकशों की एकता ही इसकी पहली शर्त है।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2015
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन