Table of Contents
(मज़दूर बिगुल के अक्टूबर 2024 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
चुनावी समीकरणों और जोड़-घटाव के बूते फ़ासीवाद को फ़ैसलाकुन शिक़स्त नहीं दी जा सकती है!
श्रम कानून
एक बार फिर न्यूनतम वेतन बढ़ाने के नाम पर नौटंकी करती सरकारें! / भारत
फासीवाद / साम्प्रदायिकता
हिमाचल प्रदेश में संघी लंगूरों का उत्पात और कांग्रेस सरकार की किंकर्तव्यविमूढ़ता / आशीष
मोहन भागवत की “हिन्दू” एकजुटता किसके लिए? / आशु
विशेष लेख / रिपोर्ट
रतन टाटा : अच्छे पूँजीवाद का ‘पोस्टर बॉय’
संघर्षरत जनता
मारुति के मज़दूर एक बार फिर संघर्ष की राह पर!
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
विकल्प का खाका
आपदाएं
आख़िर कब तक उत्तर बिहार की जनता बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर रहेगी? / विवेक
मज़दूर बस्तियों से
कला-साहित्य
कविता की ज़रूरत / कविता कृष्णपल्लवी
अल सल्वाडोर के क्रान्तिकारी कवि रोखे दाल्तोन (1935 – 1975) की कुछ कविताएँ
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन