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1. एक नये क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार की ज़रूरत विशेष सम्पादकीय (बिगुल प्रवेशांक, अप्रैल 1996)
2. कुछ ज़्यादा ही लाल… कुछ ज़्यादा ही अन्तरराष्ट्रीय (बिगुल के स्वरूप पर आत्माराम का पत्र), (जुलाई-अगस्त 1996)
3. इतने ही लाल… और इतने ही अन्तरराष्ट्रीय की आज ज़रूरत है (सम्पादक बिगुल का जवाब), (जुलाई-अगस्त 1996)
4. ‘बिगुल’ के लक्ष्य और स्वरूप पर एक बहस और हमारे विचार
5. मज़दूर अख़बार – किस मज़दूर के लिए? (लेनिन का लेख)
6. आप लोग कमज़ोर, छिछले कैरियरवादी बुद्धिजीवी हैं और ‘बिगुल’ हिरावलपन्थी अख़बार है! (जून-जुलाई 1999, पी.पी. आर्य का पत्र)
7. 1999 के भारत के ‘क्रीडो’ मतावलम्बी (जून-जुलाई 1999, सम्पादक, बिगुल का जवाब)
8. सर्वहारा वर्ग का हिरावल दस्ता बनने की बजाय उसका पिछवाड़ा निहारने की ज़िद (अगस्त 1999, विश्वनाथ मिश्र का जवाब)
9. भारतीय मज़दूर आन्दोलन की पश्चगामी यात्रा के हिरावल ”सेनानी” (अगस्त 1999, अरविन्द सिंह का जवाब)
10. बिगुल के लक्ष्य और स्वरूप पर बहस को आगे बढ़ाते हुए (अक्टूबर 1999 – विशेष बहस परिशिष्ट, पी.पी. आर्य का पत्र)
11. बहस को मूल मुद्दे पर एक बार फिर वापस लाते हुए (अक्टूबर 1999 – विशेष बहस परिशिष्ट, सम्पादक, बिगुल का जवाब)
12. ‘बिगुल के लक्ष्य और स्वरूप’ पर जारी बहस : एक प्रतिक्रिया (अक्टूबर 1999 – विशेष बहस परिशिष्ट, ललित सती का पत्र)
13. देर से प्रकाशित एक और प्रतिक्रिया (अक्टूबर 1999 – विशेष बहस परिशिष्ट, देहाती मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ताओं का पत्र)
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन
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