देहाती मज़दूर यूनियन द्वारा 8 दिन की क्रमिक भूख हड़ताल सफल
मधुबन, मऊ। प्रशासन की उपेक्षा और संवेदनहीनता से तंग आकर मधुबन तहसील के अन्तर्गत फतेहपुर मण्डाव ब्लाक के कई गाँवों के नरेगा मज़दूर अपनी 7 माँगों और मर्यादपुर ग्राम सभा की 5 माँगों को लेकर 22 अप्रैल से क्रमिक अनशन पर बैठे थे। इन गाँवों में मर्यादपुर, डुमरी, लखनौर, भिडवरा, जवाहिरपुर, गोबबाडी, रामपुर, अलीपुर-शेखपुर, ताजपुर, बेमडाड, गुरम्हा, छतहरा, लघुआई, लऊआसात शामिल थे। अनशन पर जाने से पूर्व उन्होंने ज़िला और तहसील स्तर पर हर जगह बार-बार पत्र लिखकर, ज्ञापन देकर अपनी आवाज़ पहुँचाने की कोशिश की, लेकिन मज़दूरों की आवाज़ कहीं नहीं सुनी गयी।
जगह-जगह पोस्टर लगाकर और सभाओं द्वारा इस अनशन की सूचना लोगों तक पहुँचायी गयी। देहाती मज़दूर यूनियन की टोली ने घर-घर जाकर लोगों से सहयोग और समर्थन माँगा। सहयोग और समर्थन के अलावा कई घरों से कार्यकर्ताओं को आटा, चावल, ईन्धन, आलू आदि सामान भी मिला।
22 अप्रैल को मर्यादपुर बाज़ार में मज़दूर अनशन पर बैठ गये। करीब-करीब रोज़ाना ही बहुतेरे मज़दूर वहाँ आते और स्वयं अनशन पर बैठने के लिए आग्रह करते। यह स्थिति तो तब थी जब ग्रामीण मज़दूरों की भारी आबादी फसल की कटाई में व्यस्त थी। स्वेच्छा से अनशन पर बैठने वालों की संख्या जल्दी ही 30 से ऊपर पहुँच गयी।
इधर प्रशासन, सबकुछ जानते-समझते हुए भी अन्धा-बहरा बना रहा। हतोत्साहित करने के लिए प्रधान और उसके चाटुकार मज़दूरों और ग्रामीणों को आचार संहिता का उल्लंघन करने और लाठीचार्ज होने की बात कह कर डराते रहे। इस सबके बावजूद अनशन जारी रहा और शामिल होने वाले मज़दूरों की संख्या बढ़ती चली गयी।
जनता की पहलकदमी और एकजुटता ने अन्ततः प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। 29 अप्रैल को बी.डी.ओ. अपने सहायक अधिकारियों के साथ अनशन स्थल पर पहुँचे। पहले तो उन्होंने माँगों को लेकर टालमटोल करनी चाही, लेकिन लोगों के ग़ुस्से को देखते हुए नरेगा मज़दूरों की कुछ अहम माँगें माननी पड़ीं :
1. मज़दूरों का जॉब कार्ड बनवाने के लिए ब्लॉक स्तर पर विशेष कैम्प लगेगा
2. बैंक खाता खुलवाने के लिए विशेष कैम्प लगेगा
3. बकाया मज़दूरी का भुगतान तुरन्त होगा। रोज़गार अथवा बेरोज़गारी भत्ता मिलेगा
4. जिन मज़दूरों के जॉब कार्ड प्रधान के पास हैं, वे मज़दूरों को दिलवाये जायेंगे
5. सामाजिक संपरीक्षा रिपोर्ट ‘चिन्दियाँ’ में उजागर घोटाले की जाँच होगी
संघर्ष की इस छोटी-सी अवधि में ही मज़दूर संगठन का महत्त्व समझने लगे हैं। दूर-दराज के गाँवों से नरेगा के मज़दूर सम्पर्क कर रहे हैं और अपने यहाँ भी संगठन की शाखाएँ खोलने की माँग कर रहे हैं। क्रमिक अनशन में हुई जीत भले ही कितनी ही छोटी क्यों न हो, आज वह इस क्षेत्रा के मज़दूरों के लिए महत्त्वपूर्ण बन गयी है
बिगुल, मई 2009
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन