नई भरती करो
( बोग्दानोव और गूसेव के नाम लेनिन के एक पत्र से, 11 फ़रवरी, 1905)
लेनिन
सम्पादकीय टिप्पणी
भारत में सर्वहारा वर्ग की एक क्रान्तिकारी पार्टी के गठन की कोशिशों को, अपने शुरूआती दौर में, आज से करीब बत्तीस-तैतीस वर्षों पहले ही झटका लगा और उसके बाद बिखराव की प्रक्रिया ही मुख्य प्रवृत्ति बनी रही। इसका बुनियादी कारण विचारधारा की कमजोरी था और उसी का एक नतीजा यह भी रहा कि भारत की परिस्थितियों और क्रांति की रणनीति के प्रश्न पर भी क्रान्तिकारी एक राय पर नहीं पहुँच सके। गड़बडि़यां संगठनों के ढांचे और कार्यपद्धति में भी रहीं जो विचारधारा की कमजोरी से ही जन्मी थीं और जिनके कारण न तो सही बहस-मुबाहसे का माहौल बना, न ही कार्यकर्ताओं की सही शिक्षा-दीक्षा हुई। आन्दोलन में “वामपंथी” दुस्साहसवाद और अर्थवाद की प्रवृत्तियां लगातार एक या दूसरे रूपों में मौजूद रहीं।
विश्व पूँजी के चौतरफा हमले और प्रतिक्रियावाद के विश्वव्यापी उभार के मौजूदा दौर में, पिछले लगभग दस-पन्द्रह वर्षों के दौरान जो नई चीज सामने आई है, वह यह कि क्रांतिकारी ढांचों के बिखराव की जारी प्रक्रिया के साथ ही ज्यादातर संगठनों के क्रान्तिकारी सार-तत्व में भी क्षरण होने लगा है जो जारी प्रक्रिया का ही एक नतीजा है और यह बात ज्यादा घातक है। संगठनों का मध्यमवर्गीकरण-सा हो रहा है, नेतृत्तवकारी दायरों में अवसरवाद का घुन लग गया है, आरामतलबी और नौकरशाही बढ़ गयी है और रूटीनी कवायद का बोलबाला है। ऐसे में, मुख्य काम यह बन गया है कि जिम्मेदार संगठन अपने ढांचों का क्रान्तिकारी पुनर्गठन करें, कतारों में मजदूरों के बीच से नई भरती करें, नई भरती से आने वाले युवाओं को श्रमसाध्य जीवन बिताते हुए मेहनतकश जनता के बीच काम करने और उनसे एकरूप हो जाने पर बल दें तथा उत्तराधिकारियों की तैयारी पर विशेष जोर दें। कहा जा सकता है कि पार्टी निर्माण और पार्टी गठन के पहलू हर समय साथ-साथ जारी अन्तर्सम्बन्धित काम होते हैं, लेकिन आज की तारीख में पार्टी-निर्माण का पहलू प्रधान है और पार्टी-गठन का पहलू इसके मातहत हो गया है।
हमें क्रान्तिकारी कतारों में नई भरती पर विशेष जोर देना होगा। मजदूरों के बीच से – विशेषकर युवा मजदूरों की भरती करनी होगी। युवाओं के बीच से भी भरती करनी होगी। सरकार की जो नीतियां चल रही हैं, उन्हें देखते हुए, यह तय है कि आने वाला समय तूफानी हलचल का समय होगा। उस तूफानी हलचल में क्रान्ति की हरावल शक्तियां ऊंची उड़ान तभी भर सकेंगी। इस काम में मजदूर वर्ग का अखबार एक अहम भूमिका निभा सकता है। उसे निभाने में ही इसकी सार्थकता है।
हम लेनिन के एक पत्र का महत्वपूर्ण अंश प्रकाशित कर रहे हैं। सभी साथी इसे गौर से पढ़ें। इसमें सोचने-सीखने के लिए काफी बाते हैं। यह प9 1905-07 की पहली रूसी क्रान्ति के ठीक पहले लिखा गया था। बोल्शेविक पार्टी तब काफी छोटी थी और बनने की ही प्रक्रिया में थी। लेनिन को आने वाले तूफानी समय का पूर्वानुमान था और मजदूर साप्ताहिक पत्र ‘व्पेर्योद’ के इर्द-गिर्द मजदूरों-युवाओं को जोड़कर उनके सैंकड़ों मण्डल तैयार करने पर उनका विशेष जोर था। ‘व्पेर्योद’ बोल्शेविक साप्ताहिक अखबार था जो जेनेवा से प्रकाशित होता था और गुप्त रूप से रूस पहुँचाया जाता था। ‘ईस्क्रा’ अखबार उस समय मेंशेविकों के कब्जे में चला गया था और उनका मुखपत्र बन गया था।
….‘व्पेर्योद’ के लिए सहकर्मी चाहिए।
हमारी गिनती बहुत कम है। यदि रूस से और 2-3 लोग स्थायी तौर पर हमारे लिए लिखनेवाले नहीं मिलते, तो फि़र ‘इस्क्रा’ से संघर्ष की बकवास करने की जरूरत नहीं है। हमें पैम्फ्लेटों और पर्चों की जरूरत है, बड़ी सख़्त जरूरत है।
हमें युवा शक्तियाँ चाहिए। मेरी तो राय यह है कि जो लोग यह कहने की जुर्रत करते हैं कि लोग नहीं हैं, उन्हें खड़े-खड़े गोली से उड़ा दिया जाये। रूस में लोगों की कोई कमी नहीं है। बस हमें खुलकर और हिम्मत से, हिम्मत से और खुलकर, जी हाँ एक बार फि़र खुलकर और एक बार फि़र हिम्मत से नौजवानों से डरे बिना उन्हें भरती करना चाहिए। आज हलचल का समय है। नौजवान ही – विद्यार्थी और उनसे भी बढ़कर युवा मजदूर – सारे संघर्ष के भाग्य का फ़ैसला करेंगे। निश्चलता की, ओहदों के सामने सिर झुकाने, आदि की अपनी पुरानी आदतों से पिंड छुड़ाइये। नौजवानों से ‘व्पेर्योद’ वालों के सैकड़ों मण्डल बनाइये और उन्हें दबकर काम करने की प्रेरणा दीजिये। नौजवानों को लेकर समिति तिगुनी बड़ी कीजिए, पाँच या दस उपसमितियाँ बनाइये, हर ईमानदार और उत्साही व्यक्ति को उनसे सम्बध कीजिये। हर उपसमिति को बिना किसी हीले-हुज्जत के परचे लिखने और छापने का अधिकार दीजिये (किसी ने कुछ गलती की भी, तो कोई डर नहीं : हम ‘व्पेर्योद’ में ‘‘विनम्रता’’ से ठीक कर देंगे)। क्रान्तिकारी पहलकदमी रखनेवाले सभी लोगों को तफ़ूानी गति से संगठित करना और उन्हें काम में लगाना चाहिए। इस बात से मत डरिये कि वे प्रशिक्षित नहीं हैं, इस बात पर मत कँपकँपाइये कि उन्हें अनुभव नहीं है, कि वे विकसित नहीं हैं। पहली बात, यदि आप उन्हें संगठित और प्रेरित नहीं कर पायेंगे, तो वे मेंशेविकों और गपोनों के पीछे चल देंगे और अपनी उसी अनुभवहीनता से पाँच गुना अधिाक नुकसान कर बैठेंगे। दूसरे, अब तो घटनाएँ ही उन्हें हमारी भावना में शिक्षित करेंगी। घटनाएँ अभी से हर किसी को ‘व्पेर्योद’ की ही भावना में शिक्षित कर रही हैं।
बस सैकड़ों मण्डल संगठित करो, संगठित करो और संगठित करो, समिति की (सोपानक्रम की) सदाशयपूर्ण बेवकूफि़याँ एकदम पीछे हटा दो। हलचल का समय है। या तो आप हर संस्तर में हर तरह के, हर किस्म के, सामाजिक-जनवादी काम के लिए नये, नौजवान, ताजे, उत्साही सैनिक संगठन तैयार करेंगे, या फि़र आप ‘‘समिति’’ के नौकरशाहों का यश कमाकर शहीद ही जायेंगे।
मैं ‘व्पेर्योद’ में इस बारे में लिखूँगा और कांग्रेस में भी बोलूँगा। मैं आपको विचारों के आदान-प्रदान के लिए प्रेरित करने की एक और कोशिश के तौर पर लिख रहा हूँ, इस कोशिश में कि आप दर्जन भर युवा, ताजे मजदूर (और दूसरे) मण्डलों को सम्पादक-मण्डल के सीधो सम्पर्क में लायें, हालाँकि…… हालाँकि, सच्चे मन से कहूँ, तो मुझे कोई उम्मीद नहीं कि आप ये साहसपूर्ण कामनाएँ पूरी करेंगे। बस शायद इतना ही होगा कि दो महीने बाद आप मुझे तार से जवाब देने को कहेंगे कि मैं ‘‘योजना’’ में अमुक परिवर्तनों से सहमत हूँ कि नहीं…… पहले से जवाब दिये देता हूँ कि मैं सहमत हूँ……
कांग्रेस में भेंट तक।
लेनिन
पुनश्च। ‘व्पेर्योद’ केा रूस पहुँचाने के काम में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का कार्यभार रखना चाहिए। सेंट पीटर्सबर्ग में ग्राहक बढ़ाने के लिए जोरदार प्रचार कीजिए। विद्यार्थी और खास तौर पर मजदूर अपने पतों पर ही दसियों-सैकड़ों प्रतियाँ मँगायें। इन दिनों के माहौल में इससे डरना बेतुका है। सब कुछ तों पुलिस पकड़ नहीं पायेगी। आधो-तिहाई तो पहुँचेंगे ही और यही बहुत है। नौजवानों के हर मण्डल को यह विचार सुझाइये और वे तो विदेश से सम्पर्क बनाने के अपने सैकड़ों रास्ते खोज लेगें। ‘व्पेर्योद’ केा पत्र भेजने के लिए पते अधिक से अधिक लोगों को दीजिये।
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन