सनातन संस्था – फासीवादी सरकार की शह में फलता–फूलता आतंकवाद
नारायण खराडे
हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता व प्रगतिशील बुद्धिजीवी-लेखक कॉ. गोविन्द पानसरे की हत्या के आरोप में सनातन संस्था के “साधक” समीर गायकवाड को गिरफ्तार किया। महाराष्ट्र के वाशी और ठाणे में व गोवा के मडगाव में बम विस्फोट, उसके बाद कॉ. पानसरे की हत्या , ऐसी एक के बाद एक आतंकवादी कार्रवाइयों में सनातन संस्था के “साधकों” के हाथ होने के प्रमाण मिलने के बाद जहाँ एक तरफ सनातन संस्था पर प्रतिबन्ध लगाने की बात हो रही है तो दूसरी तरफ सनातन संस्था ने सभी हिन्दू धर्म “अभिमानियों” का सनातन संस्था की बदनामी के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया है। आज देश में पसर रही धार्मिक कट्टरपंथी लहर और उसे सरकार की तरफ से मिलती शह के बीच सनातन संस्था पर प्रतिबन्ध लगने की सम्भावना नहीं के बराबर है। पर इस बहाने सनातन संस्था कौन से “दैवीय राज्य” की स्थापना करना चाहती है, वो हमारे सामने आ गया है।
सनातन संस्था की स्थापना पेशे से सम्मोहन चिकित्सक जयंत आठवले ने 1990 में की थी। संस्था की वेबसाइट व अन्य जगहों पर दी गयी जानकारी के अनुसार इसका उद्देश्य अध्यात्म का अध्ययन विज्ञान के रूप में करना है। इसके लिए ये संस्थान ‘सनातन प्रभात’ नाम का अख़बार, धार्मिक साहित्य का अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशन, नियमित सत्संग मेले व भव्य हिन्दू धर्म जागृति परिषद जैसे उपक्रम चलाती है। इसी के साथ ही दिसम्बर 2008 से श्री शंकरा नाम के चैनल पर सनातन संस्था व हिन्दू जनजागृति समिति ने मिलकर धर्मसत्संग व धर्मशिक्षणवर्ग (धर्म के बारे में समाज में लोगों को जागृत करना) नाम के दो कार्यक्रम प्रसारित करने शुरू किये। भारत के अनेक राज्यों और विदेशों में सनातन संस्था के केन्द्र हैं जो मासूम बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को हिन्दू धर्म के “विज्ञान” से परिचित करवाने, उन्हें संगठित करने व उनका धार्मिक “उन्नयन” करने का काम करते हैं। “हिन्दू राष्ट्र” की स्थापना करने को अपना ध्येय बताने वाली ये संस्था ये भी दावा करती है कि उनके साधकों पर किसी धर्म के मूल्य लादे नहीं जाते। “धर्मद्रोहियों” के खिलाफ लड़ाई को संस्था ने हमेशा ही अपना मुख्य कार्यभार माना है। “क्षत्रिय धर्म”, “दुष्टों का नाश” जैसे शब्दों से आक्रामक धार्मिकता का प्रचार संस्था लगातार करती रही है। पहले केवल ‘सनातन प्रभात’ अख़बार के लेखों में शाब्दिक स्तर पर चल रहे इस धर्मयुद्ध को पहली बार 2008 में ठाणे व वाशी के नाटकघरों में जनता ने ठोस रूप में देखा। “आम्ही पाचपुते” नाम के मराठी नाटक में हिन्दू देवी देवताओं के तथाकथित अपमान के विरोध में 31 मई को वाशी के विष्णुकदास भावे नाटकघर में व उसके बाद 4 जून को ठाणे के गडकरी नाटकघर की पार्किंग में बम विस्फोट किये गये। इन विस्फोटों में 7 लोग घायल हुए। इस प्रकरण में संस्था के 6 साधकों को गिरफ्तार किया गया जिसमें से 4 को न्यायालय ने रिहा कर दिया व बाकी 2 को दस साल की सजा सुनाई। अभियुक्तों ने किसी संस्था की तरफ से विस्फोट किये हैं, ऐसा न्यायालय ने अपने फैसले में नहीं कहा। इसके बाद 2009 में गोवा के मडगाव में पुन: एक बम विस्फोट हुआ। दिवाली के पहले दिन उत्सव के रंग में रंगी भीड़ के बीच बम रखने जा रहे संस्था के दो साधक “मोक्ष” को प्राप्त हो गये और एक बार फिर पुलिस की नज़र संस्था की तरफ गयी। इस घटना में भी संस्था के पांच अन्य साधकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया पर सबूतों के “अभाव” में वो छूट गये। रूद्रा पाटील व अन्य दो आरोपी आज तक फरार हैं। 2013 में नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या में भी सनातन संस्था के हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। अब कॉ पानसरे की हत्यां में समीर गायकवाड की गिरफ्तारी के बाद नरेन्द्र दाभोलकर के साथ-साथ प्रो. कलबुर्गी की हत्या में सनातन के हाथ होने की आशंका को ज्यादा बल मिल रहा है। डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर के अंधश्रद्धा निर्मूलन के कार्यों का सनातन संस्था हमेशा से विरोध करती आयी थी। अंधश्रद्धा विरोधी विधेयक को समर्थन देने के कारण नरेन्द्र दाभोलकर पर सनातन संस्था ने केस भी दर्ज करवाया था। 2011 में एक न्यूज़ चैनल पर चल रही चर्चा में सनातन का प्रतिनिधि अभय वर्तक निरुत्तर हो भाग खड़ा हुआ था। उस चर्चा में नरेन्द्र दाभोलकर भी शामिल थे व संचालन पत्रकार निखिल वागले कर रहे थे। इस घटना के बाद संस्था ने अपने अख़बार ‘सनातन प्रभात’ में वागले के विरुद्ध मुहिम चलाई और उनका व्यक्तिगत मोबाइल नम्बर अख़बार में छापकर अपने साधकों को उन्हें फोन कर स्पष्टीकरण माँगने को कहा। उसके बाद वागले को भी फोन पर निरन्तर धमकियाँ मिलने लगी। अब समीर गायकवाड की गिरफ्तारी के बाद ये भी खुलासा हुआ है कि निखिल वागले भी इनके निशाने पर थे। संस्था के “धर्मद्रोहियों” की लिस्ट में कॉ. पानसरे थे व संस्था ने उनके विरुद्ध मडगाव न्यायालय में 10 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा भी किया था। उसी समय उन्होंने कॉ. पानसरे को “तुम्हें भी दाभोलकर बना दें क्या?” कहते हुए धमकी भी दी थी।
डॉ. दाभोलकर, कॉ. पानसरे व प्रो. कलबुर्गी की हत्याओं में मडगाव बम विस्फोट प्रकरण में फरार चल रहे रूद्रा पाटील व अन्य साधकों के हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। ये हत्याएंँ जहाँ-जहाँ हुईं वहाँ सनातन संस्था काफी सक्रिय है। संस्था के साधकों द्वारा प्रयुक्त हथियार ज़ब्त किये जा चुके हैं व आशंका है कि उनका इस्तेमाल इन हत्याओं में हुआ था। दाभोलकर की हत्या के गवाहों द्वारा दिये गये वर्णन के अनुसार बनाया गया स्केच मडगाव बम विस्फोट में फरार चल रहे एक व्यक्ति के चेहरे से मिल रहा है। इसके बाद भी संस्था का दावा है कि उसका इन हत्याओं में कोई हाथ नहीं है, पर फिर भी अपने साधक समीर गायकवाड को निर्दोष बताते हुए उसके बचाव के लिए वकीलों की फौज खड़ी कर दी है।
गायकवाड की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से सनातन संस्था पर प्रतिबन्ध की माँग के लिए सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। गोवा के बांदोडा गाँव में संस्था का मुख्य आश्रम है और वहां के स्थानीय ग्रामीणों ने प्रतिबन्ध लगाने की माँग को लेकर आन्दोलन भी शुरू किया है। लेकिन अन्य हिन्दू कट्टरपंथी संगठन व शिवसेना, बीजेपी जैसी पार्टियाँ कभी सामने तो कभी छुपकर सनातन संस्था का बचाव कर रही हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि संस्था पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रस्ताव राज्य सरकार की तरफ से आना चाहिये। इसलिए सनातन संस्था पर प्रतिबन्ध लगने की आशंका बहुत कम है। आज विपक्ष में बैठकर सनातन पर त्वरित प्रतिबन्ध की माँग करने वाले कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं ने उस पर अपने शासनकाल में प्रतिबन्ध नहीं लगाया व अब एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं।
आज के आधुनिक समय में सनातन संस्था जैसे संगठन समाज में कैसे ज़्यादा से ज़्यादा प्रभावशाली व ताक़तवर होते जा रहे हैं व उसका समाज पर क्या परिणाम होगा – ये मज़दूर वर्ग की दृष्टि से समझना आज अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज की व्यवस्था ने आम जनता का जीना दूभर कर दिया है। एक तरफ हम लोग विज्ञान की प्रगति की बातें सुनते हैं तो दूसरी तरफ बहुसंख्यक जनता को बदहाली, गरीबी का जीवन बिताना पड़ता है। बेरोज़गारी दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण कर रही है। शिक्षा महँगी होती जा रही है व मूलभूत अधिकारों से जनता को वंचित किया जा रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर की घुसपैठ से अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं से समाज का बड़ा हिस्सा वंचित हो गया है। ऐसी समस्याओं की सूची और भी लम्बी बनायी जा सकती है। इन सब परिस्थितियों ने आम जनता के जीवन में एक लगातार कायम करने वाली भयंकर अनिश्चितता कायम की है। आर्थिक जगत में कायम ये अनिश्चितता धीरे-धीरे जीवन के हर कोने-कतरे में प्रवेश कर जाती है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में इस अनिश्चितता को मात देने के लिए लोग किसी पारलौकिक शक्ति का सहारा ढूँढ़ते हैं। आम जनता के जीवन की इन समस्याओं को दूर करने के लिए सामाजिक परिस्थिति का बदलना ही सच्चा उपाय होता है और उसके लिए ठोस लड़ाई खड़ी करनी पड़ती है। सही विकल्प के अभाव में आम जनता धार्मिकता, दैववाद, अन्धश्रद्धा के चंगुल में फँस जाती है। सनातन संस्था जैसे संगठनों का आधार इसी पृष्ठभूमि में होता है। ऐसे संगठनों का उद्देश्य लोगों को सही समस्या व उसके सही समाधान से भटकाकर एक भ्रम के जाल में फँसाना होता है। ऐसी संस्थाएँ समाज परिवर्तन की लड़ाई कमज़ोर करती हैं व शासक वर्ग के विचारों के प्रचार-प्रसार से इस व्यवस्था को मज़बूत बनाती है, खासकर फासीवाद के सामाजिक आधार को बढ़ाती है। समाज में पसरी गरीबी, विषमता, भेदभाव, दलितों-स्त्रियों पर होने वाले भीषण अत्याचार – क्या सनातन संस्था ने कभी इनका विरोध किया है? उल्टा ऐसी घटनाओं में उसने हमेशा ही प्रतिक्रियावादी व मानवद्रोही भूमिका अख्तियार की है व अपने “दैवीय राज्य” व “धार्मिक उत्थान” का बेसुरा राग अलापा है। सनातन संस्थान व ऐसे ही अन्य धार्मिक कट्टरपंथी संगठनों का ये असली चेहरा आम जनता को पहचानना होगा। साथ ही ये भी ध्यान देगा होगा कि ऐसी कट्टरपंथी ताकतों से लड़ने के लिए सिर्फ तर्कशीलता का प्रचार करना ही काफ़ी नहीं है। जिस सामाजिक आधार के कारण आज धार्मिक कट्टरपंथ व रूढ़िवाद को बढ़ावा मिल रहा है, उसे नष्ट करने के लिए व्यापक राजनीतिक-सांस्कृतिक संघर्ष खड़ा करने की ज़रूरत है। इसके बिना सनातन संस्था जैसी संस्थाओं का सामाजिक आधार खत्म नहीं होगा। व्यापक जनता को उसके जीवन की सच्चाइयों के आधार पर लामबन्द करते हुए ऐसा संघर्ष खड़ा करना आज प्रगतिशील ताकतों के सामने मौजूद मुख्य चुनौती है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर-नवम्बर 2015
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