मदर जोंस : मज़दूरों की बूढ़ी अम्मा और पूँजीपतियों के लिए ”अमेरिका की सबसे खतरनाक औरत”
आज़ादी और बराबरी के लिए मज़दूरों की लम्बी लड़ाई ने सैकड़ों ऐसी महिलाओं को जन्म दिया है जिन्होंने न केवल मुनाफाखोर लुटेरों के दिलों में दहशत पैदा कर दी बल्कि दुनियाभर में नये समाज के लिए लड़ने वालों के लिए एक मिसाल बन गई। इन्हीं में से एक थीं अमेरिका की मैरी जोंस जिन्हें मज़दूर प्यार और आदर से मदर जोंस कहकर पुकारते थे और पूँजीपतियों के अखबार ‘‘अमेरिका की सबसे खतरनाक औरत’’ कहते थे।
पहली मई, 1830 को आयरलैण्ड में जन्मी मैरी हैरिस 1838 में अपने परिवार के साथ अमेरिका चली आयी थी। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पहले दर्ज़िन का और फिर स्कूल टीचर का काम करने लगी। 1861 में उसने लोहा ढलाई मज़दूर और यूनियन कार्यकर्ता जार्ज जोंस से शादी कर ली। लेकिन छह साल बाद ही पीले बुखार की महामारी में उसके पति और चार बच्चों की मौत हो गयी।
मैरी जोंस शिकागो चली आयी और कपड़े सिलने का काम करने लगी, लेकिन कुछ ही समय बाद 1871 में शिकागो में लगी भीषण आग में उसका घर जलकर राख हो गया। उसने एक चर्च के तलघर में शरण ली और सड़कों पर भटकते हुए वह मज़दूर संगठन ‘नाइट्स ऑफ लेबर’ की बैठकों में जाने लगी। जल्दी ही वह जी-जान से मज़दूर आन्दोलन में लग गयी और ताउम्र इसे आगे बढ़ाने में जुटी रही। मज़दूरों को संगठित करने के प्रयासों में मदद करने के लिए वह देश भर में घूम-घूमकर अपने जोशीले भाषणों से उनमें उत्साह भरने लगी। यूनियन संगठनकर्ता के रूप में अपने कई दशक लम्बे जीवन के दौरान मैरी हैरिस जोंस ने कोयला खनिकों, सूत मिलों के बाल मज़दूरों, रेल के डिब्बे बनाने वालों और धातु खदानों के मज़दूरों को संगठित किया।
मदर जोंस ने अपनी ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा खदान मज़दूरों की संगठनकर्ता के रूप में बिताया। वेस्ट वर्जीनिया और पेनसिल्वेनिया प्रांतों के कोयला मज़दूरों की यूनियन बनाने का हक दिलाने की लड़ाई में उन्होंने अपने 40 वर्ष खपा दिये। एक इतिहासकार के शब्दों में, ‘‘खनिकों के संघर्षों में वह खाइयों और नाले पार करके पर्चें बाँटने जातीं, बेधड़क मशीनगनों के सामने खड़ी हो जातीं और अक्सर सिपाहियों को ताना मारती थीं कि उनमें हिम्मत हो तो एक बुढ़िया को गोली मारकर दिखायें।’’
मदर जोंस ने मज़दूर बस्तियों की औरतों को संगठित कर मज़दूर हितों की लड़ाई का एक सक्रिय और अहम हिस्सा बना दिया। उनका एक सबसे असरदार हथियार था ‘‘बरतन-भाँडा ब्रिगेड’’। सन् 1900 में पेनसिल्वेनिया के कोयला मज़दूर जब हड़ताल पर थे तो मदर जोंस ने औरतों को संगठित करके हड़तालतोड़कों को हड़ताली मज़दूरों की जगह काम पर जाने से रोक दिया। औरतें खदानों के गेट पर इकट्ठा हो गईं और अपने बरतन पीटते और झाड़ू लहराते हुए गद्दार मज़दूरों पर इतने जोर से चीखी-चिल्लायीं कि वे भाग खड़े हुए। मदर जोंस ने एक पत्र में लिखा है, ‘‘उस दिन से औरतें दिनो-रात खदानों पर चौकसी रखने लगीं, ताकि कम्पनी हड़ताल तोड़ने के लिए बाहरी मज़दूरों को न ला सके। हर रोज औरतें एक हाथ में झाड़ू और पतीले लिए हुए और दूसरे हाथ में शाल में लिपटे नन्हें बच्चों को सँभाले हुए खदानों पर जाने लगीं। उन्होंने किसी को भीतर नहीं जाने दिया।’’
सूत मिलों और कोयला खदानों में बच्चों से जिन हालात में काम लिया जाता था, उसे देखकर मदर जोंस गुस्से से बिफर उठती थीं। बाल मज़दूरों की हालत के बारे में खुद जानकारी लेने के लिए उन्होंने दक्षिण की कपड़ा मिलों में काम भी किया। केनसिंगठन में 1903 में कपड़ा मिल मज़दूरों की हड़ताल के लिए समर्थन जुटाने वहाँ गईं मदर जोंस ने उस समय के अनुभव के बारे में लिखा है, ‘‘हर दिन छोटे-छोटे बच्चे यूनियन के दफ्तर में आते थे। किसी का हाथ कुचल गया था, किसी का अँगूठा गायब था, किसी की उँगलियाँ कटी हुई थीं। वे अपनी उम्र से भी छोटे दिखते थे, दुबले-पतले और सिकुड़े हुए-से। उनमें से बहुतों की उम्र दस साल भी नहीं थी, हालाँकि प्रान्तीय क़ानून में बारह साल से कम के बच्चों से काम लेने की मनाही थी।’’ वह बच्चों का शोषण रोकने के लिए क़ानून बनाने की माँग लेकर फिलाडेफिया के बच्चों के एक बड़े जुलूस के साथ राष्ट्रपति थिओडोर रूजवेल्ट से मिलने भी गयीं जो उस वक्त न्यूयार्क के अपने बंगले में छुट्टियाँ मना रहा था। राष्ट्रपति ने उन लोगों से मिलने से भी मना कर दिया लेकिन जनता के दबाव में पेनसिल्वेनिया की विधानसभा को बाल मज़दूरी क़ानून में सुधार करना पड़ा।
मदर जोंस सौ साल तक ज़िन्दा रहीं और आखिरी साँस तक वह अमेरिका के मज़दूरों की दशा बेहतर बनाने के संघर्ष से किसी न किसी तरह जुड़ी रहीं।
लम्बी लड़ाई के बाद अमेरिका के मज़दूर वर्ग ने बहुत से अधिकार हासिल किये और नर्क के गुलाम जैसी ज़िन्दगी से मुक्ति पायी। अमेरिकी पूँजीपतियों ने दुनिया भर की मेहनतकश जनता को लूटकर अपने यहाँ मज़दूरों के एक हिस्से को खूब सुविधाएँ भी दीं। इन्हीं सुविधाप्राप्त मज़दूरों के बीच से निकले खाये-पिये अघाये मज़दूर कुलीनों ने अल्बर्ट पार्सन्स और मदर जोंस जैसे हीरों से जगमगाते अमेरिकी मज़दूर आन्दोलन के शानदार इतिहास को कलंकित कर दिया है। लेकिन हिन्दुस्तान सहित तीसरी दुनिया के तमाम देशों में आज भी करोड़ों मज़दूर वैसी ही नारकीय ज़िन्दगी जी रहे हैं जिसके खिलाफ सौ साल पहले मदर जोंस लड़ रही थीं। उनके लिए मदर जोंस की ज़िन्दगी प्रेरणा की मिसाल बनी रहेगी।
मदर जोंस ने बाल मज़दूरों की स्थिति का जायजा लेने के लिए मिल में मज़दूरी करते हुए जो रिपोर्ट लिखी थी, वह इस पोस्ट में
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