संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने मजदूरों का आन्दोलन समाप्त होने के बाद भी उद्योगपतियों के एक हिस्से द्वारा चलाये जा रहे प्रचार युध्द की निन्दा करते हुए कहा है कि अपनी हठधर्मिता और घोर मजदूर विरोधी रुख के चलते ये उद्योगपति माहौल को बिगाड़ रहे हैं।
मोर्चा ने कहा है कि मजदूर शुरू से ही सरकार द्वारा निर्धारित ”न्यूनतम मजदूरी” देने और जॉब कार्ड, ईएसआई जैसी चन्द बुनियादी सुविधाओं के अतिरिक्त कुछ नहीं मांग रहे हैं। यदि श्रम कानूनों के कुछ बुनियादी प्रावधानों को लागू करना ही विकास में बाधक है तो इन उद्योगपतियों को श्रम कानूनों के विरुध्द सरकार से लड़ना चाहिए। क्या विकास का यही मतलब है कि उद्योगों में काम करने वाली बहुसंख्यक आबादी को न्यूनतम वेतन भी न मिल सके? क्या सभी कानूनी हकों से मजदूरों को वंचित रखकर ही विकास हो सकता है?
प्रदेश के विकास और शान्ति की चिन्ता करने वाले इन उद्योगपतियों को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि हजारों मजदूरों को सड़कों पर उतरने के लिए बाध्य किसने किया, कानून एवं प्रशासन के माध्यम से उनकी बात सुनी जाने और जायज अधिकार पाने के सभी दरवाजे बन्द करके तथा दमन का सहारा लेकर अशान्ति के हालात किसने पैदा किये।
मोर्चा ने कहा कि गोरखपुर एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के अन्य उद्योगपतियों को भी सोचना चाहिए कि कुछ उद्योगपतियों द्वारा अपने अहं और महत्वाकांक्षा के चलते अपनाये गये इस प्रकार के रवैये से उद्योगों एवं औद्योगिक माहौल का कितना भला हो सकता है।
मोर्चा ने कहा कि उद्योगपति बार-बार ऐसी बातें कहकर हजारों मजदूरों को अपमानित कर रहे हैं कि उन्हें कुछ लोग बरगला-फुसलाकर सबकुछ करा रहे हैं। साथ ही उसने चेतावनी दी कि शोषित-उत्पीड़ित मजदूरों के पक्ष में खड़े होने वाले न्यायप्रिय नौजवानों पर कीचड़ उछालने का सिलसिला यदि बन्द नहीं किया जायेगा तो वरिष्ठ वकीलों से राय लेकर दीवानी एवं फौजदारी दोनों अदालतों में चरित्रहनन एवं मानहानि के मुकदमे की प्रक्रिया शुरू की जायेगी।
तपीश मैंदोला
कृते, संयोजन समिति
संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन