मानेसर की ब्रिजस्टोन कम्पनी के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद !
बिगुल संवाददाता
देश की बड़ी-बड़ी कार कंपनीयों के लिए पुर्जे बनाने वाली ब्रिजस्टोन इंडिया प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, मानेसर के श्रमिक अपने यूनियन बनाने के अधिकार को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। यह कंपनी ब्रिजस्टोन कारपोरेशन, जापान की सहायक कंपनी है। यहाँ गाड़ियों के कम्पन विरोधी पुर्ज़े (एंटी-वाइब्रेशन प्रोडक्ट्स) बनते हैं।
गुडगाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बवाल तक फैली ऑटोमोबाइल सेक्टर की औद्योगिक पट्टी में दुनिया की नामी-गिरामी ब्रांड की गाड़ियों और उनके पूर्जों का उत्पादन हज़ारों औद्योगिक इकाईयों में होता हैं। देश की अर्थव्यवस्था में मुख्य हिस्सेदारी इस पट्टी से आती है। लकिन इस पट्टी में तेज रफ़्तार वाहनों का निर्माण करने वाले मज़दूरों की ज़िन्दगी के हालात बहुत बदतर हैं। ब्रिजस्टोन इंडिया के मज़दूर पिछले छह महीने से यूनियन बनाने की कवायद में जुटे थे। मज़दूरों के द्वारा यूनियन बनाने की प्रक्रिया में प्रबंधन ने शुरू से ही बाधा पहुँचाने का काम किया। ब्रिजस्टोन कम्पनी के मज़दूर ‘ब्रिजस्टोन इंडिया ऑटोमोटिव एम्प्लाइज यूनियन’ नामक अपनी यूनियन को पंजीकृत कराना चाहते थे। जब मज़दूर पहली बार यूनियन बनाने के लिए एकजुट हुए, तब भी कम्पनी के जेनरल मनेजर मनोज मनचंदा ने उनमे से कुछ कमज़ोर मज़दूरों को खरीद कर इस प्रक्रिया पर विराम लगाने की कोशिश की थी। किन्तु मज़दूरों ने हार नहीं मानी और एक बार फिर नए नेतृत्व के साथ सावधानी से नए सिरे से यूनियन निर्माण की प्रक्रिया में जुट गए। उन्होंने अलग-अलग जगह बैठकें की । यूनियन पंजीकरण के लिए ज़रूरी दो जनरल बॉडी मीटिंग, दिनांक 12 अप्रैल 2015 और 31 मई 2015 को की गयी। कंपनी प्रबंधन को इस बात की जानकारी लेबर विभाग के भ्रष्ट अधिकारिओं की मदद से मिल गयी। उन्होंने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ से यह साबित करने की कोशिश की कि बैठक में शामिल हुए 31 मज़दूरों में से 11 काम पर मौजूद थे, ओवर टाइम कर रहे थे। इस लिए इन बैठकों को फ़र्ज़ी माना जाए। इस कारखाने में तक़रीबन 180 स्थायी मज़दूर काम करते हैं, इस लिहाज़ से भी यदि अगर बैठक में महज 20 लोग भी शामिल हैं तो वे यूनियन पंजीकरण के योग्य हैं। इस आधार पर लेबर कमिसनर ने प्रक्रिया आगे बढ़ाते हुए फाइल डिप्टी लेबर कमिसनर अनुपम मालिक को सौंपी। इसके बाद आगे की करवाई मंद पड़ गयी। न ही कोई वैध कारण बता कर यूनियन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया रद्द की और न ही पंजीकरण संख्या ज़ारी किया गया।
वहीँ दूसरी तरफ सत्यापन तिथि के बाद से मैनेजमेंट ने प्रक्रियाधीन यूनियन के मनोनीत पदाधिकारी कृष्ण मुरारी और शिवपूजन को बिना किसी नोटि स के चेन्नई प्लांट ट्रान्सफर कर दिया। उनके द्वारा मना करने पर उन्हें काम से निकाल दिया गया। प्रबंधन ने चुन चुन कर बीसियों श्रमिकों को काम से बहार का रास्ता दिखाया। इन सब के विरोध में मज़दूरों ने कोर्ट से परमिशन लेकर 17 सितम्बर को टूल डाउन किया। उस दिन उन्हें पुलिस और गुंडों के दम पर कंपनी से बाहर कर दिया गया। मज़दूरों के एक दिन के टूल डाउन के जवाब में अगले दिन कंपनी ने गैर-कानूनी तालाबंदी कर दी। अगले दिन जब श्रमिक सुबह की शिफ्ट में काम पर आये, तब गेट पर पुलिस और बाउंसरों के साथ खड़े मैनेजमेंट ने उन्हें अंदर जाने से रोका। श्रमिकों से कहा गया की उन्हे आधे घंटे बाद बताया जायेगा की उन्हें काम पर लिया जायेगा या नहीं। जब दुबारा श्रमिक गेट पर पहुंचे तब बाउंसरों ने 4 श्रमिकों को अंदर खिंच लिया। उन्हें धमकी दी गयी की या तो वे काम करें या कोरे कागज़ पर दस्तख़त कर निकल जाए। इसके बाद तक़रीबन 400 श्रमिकों ने वहीं कंपनी गेट से थोड़ी दूरी पर टेंट लगाकर हड़ताल शुरू कर दी। श्रमिकों ने मांग की कि बाहर निकाले गए 20 मज़दूरों समेत सभी को काम पर वापिस लिया जाये और यूनियन बनाने दिया जाये। इसके बाद प्रबंधन पुलिस वालों को भेज कर मज़दूरों पर दबाव बनाने का काम कर रही थी। वहीं दूसरी तरफ काम पर आई महिला मज़दूरों के साथ बदसलूकी की गई। कारखाने में तक़रीबन 40 -45 महिला श्रमिक हैं। उनसे जबरन मोल्डिंग का काम करवाया गया, जिसके बारे में महिलाओं को कोई जानकारी नही है। महिला मज़दूर आम तौर पर डफ्लैशिंग का काम करतीं हैं पर फैक्ट्री प्रबंधन ने बलपूर्वक उन से पुरुष श्रमिकों द्वारा किये जाने वाला काम करवाया। यहाँ तक की उन्हें फैक्ट्री परिसर में झाड़ू-पोछे करने तक के लिए मज़बूर किया गया। अगले दिन महिला श्रमिकों ने भी हड़ताली मज़दूरों का साथ देने का निर्णय किया। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रेक्ट वर्कर्स यूनियन ब्रिजस्टोन के मजदूरों के संघर्ष में उनका समर्थन कर रही है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रेक्ट वर्कर्स यूनियन के अनंत ने बताया कि मजदूरों द्वारा यूनियन बनाने के अधिकार को कुचलने का यह कोई पहला मामला नही है। इससे पहले भिवाड़ी में श्री राम पिस्टन के मजदूरों ने भी यूनियन बनाने के मांग को लेकर हड़ताल की थी फर्क बस इतना था कि श्री राम पिस्टन कम्पनी राजस्थान के भिवाड़ी में स्थित है और ब्रिजस्टोन हरियाणा के मानेसर में। मजदूरों की हालत हर जगह एक सी है। अपने खून पसीने से चम चमाती गाड़ियाँ बनाने वाले इन मजदूरों की ज़िन्दगी में अँधेरे, भूख और गरीबी के अलावा कुछ नही है। आज के समय में मजदूरों को अपनी एक सेक्टरगत यूनियन बनाने की ज़रूरत है जो कि उस सेक्टर में काम कर रहे सभी मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष करे। रिपोर्ट लिखे जाने तक ब्रिजस्टोन कंपनी के मज़दूर अपने हक़-अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं और फैक्ट्री के बाहर हड़ताल पर बैठे हैं।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर-नवम्बर 2015
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन