Category Archives: मज़दूर आन्दोलन की समस्‍याएँ

भूमण्डलीकरण को ‘मानवीय’ बनाने में जुटे संसदीय वामपंथियों का असली अमानवीय चेहरा

भूमण्डलीकरण के चेहरे को मानवीय बनाने में जुटे संसदमार्गी वामपंथियों का असली चरित्र भी लोगों के सामने बिल्कुल साफ हो चुका है। पिछले एक साल में पश्चिम बंगाल के 14 चायबागानों में भुखमरी से 320 श्रमिकों की मौत से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि अपने को आम लोगों की असली पार्टी बताने वाले संसदीय वाम के नंबरदार किस तरह इस पूंजीवादी व्यवस्था को ‘‘मानवीय’’ बनाते–बनाते खुद अमानवीय हो गये हैं।

किसानी के सवाल पर कम्युनिस्ट दृष्टिकोण पर बहस: एक पत्र और उसका सम्पादकीय उत्तर

आज की ही स्थिति यह है कि गाँवों और शहरों की सर्वहारा-अर्द्धसर्वहारा आबादी कुल आबादी के पचास प्रतिशत के आसपास पहुँच रही है। कम्युनिस्ट इसी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यही समाजवादी क्रान्ति की नेतृत्वकारी शक्ति है, जो अब तेज़ी से (आबादी की दृष्टि से) मुख्य शक्ति भी बनती जा रही है। शहरी निम्न मध्य वर्ग की भारी, परेशानहाल आबादी इसकी मुख्य सहयोगी बनेगी क्योंकि इसे अपना कोई भविष्य नहीं दीख रहा है और निजी भू-स्वामित्व के मोह जैसी बाधा से भी यह मुक्त है। गाँवों के छोटे किसान सर्वहारा वर्ग के दूसरे क़रीबी दोस्त हैं। मध्यम किसान इसके ढुलमुल दोस्त हैं और आबादी की दृष्टि से भी इसकी कोई वजह नहीं दीखती कि कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग को छोड़कर इस ढुलमुल दोस्त की चिन्ता में ही दुबले हुए जा रहे हैं। यह नरोदवादी भटकाव नहीं तो भला और क्या है?

पूँजीवादी खेती के संकट पर सही कम्युनिस्ट दृष्टिकोण का सवाल

लाभकारी मूल्य का सवाल अपने वर्ग-सार की दृष्टि से पूरी तरह से धनी किसानों-कुलकों-पूँजीवादी किसानों की माँग है, जो मुनाफ़े के लिए पैदा करते हैं। यह देहाती इलाक़े का पूँजीपति वर्ग है जो शोषण और शासन में पूरे देश के स्तर पर औद्योगिक पूँजीपति वर्ग का छोटा साझीदार है। लाभकारी मूल्य का आन्दोलन मूलतः छोटे और बड़े लुटेरे शासक वर्गों के बीच की लड़ाई है, इसके ज़रिये पूँजीवादी भूस्वामी-फ़ार्मर-धनी किसान देश स्तर पर संचित अधिशेष (सरप्लस) में अपना हिस्सा बढ़ाने की माँग करते हैं। चूँकि उद्योग में मुनाफ़े की दर लगातार बढ़ाते जाने की सम्भावना खेती की अपेक्षा हमेशा ही बहुत अधिक होती है और चूँकि लूट के बड़े हिस्सेदार वित्तीय एवं औद्योगिक पूँजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी भी हमेशा ही पूँजीवादी संकट का ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा लूट के छोटे साझीदार-धनी किसानों पर थोपने की कोशिश करते रहते हैं, इसलिए इनके बीच खींचतान चलती ही रहती है।

गन्ना किसानों के संकट के बारे में एस. प्रताप का दृष्टिकोण ग़लत है!

छोटे पैमाने की खेती और छोटी जोतों को पूँजीवाद के चतुर्दिक हमले से बचाकर किसान समुदाय को बचाने का प्रयास सामाजिक विकास की गति को अनुपयोगी रूप से धीमा करना होगा। इसका मतलब पूँजीवाद के अन्तर्गत भी ख़ुशहाली की भ्रान्ति से किसानों को धोखा देना होगा, इसका मतलब मेहनतकश वर्गों में फ़ूट पैदा करना और बहुमत की क़ीमत पर अल्पमत के लिए एक विशेष सुविधाप्राप्त स्थिति पैदा करना होगा (लेनिन: मज़दूर पार्टी और किसान)

चीनी मिल-मालिकों की लूट से तबाह गन्ना किसान

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गन्ना आन्दोलन इस बार बुरी तरह असफ़ल हुआ। ऐसी शर्मनाक पराजय किसान आन्दोलन के निकट अतीत के इतिहास में शायद ही कभी हुई हो। पिछले साल का गन्ना मूल्य 95 रुपये प्रति कुन्तल था और अब चीनी मिलों ने 64-50 रुपये प्रति कुन्तल पर गन्ना बेचने के लिए किसानों को मजबूर कर दिया है। इस मूल्य पर तो छोटे किसानों की लागत भी निकल आये तो ग़नीमत है।

क्या कर रहे हैं आजकल पंजाब के ‘कामरेड’?

कोई भी वर्ग अपने हितों के लिए लड़ने को आज़ाद है। वह ख़ुशी से अपनी लड़ाई लड़े। मगर दुख की बात तो यह है कि पंजाब की धरती पर यह सब कुछ कम्युनिस्टों के भेस में हो रहा है। इन कम्युनिस्टों की रहनुमाई में लड़े जा रहे इन किसान आन्दोलनों की माँगें मज़दूर विरोधी तथा ग्रामीण धनी किसानों के हित में हैं। मज़दूरों के रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं जैसे, गेहूँ, धान तथा दूध आदि की कीमतों में बढ़ोत्तरी तो सीधे-सीधे मज़दूरों की जेब पर डाका है। ऊपर से सितम यह है कि इस डाकेज़नी में कोई और नहीं बल्कि ख़ुद को मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधि कहने वाले रंग-बिरंगे कम्युनिस्ट ही जाने-अनजाने मददगार बन रहे हैं।

नई भरती करो / लेनिन

‘व्पेर्योद’ केा रूस पहुँचाने के काम में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का कार्यभार रखना चाहिए। सेंट पीटर्सबर्ग में ग्राहक बढ़ाने के लिए जोरदार प्रचार कीजिए। विद्यार्थी और खास तौर पर मजदूर अपने पतों पर ही दसियों-सैकड़ों प्रतियाँ मँगायें। इन दिनों के माहौल में इससे डरना बेतुका है। सब कुछ तों पुलिस पकड़ नहीं पायेगी। आधो-तिहाई तो पहुँचेंगे ही और यही बहुत है। नौजवानों के हर मण्डल को यह विचार सुझाइये और वे तो विदेश से सम्पर्क बनाने के अपने सैकड़ों रास्ते खोज लेगें। ‘व्पेर्योद’ केा पत्र भेजने के लिए पते अधिक से अधिक लोगों को दीजिये।