दिल्ली विधानसभा चुनाव-2013
किसे चुनें-सांपनाथ, नागनाथ, या बिच्छूप्रसाद को!
भगतसिंह का ख्वाब़
इलेक्शन नहीं इंक़लाब !
साथियो!
दिल्ली विधानसभा चुनाव की महानौटंकी अपने पूरे जोर पर है। एक-दूसरे को चुनावी जंग में धूल चटाने के ऐलान के साथ ही चुनावी हम्माम में एक-दूसरे को नंगा करने की होड़ भी मची हुई है। जो चुनावी नजारा दिख रहा है। उसमें भाजपा का दावा है कि वे बिजली के बिल 30 फीसदी कम कर देगी और सब्जी के दाम आधे कर देगी! तो ‘आम आदमी पार्टी’ का ऑफर है कि हमें सत्ता में लाइये और बिजली के बिल में 50 फीसदी की छूट पाइये! वहीं कांग्रेस अपने पन्द्रह साल के “विकास” का ढोल पीट रही है! चुनावी पार्टियों के इन हवाई दावों के बीच जब आज महँगाई आसमान छू रही है, थाली से दाल-सब्ज़ी गायब हो रही है; शिक्षा, चिकित्सा, रिहायश आम मेहनतकश आदमी की पहुँच से बाहर होता जा रहा है तो सवाल यह उठता है कि क्या हमारे पास चुनावों में वाकई कोई विकल्प है? पिछले 62 साल के चुनावों का अनुभव तो यही बताता है कि इन पूँजीवादी चुनावों कोई भी जीते, हार जनता की ही होती है! आइये इस चुनाव के साँपनाथ, नागनाथ और बिच्छू प्रसाद पर एक नज़र डाल लें!
सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा में केवल झण्डों और नारों का फर्क है। दोनों की आर्थिक नीतियाँ एकसमान हैं। जिन आर्थिक नीतियों पर अमल के कारण आज महँगाई आसमान छू रही है, उन पर ही भाजपा भी सरकार में होने पर अमल करती है। महँगाई के लिए मूलतः दो कारक ज़िम्मेदार हैं – पहला, पूँजीवादी आर्थिक नीतियाँ, जिन्होंने खाद्यान्न आपूर्ति को पूरी तरह बाज़ार के हवाले कर दिया है। कीमतों पर सरकार का नियन्त्रण नहीं रह गया है। दूसरा कारक है जमाखोरों और कालाबाज़ारियों द्वारा अनाज की कीमतों को जान-बूझकर बढ़ाना। भाजपा को तो महँगाई के बारे में एक भी शब्द नहीं बोलना चाहिए! क्या भाजपा भूल गयी है कि उसी के राज में प्याज 70 से 80 रुपये किलो बिका था? बल्कि कहा जा सकता है कि जमाखोरों व व्यापारियों की पार्टी भाजपा सत्ता में आयी तो महँगाई और बढ़ेगी ही। पिछले 25 वर्षों के दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें रही हैं। इस दौरान दिल्ली में अमीरज़ादों के लिए निश्चित तौर पर विकास हुआ है तभी आज कहने को दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय 2,00,000 रूपये ‘‘जरूर’’ है लेकिन असल में दिल्ली के असंगठित क्षेत्र के 50 लाख मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिलती। साथ ही 2006 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के कारखानों-फैक्टरियों में मज़दूर अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर है। वहीं दिल्ली के सरकारी स्कूलों (नगर निगम और राज्य सरकार दोनों के) की हालत ख़स्ता है। कइयों में शिक्षक, पानी, बिजली और यहाँ तक कि शौचालय तक नहीं हैं! सरकारी अस्पताल बेहद कम हैं और बुरी हालत में हैं। आम मेहनतकश लोगों के इलाकों में सड़कें या तो हैं नहीं या दयनीय हालत में है। कूड़े-कीचड़ के जमाव के कारण हैज़ा, मलेरिया, डेंगू और चिकुनगुनिया हर साल सैकड़ों ग़रीबों की जान ले लेते हैं! आम मेहनतकश जनता के लिए कांग्रेस और भाजपा की सरकारों के तहत हुए इस “विकास” का यही अर्थ है।
चुनावी दंगल में उतरे श्रीमान सुथरा अरविन्द केजरीवाल की ‘आप’ पार्टी के लिए सारी समस्या भ्रष्टाचार है! यह दिल्ली के खाते-पीते खुशहाल मध्यवर्ग के एक अन्य हिस्से की नुमाइन्दगी करने वाली पार्टी है। केजरीवाल के लिए दिल्ली के करीब 60 लाख मज़दूरों के लिए श्रम कानूनों का न लागू होना कोई मुद्दा नहीं है? मज़दूरों के ख़िलाफ़ होने वाले इस नंगे भ्रष्टाचार के विरुद्ध केजरीवाल ने कभी एक भी शब्द क्यों नहीं बोले? इसका कारण यह है कि केजरीवाल की पार्टी के ही तमाम प्रत्याशी स्वयं छोटे और मँझोले मालिक और व्यापारी हैं, जो बड़ी कम्पनियों और मालिकों से भी ज़्यादा नंगई के साथ श्रम कानूनों का उल्लंघन करते हैं! केजरीवाल बिजली के बिलों में कटौती करने का सपना दिखाते हैं, लेकिन इस पर चुप्पी साध लेते हैं कि बिजली का निजीकरण समाप्त किया जायेगा या नहीं? कौन नहीं जानता कि दिल्ली में बिजली के बिल निजीकरण के कारण आसमान छू रहे हैं? अगर आप ग़ौर करें तो आप पाएँगे कि केजरीवाल कभी भी ऐसा कोई मुद्दा नहीं उठाते जिससे कि मालिकों, ठेकेदारों, कारपोरेट कम्पनियों के वर्ग को कोई नुकसान होता हो। वह बस सरकारी दफ़्तर के भ्रष्टाचार और नेताओं द्वारा किये जान रहे घोटालों की ही बात करते हैं, जबकि इस भ्रष्टाचार की जड़ में तो मौजूदा मुनाफ़ाखोर व्यवस्था है जिसके बारे में केजरीवाल कभी एक लफ्ज़ नहीं बोलते! ‘आप’ का मकसद है जनता को ‘बुरे पूँजीवाद’ की जगह ‘सन्त पूँजीवाद’ लाने का सपना दिखाकर बेवकूफ़ बनाना और अन्त में उन्हीं धन्नासेठों की सेवा करना जिनकी सेवा कांग्रेस, भाजपा व अन्य चुनावी पार्टियाँ कर रही हैं! इसलिए इन मदारियों से तो सबसे ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है।
इन 66 वर्षों ने यह साबित ही किया है कि धनबल-बाहुबल के बूते लड़े जाने वाले पूँजीवादी चुनाव सिर्फ़ इस बात का फैसला करते हैं कि अगले 5 वर्षों तक पूँजीपतियों की ‘मैनेजिंग कमेटी’ का काम किस पार्टी की सरकार करेगी! हमें यह समझना चाहिए कि समूची मुनाफ़ाखोर पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंके बग़ैर आम मेहनतकश जनता का कोई भविष्य नहीं है। ऐसे इंक़लाब के ज़रिये ही मेहनतकश जनता उत्पादन, राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर अपना हक़ कायम कर सकती है और फैसला लेने की ताक़त अपने हाथों में ले सकती है! इसलिए अन्तिम तौर पर हमारा नारा यही हैः
खत्म करो पूंजी का राज-लड़ो बनाओ लोकस्वराज !!
नौजवान भारत सभा
बिगुल मज़दूर दस्ता
दिशा छात्र संगठन
सम्पर्कः बी-100, गली नं-3, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-94
फोन नं-011-64623928, 9289498250,9873358124, 9540436262 ईमेल- delhinbs@gmail.com
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन