मँझोले किसानों के बारे में सर्वहारा दृष्टिकोण का सवाल – तीन
अपने अगले लेख (जनवरी, 2005) में मैंने अपनी पोज़ीशन को विस्तार देते हुए किसानों का सर्वमान्य विभेदीकरण प्रस्तुत कर यही बात कही है कि मँझोले किसानों का बुनियादी चरित्र उसके बीच वाले हिस्से से ही निर्धारित होता है जो अपने श्रम पर आधारित खेती करता है। इसका ऊपरी हिस्सा और निचला हिस्सा एक तरफ़ कुलकों और दूसरी तरफ़ सर्वहारा वर्ग से नज़दीकी बनाते हैं। कोई भ्रम पैदा न हो, इसीलिए यहीं पर यह सर्वमान्य बात भी कह देना उचित होगा कि यह सर्वमान्य विभेदीकरण सिर्फ़ मँझोले किसानों के चरित्र को समझने के लिए किया जाता है। व्यवहार में यह विभेदीकरण सम्भव नहीं होता है। मँझोले किसान के चरित्र में यह सब घुला-मिला होता है। ऐसे भी मँझोले किसान हो सकते हैं जो मुख्यतः अपने श्रम पर आधारित खेती करते हैं, लेकिन कभी-कभी मज़दूर भी लगाते हैं और कभी-कभी ख़ुद भी मज़दूरी करते हैं। ऐसे भी मँझोले किसान हो सकते हैं जो अन्य मँझोले किसानों की अपेक्षा कुछ अधिक मज़दूर लगाते हों, लेकिन फि़र भी मुख्यतः और मूलतः अपने श्रम पर आधारित खेती करते हैं। ऐसे भी मँझोले किसान हो सकते हैं जो कुछ हद तक अपनी जीविका के लिए मज़दूरी पर निर्भर हो चले हैं, लेकिन अभी मुख्यतः अपने श्रम पर आधारित अपनी खेती से ही जीवनयापन करते हों।