बिगुल पुस्तिका – 5
मेहनतकशों के खून से लिखी पेरिस कम्यून की अमर कहानी
प्रस्तावना
18 मार्च, 1871 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में इतिहास में पहली बार मजदूरों ने अपनी हुकूमत कायम की। मजदूर वर्ग के इस साहसिक कारनामे से फ्रांस ही नहीं समूची दुनिया के पूंजीपतियों के कलेजे दहल उठे। उन्होंने मजदूरों के इस पहले राज्य का गला घोंट देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और आखिरकार उन्होंने कम्यून को खून की नदियों में डुबो दिया।
हालांकि पेरिस कम्यून सिर्फ़ 72 दिनों तक कायम रह सका लेकिन इस दौरान उसने समाजवादी राज्य का एक छोटा सा मॉडल पेश किया कि किस तरह शोषण-उत्पीड़न, भेदभाव-गैरबराबरी से मुक्त समाज कायम करना कोरी कल्पना नहीं है। पेरिस कम्यून के पराजय ने भी दुनिया के मजदूर वर्ग को बेशकीमती सबक सिखाये। इन सबकों को आत्मसात करके ही सर्वहारा क्रान्तियों की अगली कड़ियों का निर्माण सम्भव हो सका था। आज भी, विश्व सर्वहारा क्रान्तियों के नये चक्र में, नई मजदूर क्रान्ति की राह को पेरिस कम्यून की मशाल रोशन करती रहेगी।
पेरिस कम्यून का इतिहास क्या था, उसके सबक क्या हैं – यह जानना आम मजदूर आबादी के लिए बेहद जरूरी है। ‘बिगुल’ पुस्तिका की यह कड़ी इसी जरूरत को पूरा करने की एक कोशिश है। पुस्तिका में संकलित लेख मजदूरों के क्रान्तिकारी अखबार ‘नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक बिगुल’ और क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियों की पत्रिका ‘दायित्वबोध’ से लिये गये हैं। उम्मीद है कि यह पुस्तिका पेरिस कम्यून के इतिहास और उसकी विरासत से परिचित कराने में उपयोगी साबित होगी।
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मेहनतकशों के खून से लिखी पेरिस कम्यून की अमर कहानी
नई मजदूर क्रान्ति की राह भी रौशन करती रहेगी पेरिस कम्यून की मशाल !
कैसे पहुंची पेरिस कम्यून की चिंगारी चियापास की पहाड़ियों में
‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ और हमारा समय
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