साथी नवकरण की याद में
नवकरण पंजाब के संगरूर का रहने वाला था और तीन साल पहले क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्पर्क में आया था। भगतसिंह को वह अपना आदर्श मानता था। इस व्यवस्था की सभी नेमतों – गरीबी, शोषण, बहुसंख्यक आबादी का पिस-पिस कर जीना – को उसने अपनी आँखों से देखा था और भोगा था। वह जनता के दुख-दर्द को महसूस करता था। क्रान्तिकारी आन्दोलन से जुड़कर समाज की सभी दिक्कतों को उसने वैज्ञानिक नज़रिये से समझना शुरू किया और एक नयी दुनिया का सपना अपनी आँखों में भरकर इस काम में पूरे जी-जान से जुट गया। अक्टूबर 2013 में उसने पेशेवर क्रान्तिकारी कार्यकर्ता का जीवन चुना और अपनी आखिरी साँस तक अपने मकसद के लिए कर्मठता से काम करता रहा। नयी चीज़ें सीखना व मुश्किल काम हाथ में लेना उसकी फ़ितरत थी। कुछ समय तक वह नौजवान भारत सभा की लुधियाना इकाई का संचालक रहा। साथ ही वह पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (ललकार) की नेतृत्वकारी कमिटी का भी सदस्य था। उसके सहयोग से लुधियाना में नौजवान भारत सभा व पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन के कामों ने तेज़ी से विकास किया। वह सभी मोर्चों पर समान रूप से सक्रिय था – चाहे वह मज़दूर मोर्चा हो अथवा छात्र-नौजवान मोर्चा, सभी में उसकी अहम भूमिका थी। मज़दूर बस्तियों में जाकर विभिन्न तरीकों से प्रचार करना, मज़दूरों के बच्चों को पढ़ाना, जनता को विभिन्न मुद्दों पर लामबन्द करना, अखबार-पत्रिका-किताबें लेकर सघन रूप से क्रान्तिकारी साहित्य का प्रचार करना–इन सभी में वह जल्दी ही पारंगत हो गया था। वह बेहद उद्वेलित करने वाला भाषण भी देता था। अध्ययन वह लगातार करता था और पंजाबी पत्रिका ‘ललकार’ के लिए उसने विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर लिखने की भी शुरुआत की थी। एक धूमकेतु की तरह वह थोड़े से समय के लिए ही अपनी रोशनी बिखेरकर हमारे बीच से चला गया।