भारत और पाकिस्तान — अन्धराष्ट्रवादी प्रचार बनाम कुछ ज़मीनी सच्चाइयाँ
भारत और पाकिस्तान की जनता के असली दुश्मन उनके सर पर बैठे हैं
कविता कृष्णपल्लवी
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान की लानत-मलामत करते हुए कहा कि भारत सॉफ्टवेयर का निर्यात करता है जबकि पाकिस्तान आतंक का । उन्होंने पाकिस्तान को भारत से सीखकर ग़रीबी-बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ लड़ने की नसीहत दी। नंगी सच्चाई यह है कि भारतीय मीडिया में राष्ट्रीय विकास का प्रायोजित शोर कई सच्चाइयों पर पर्दा डाल देता है ।
सच्चाई यह है कि आम जनता की जीवन-स्थितियों के कई पैमानों की कसौटी पर पाकिस्तान भारत से आगे है। वैश्विक ग़रीबी पर संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल योग के अर्थ में 41.6 प्रतिशत भारतीयों की प्रतिदिन आय 78 पेंस से भी कम है जबकि ऐसे पाकिस्तानियों की संख्या 22.6 प्रतिशत है । संयुक्त राष्ट्र ने शिक्षा, बाल-मृत्यु-दर, पौष्टिक भोजन, साफ-सफाई पूर्ण जीवन-स्थितियों और पेयजल, बिजली, शौचालय आदि की उपलब्धता के आधार पर बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक तैयार किया है । इसके आधार पर 53.7 प्रतिशत भारतीय ग़रीब हैं जबकि 49 प्रतिशत पाकिस्तानी। स्वास्थ्य और शिक्षा के सामाजिक सेक्टरों में भारत न केवल पाकिस्तान बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है। भारत में प्रति एक लाख की आबादी पर 65 डाक्टर हैं , जबकि पाकिस्तान में 81 । 5 वर्ष से कम उम्र के कम वज़न वाले बच्चों का अनुपात भारत में 43.5 प्रतिशत है, जबकि पाकिस्तान में 20.5 प्रतिशत ।
दिलचस्प बात यह है कि जेंडर-समानता के मामले में भी भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से पीछे है। जेंडर-समानता का पैमाना संयुक्त राष्ट्र ने प्रसव के दौरान माताओं की मृत्यु-दर, किशोर-वय में गर्भधारण, शिक्षा और विधायिकाओं में एवं कार्यस्थलों पर स्त्रियों की प्रतिशत मौजूदगी के आधार पर तैयार किया है । पहले बच्चे की पैदाइश के समय भारतीय माँ की औसत उम्र 19.9 वर्ष होती है जबकि पाकिस्तानी माँ की 23.4 वर्ष ।
भारत द्वारा सॉफ्टवेयर-निर्यात की सच्चाई यह है कि यहाँ सॉफ्टवेयर के जो भी काम विश्व-बाज़ार के लिए होता है उनमें से अधिकांश अमेरिकी कम्पनियों के लिए होते हैं। ऐसा काम भारत में कराना सॉफ्टवेयर-उद्योग के पश्चिमी दैत्यों के लिए काफ़ी सस्ता पड़ता है ।
बेशक़ पाकिस्तान आतंक का निर्यात करता है। भारत को आतंक के निर्यात की ज़रूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यहाँ आतंक का बहुत बड़ा आन्तरिक बाज़ार है। मालेगांव, समझौता धमाका, गुजरात-2002, से लेकर दादरी-मुज़फ्फरनगर-लव जेहाद-‘घर’-वापसी-गोमाता….आदि-आदि साम्प्रदायिक आतंकवाद नहीं तो और क्या है? इससे अलग वह राजकीय आतंकवाद भी है जिसकी अलग-अलग बानगी कश्मीर और उत्तर-पूर्व से लेकर छत्तीसगढ़ तक में देखने को मिलती है ।
आँखों से अन्धराष्ट्रवाद का चश्मा उतारकर सच्चाइयों को देखने की ज़रूरत है । भारत और पाकिस्तान की जनता के असली दुश्मन उनके सर पर बैठे हैं । भारत का शासक पूँजीपति वर्ग भारतीय जनता का उतना ही बड़ा दुश्मन है जितना पाकिस्तानी पूँजीपति वर्ग पाकिस्तानी जनता का। अन्धराष्ट्रवाद की लहर दोनों देशों की जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाती है ।
जनता में अन्धराष्ट्रवादी जुनून पैदा करना हर संकटग्रस्त बुर्जुआ राज्यसत्ता और विशेषकर फासिज्म का अंतिम शरण्य है । धार्मिक-नस्ली कट्टरता और दंगों से भी अधिक फ़ासिस्ट अन्धराष्ट्रवादी जुनून और युद्ध भड़काने के हथकण्डे में भरोसा रखते हैं । पड़ोसी देश के विरुद्ध नफ़रत का उबाल, सीमा पर तनाव और सीमित स्तर पर युद्ध भारत और पाकिस्तान—दोनों देशों के शासकों की ज़रूरत है । साम्राज्यवादियों के तो फ़ायदे ही फ़ायदे हैं । मन्दी के इस दौर में हथियारों की जमकर बिक्री होगी, युद्धरत देशों में से एक या दूसरे के साथ नज़दीकी बढ़ाकर माल बेचने और पूँजी-निर्यात के अवसर मिलेंगे और भारतीय उपमहाद्वीप में अधिक प्रभावी हस्तक्षेप के अनुकूल अवसर मिलेंगे। हर हाल में भुगतना दोनों देशों की जनता को है जो युद्ध में चारे के समान इस्तेमाल होगी और पूँजी की निर्बन्ध-निरंकुश लूट का शिकार होगी।
जब भी दोनों देशों के हुक्मरान अपनी जनता के बढ़ते असन्तोष से घबराते हैं, सीमा पर तनाव शुरू हो जाता है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर-नवम्बर 2016
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