Category Archives: साम्राज्‍यवाद

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को दरअसल किसने हराया? (पहली किस्‍त)

दुनिया का पूँजीवादी मीडिया एक ओर नये-नये मनगढ़न्त किस्सों का प्रचार कर मज़दूर वर्ग के महान नेताओं के चरित्र हनन में जुटा रहता है वहीं दूसरी ओर नये-नये झूठ गढ़कर उसके महान संघर्षों के इतिहास की सच्चाइयों को भी उसके नीचे दबा देने की कवायदें भी जारी रहती हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में भी तरह-तरह के झूठ का प्रचार लगातार जारी रहता है। इतिहास की किताबों में भी यह सच्चाई नहीं उभर पाती कि मानवता के दुश्मन, नाजीवादी जल्लाद हिटलर को दरअसल किसने हराया?

सद्दाम को फाँसी : बर्बरों का न्याय

सद्दाम हुसैन निश्‍चय ही एक पूँजीवादी शासक था और कुर्दों और शियाओं पर अस्सी और नब्बे के दशक में उसकी सत्ता ने जु़ल्म भी किये थे । पर उसके विरुद्ध संघर्ष इराकी जनता का काम था । अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने मात्र इन अन्तरविरोधों का लाभ उठाया और इस बहाने इराक की तेल सम्पदा पर कब्जा जमाने की कोशिश की । सद्दाम को “सजा” अपनी जनता पर दमन की नहीं, बल्कि इस बात की मिली कि उसने अमेरिकी साम्राज्यवादी वर्चस्व के मंसूबों को चुनौती दी ।

चिली के बर्बर तानाशाह जनरल पिनोशे की मौत-लेकिन पूँजीवादी नरपिशाचों की यह बिरादरी अभी ज़िन्‍दा है!

हमें बुर्जुआ इतिहासकारों की तर्ज़ पर पिनोशे के ख़ूनी कारनामों को उसके विकृत दिमाग की उपज नहीं मानना चाहिए। पिनोशे चिली की समस्त प्राकृतिक एवं सामाजिक सम्पदा पर कब्ज़ा जमाने की वहशी चाहत रखने वाले समाज के मुट्ठी भर ऊपरी वर्गों और अमेरिकी साम्राज्यवादी डाकुओं का दुलारा नुमाइन्दा था। धनपशुओं की इस जमात को चिली में लोकप्रिय जननेता सल्वादोर अलेन्दे द्वारा 1971 में चुनकर सरकार में आना फूटी आँखों नहीं सुहाया था। अलेन्दे को सत्ता में आने से रोकने के लिए इस जमात ने अपनी एड़ी–चोटी का ज़ोर लगा दिया लेकिन अलेन्दे को हासिल प्रचण्ड जनसमर्थन के सामने उनके मंसूबे धरे के धरे रह गये। सत्ता सम्हालने के बाद जब अलेन्दे ने अमेरिकी बहुराष्‍ट्रीय खदानों, बैंको और अन्य महत्वपूर्ण उद्योगों के राष्‍ट्रीकरण, बड़ी पूँजीवादी जागीरों को सामुदायिक खेती में बदलने और कीमतों पर नियन्त्रण क़ायम कराने की नीतियों की घोषणा की तो चिली के वे धनपशु और उनके अमेरिकी सरपरस्त बदहवास हो उठे। उन्होंने अलेन्दे की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिये आर्थिक तोड़–फोड़, सामाजिक अफ़रातफ़री पैदा करने के साथ ही अलेन्दे की हत्या करने की साज़िशों को रचना शुरू कर दिया। अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी सी.आई.ए. ने अपनी कुख्यात सरगर्मियाँ तेज़ कर दीं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों को पिनोशे के रूप में एक वफ़ादार कुत्ता भी मिल गया जो उस समय चिली का सेनाध्यक्ष था। आख़िरकार यह जमात 11 सितम्बर 1973 को अपने मंसूबों में कामयाब हो गयी जब पिनोशे की अगुवाई में सीधे राष्‍ट्रपति भवन ‘ला मोनेदा’ पर फ़ौजी धावा बोल दिया गया जिसमें अलेन्दे अपने सैकड़ों सहयोगियों के साथ लड़ते–लड़ते मारे गये।