‘‘बेहतर भारत बनाने की मुहिम’’ किसके लिए और कैसे?
अमित
आजकल दिल्ली की सड़कों पर ‘वालंटियर फ़ॅार बेटर इंडिया’ के नाम से बड़ी-बड़ी होर्डिग और पोस्टर लगे हुए हैं, जिसमें हिंसक प्रवृत्ति वाले लोगों के मदद करने की बातें लिखी हुई है। यानी की उन्हें ‘‘शान्त’’ और ‘‘सुविचारी’’ बनाने के अभियान की बात है। ये ‘शुभ काम’ जाने माने बाबा और ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी की ‘असीम कृपा’ से शुरू किया गया है।
ये वही ‘महान बाबा’ रविशंकर हैं। जिनकी नजर में सरकारों स्कूल में पढ़ने वाले आम ग़रीब और मज़दूर आबादी के बच्चे नक्सली और हिंसक है और दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी, वरुण गाँधी और तेजेन्द्र सिंह बग्घा जैसे लोग दयालु और ‘‘शान्ति प्रिय’’ लोग हैं। आइए, इस महान कर्म को थोड़ा विस्तार में जाँचते और समझते हैं।
3 फ़रवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान में श्री श्री रविशंकर ने ‘वॉलण्टियर फॉर बेटर इंडिया’ नामक अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत हिंसक प्रवृत्ति वाले लोगों की मदद के लिए हेल्पलाइन नम्बर खोला गया है। ‘वॉलण्टियर फ़ॉर बेटर इंडिया’ का मतलब है बेहतर भारत बनाने का अभियान। हालाँकि, ये ‘बेहतर भारत’ किसके लिए होगा इसकी चर्चा हम आगे करेंगे, फिलहाल हम बाबा के हिंसा उन्मूलन की चिंता के बारे में बात करते हैं। जैसे कि आप जानते ही हैं कि 16 दिसम्बर की घटना के बाद सारे बाबा-संत से लेकर संघी भगवाधारी देश की संस्कृति को लेकर अजीबो-ग़रीब बयानबाजी कर रहे हैं; ऐसे में रविशंकर जी भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उनका मानना है कि देश के आम लोग, खासकर युवा बहुत हिंसक हो गए हैं, और उनके हिंसक होने की मुख्य वजह शराबखोरी, असहिष्णुता, तनाव आदि-आदि है। यही सारे अपराध की जड़ है।
लेकिन आम लोगों को शांति और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले इन श्री-श्री 420 को तब क्या हो जाता है जब ये नरेन्द्र मोदी जैसे ‘आतंक पुरुष’ का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। ये वही मोदी हैं जिसने गुजरात-2002 में हज़ारों बेगुनाह मुस्लिम आबादी का सुनियोजित जनसंहार करवाया था, ये वही मोदी है जो गुजरात में पूँजीपतियों को विकास के नाम पर ना सिर्फ़ मज़दूरों और ग़रीब किसानों का शोषण करने बल्कि घोर दमन के लिये भी खुली लूट की छूट दे रहा है, ।
श्री श्री जी का अहिंसा प्रेम यहीं नहीं रुकता। हम भूले नहीं हैं कि 2009 चुनाव से पहले पीलीभीत में वरुण गाँधी के घोर साम्प्रदायिक भाषण पर सबसे पहले बधाई संदेश भेजने वालों में भी श्री श्री जी आगे थे। शायद बाबा ने उन्हें ‘सहिष्णुता’, ‘प्रेम’ और ‘शान्ति’ के उपदेश देने के लिए बधाई पत्र भेजा था! बाबा के ‘हिंसा निवारण कार्यक्रम’ की दास्तान यहीं पर समाप्त नहीं होती। श्री श्री रविशंकर ने ही आर.एस.एस. के स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले सारे बच्चों को नक्सली बताया था और सरकार को ये स्कूल बन्द करने की सलाह तक दी थी। वैसे बाबा जिस संस्था के स्कूल में बैठकर प्रवचन दे रहे थे वही संस्था (यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) देश में अपने शिक्षा के नेटवर्क के ज़रिये सबसे ज़्यादा साम्प्रदायिकता का ज़हर बच्चों के दिमाग में घोलती है।
ये प्रवचन बाबा के असली चेहरे को साफ़ कर देता है कि बाबा की नज़र में आम आबादी के बच्चे जन्म से ही हिंसक होते हैं और उनकी शिक्षा के लिए अभी सरकार जो नाममात्र की राशि खर्च कर रही है उसे भी ख़त्म करने की बात करते हैं। जाहिर है, ये चाहते हैं कि आम मेहनतकश आबादी की सन्तान अशिक्षित ही रहे ताकि वह केवल मालिक के लिए हाड़माँस गला कर तिजोरी भरने की मशीन बने रहे।
ये चन्द घटनाएँ हिंसा के खिलाफ़ मुहिम चलाने वाले श्री-श्री रविशंकर की पोल खोल देती हैं कि ये बाबा खुद कितने गहरे ढंग से हिंसा और हिंसक व्यक्तियों से जुड़ा हुआ है। यही है श्री श्री रविशंकर का असली चेहरा, नंगा और जन विरोधी, फासिस्ट चेहरा।
‘वालण्टियर फ़ॉर बेटर इंडिया’ अभियान शुरू करने वाले इस बाबा का वर्ग-विश्लेषण भी कर लिया जाए। आखिर इतने बड़े-बड़े होर्डिंग, पोस्टर, बैनर और इतने भव्य मंच आदि पर खर्च हुआ लाखों-करोड़ रुपया कहाँ से आता हैं? वैसे इस सवाल का जवाब ज़्यादा मुश्किल नहीं है क्योंकि श्री-श्री रविशंकर के सारे बैनरों के नीचे चान्दनी चौक से लेकर करोल बाग के सारे व्यापारी संघ के नाम साफ़-साफ़ दिख जाते हैं और वही व्यापारी हैं जो अपनी दुकानों-शोरूम पर काम कर रहे मज़दूरों से कोल्हू के बैल की तरह काम लेते हैं और किसी भी श्रम-कानून का पालन नहीं करते हैं। लेकिन, ज़ाहिर है कि श्री-श्री रविशंकर मज़दूरों के श्रम की लूट पर एक शब्द भी नहीं बोलेंगे क्योंकि इस लूट का एक हिस्सा श्री-श्री जी को चंदे के रूप में मिलता हैं। वैसे भी श्री-श्री रविशंकर के प्रवचन को सुनाने वाली आबादी खाए-पीए उच्च वर्ग से लेकर सेवा क्षेत्र में लगी मध्य वर्ग की वो आबादी हैं जिससे बाबा संगीतमय आध्यामिक नशे की खुराक देकर पूँजीवादी व्यवस्था के बेहतर पुर्जे बने रहने की शिक्षा देते हैं। स्पष्ट है, एक ओर श्री-श्री रविशंकर पूँजीवादी व्यवस्था के मजबूत सेवक हैं वहीं दूसरी तरफ वे खुद भी एक पूँजीपति हैं क्योंकि इनका ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ फाउण्डेश्न करीब 152 देशों में एक व्यवसाय के तौर पर काम कर रहा है। वैसे ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ का मतलब है; जीवन जीने की कला। अब यह अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि हज़ारों रुपये की फीस लेकर अमीरज़ादों को किस क़िस्म की ‘ज़िन्दगी जीने की कला’ सिखाई जाती होगी।
खैर छोड़िये, बाबा के जीने की कला से बेहतर बाबा के पैसा कूटने की कला देखते हैं। जुलाई 2007 तक ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ फाउण्डेशन की कुल परिसम्पत्ति 77 लाख डॉलर की थी। जुलाई 2006 से जून 2007 तक इसकी कुल आय 55 लाख डॉलर होगी जिसमें से 35 लाख डॉलर कोर्स की फीस के रूप में और 17 लाख डॉलर ‘‘जन-समर्थन’’ के रूप में प्राप्त हुई। इस साल इनके द्वारा किया गया खर्च 36 लाख डॉलर था; यानी सीधे-सीधे 19 लाख डॉलर का शुद्ध मुनाफा। इसलिए पूँजीपतियों के ये बाबा खुद भी एक पूँजीपति से कम नहीं हैं। और, पूँजीपति बाबा का नज़रिया आम मेहनतकश आबादी के लिए वही होगा जो एक पूँजीपति का होता है।
अब इस बात को समझने में ज़रा सी भी परेशानी नहीं होनी चाहिए कि इस बाबा द्वारा चलाया गया ‘वालण्टियर फ़ॉर बेटर इण्डिया’ यानी बेहतर भारत बनाने का अभियान किसके लिए है! स्पष्टतः यह ‘बेहतर भारत’ उस खाते-पीते मध्यवर्ग, व्यवसायी और पूँजीपति वर्ग के लिए है जिसकी सेवा में मेहनतकश आबादी चुप्पी साधे लगी रहे।
हमें समझना होगा कि शासक वर्ग पूँजी की सेवा करने वाले बाबाओं के प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक ओर ‘‘धर्म और आध्यात्म’ रूपी ‘अफ़ीम’ का इस्तेमाल करता है तो दूसरी ओर कुछ सुधारवादी काम का भ्रमजाल भी बिछाता है। हमें ज़रूरत है कि ऐसे भ्रमजाल से बचने के लिए अपनी वर्ग शक्ति और वर्ग चेतना को बढ़ाये और मज़दूर वर्ग की एकता को व्यापक करें।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2013
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन