उड़ीसा का ट्रेन हादसा : लोगों की जान से खेलती मोदी सरकार
बढ़ती रेल दुर्घटनाओं का ढाँचागत कारण है निजीकरण, छँटनी और ठेकाकरण की नीतियाँ और रेलवे कर्मचारियों पर बढ़ता काम का अमानवीय बोझ
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का बयान
उड़ीसा में तीन ट्रेनों के बीच दो जून की शाम को हुए दर्दनाक हादसे में कम से कम 260 लोगों की मौत हो गयी। घायलों की संख्या सैकड़ों में है। पिछले 20 वर्षों में यह सबसे भयंकर रेल दुर्घटना है। मोदी सरकार ने मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपये देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। मोदी ने घटनास्थल पर जाकर जो अश्लील नौटंकी की, उसे सबने देखा। लेकिन सवाल यह है कि इस हादसे के लिए कौन ज़िम्मेदार है? निश्चित तौर पर, विशेष स्वतन्त्र जाँच दल द्वारा यह बात सामने आयेगी ही कि किसी स्तर पर मानवीय चूक हुई है। बात वहीं समाप्त हो जायेगी। लेकिन इन मानवीय चूकों की बढ़ती बारम्बारता के पीछे कई ढाँचागत कारण ज़िम्मेदार हैं। इसलिए सवाल उन ढाँचागत कारकों का है।
नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद के 32 वर्षों में और ख़ास तौर पर मोदी सरकार के पिछले 9 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-18, 20-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। मार्च, अप्रैल और आधी मई में 12 घण्टे से ज़्यादा काम करने वाले इंजन ड्राइवरों की संख्या करीब 35 प्रतिशत थी। इसी प्रकार, लगातार 6-6 दिन रात की ड्यूटी करवाये जाने के कारण भी रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। 2021-22 से 2022-23 के बीच नुकसानदेह रेल दुर्घटनाओं की संख्या में 37 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्तरी हुई। मौजूदा साल में ही मामूली ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या 162 थी, जिनमें से 35 में काम के ज़्यादा बोझ के कारण होने वाली ‘सिग्नल पास्ड ऐट डेंजर’ वाली चूकें थीं। कई बार ड्राइवरों को बिना शौचालय विराम के 10-10 घण्टे तक काम करना पड़ता है।
तमाम समझौतापरस्त यूनियनें जो कि इस या उस चुनावी पार्टी से जुड़ी हैं, यह मसला उठाती ज़रूर हैं, मगर कभी इस पर कुछ करती नहीं हैं। इसी प्रकार सिग्नल प्रणाली में लगे स्टाफ़ को भी या तो बढ़ाया ही नहीं गया या पर्याप्त रूप में नहीं बढ़ाया गया। नतीजतन, वहाँ भी काम के बोझ के कारण त्रुटियों और चूकों की सम्भावना बढ़ जाती है। यही हाल ग्रुप सी व डी के रेलवे कर्मचारियों का भी है। 2015 से 2022 के बीच ग्रुप सी व डी के 72,000 पदों को रेलवे ने समाप्त कर दिया। इन्हीं श्रेणियों में इस समय रेलवे में करीब 3 लाख पद ख़ाली हैं। एक ओर रेलवे स्टेशनों, ट्रैकों की संख्या बढ़ रही है, वहीं पदों को कम कर और ठेकाकरण कर निजी कम्पनियों को मुनाफ़ा कूटने की आज़ादी दी जा रही है और रेलवे कर्मचारियों पर बोझ को बढ़ाया जा रहा है। यह मोदी सरकार की नीतियों का ही नतीजा है। 2021 से रेलवे ने हर तीसरे दिन एक रेलवे कर्मचारी की नौकरी ख़त्म की है। 2007-08 में रेलवे में 13,86,011 कर्मचारी थे। लेकिन आज यह संख्या 12 लाख के करीब आ गयी है। यानी करीब पौने दो लाख नौकरियों की कटौती। वहीं 2009 से 2018 के बीच रेलवे में ख़ाली होने वाले करीब 3 लाख पदों को नहीं भरा गया है। मोदी सरकार आने के बाद, 2014 में 60754 लोग रिटायर हुए लेकिन भर्ती हुई 31805 की। उसी प्रकार 2015 में 59960 कर्मचारी रिटायर हुए, लेकिन भर्ती हुई मात्र 15,191 की। 2016 में 53,654 सेवानिवृत्तियां हुईं जबकि भर्तियाँ हुईं मात्र 27,995। यही हाल उसके बाद के हर साल का भी रहा है। यह वही मोदी सरकार है जिसने हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वायदा किया था।
यानी, एक ओर रेलवे का नेटवर्क विस्तारित किया गया है, ट्रेनों व स्टेशनों की संख्या बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर रेलवे में कर्मचारियों की संख्या को लगातार कम करके मोदी सरकार मौजूदा कर्मचारियों पर काम के बोझ को भयंकर तरीके से बढ़ा रही है। ऐसे में, दुर्घटनाओं और त्रासदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की सम्भावना नैसर्गिक तौर पर बढ़ेगी ही। ऐसी जर्जर अवरचना के भीतर मोदी सरकार बुलेट ट्रेन के शेखचिल्ली के ख्वाब दिखा रही है, तो इससे बड़ा भद्दा मज़ाक और कुछ नहीं हो सकता। तात्कालिक तौर पर निश्चय ही ऐसी दुर्घटनाओं के लिए किसी व्यक्ति की चूक या ग़लती ज़िम्मेदार नज़र आ सकती है। लेकिन यह एक व्यवस्थागत समस्या है जिसके लिए मौजूदा मोदी सरकार की छँटनी, तालाबन्दी और ठेकाकरण की नीतियाँ और रेलवे को टुकड़ों-टुकड़ों में निजी धन्नासेठों के हाथों में सौंप देने की मोदी सरकार की योजना ज़िम्मेदार है। यह मोदी सरकार की पूँजीपरस्त और लुटेरी नीतियों का परिणाम है। इस बात को हमें समझना होगा क्योंकि सरकारें ऐसी त्रासदियों की ज़िम्मेदारी भी जनता पर डाल देती हैं और अपने आपको कठघरे से बाहर कर देती हैं।
इस तरह की दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या इतनी बड़ी होने के पीछे एक कारण यह भी है कि जनरल बोगियों में मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकशों की जनता को जानवरों और भेड़-बकरियों की तरह सफ़र करने पर मजबूर होना पड़ता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण श्रम प्रवासन भी है जिससे लोगों की आवाजाही अपनी जगहों से दूर काम ढूँढने के लिए बढ़ जाती है। क़ायदे से सरकार को रेलों और बोगियों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि हर कोई मानवीय, गरिमामय और आरामदेह स्थितियों में सफ़र कर सके। साथ ही, रोज़गार के अवसर भी लोगों के रहने के स्थान पर मुहैया कराए जाने चाहिए लेकिन मोदी सरकार तो प्रवासन के बाद भी नौकरियाँ ही समाप्त करने पर आमादा है। इस दुर्घटना के बाद जिस तरह से आम लोगों के शवों को जानवरों की तरह से ट्रकों में ठूँसकर ले जाया गया, वह किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने के लिए काफ़ी है।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने उड़ीसा ट्रेन दुर्घटना में मारे गये लोगों के परिजनों से इस घटना पर गहरा शोक व्यक्त करने के साथ ही मोदी सरकार से माँग की है कि:
- उड़ीसा ट्रेन दुर्घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए केन्द्रीय रेल मन्त्री अश्विनी वैष्णव इस्तीफ़ा दें।
- मृतकों के परिवारों को 10 लाख की खैरात देकर मोदी सरकार भद्दा मज़ाक बन्द करे और कम से कम रुपये 15 लाख मुआवज़ा और नौकरीशुदा या कमाने वाले सदस्य की मौत की सूरत में परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दे। साथ ही हादसे में घायल हुए व्यक्तियों को 5 लाख मुआवज़ा दे।
- रेलवे में निजीकरण, छँटनी तथा ठेकाकरण तत्काल बन्द किया जाये।
- नियमित प्रकृति के सभी कामों पर स्थायी भर्ती की जाये।
- सभी ख़ाली पदों पर तत्काल पक्की भर्ती की जाये।
- रेलवे लोको पाइलटों की बड़ी संख्या में भर्ती की जाये ताकि उन पर काम के अमानवीय बोझ को खत्म किया जा सके। इससे दुर्घटनाओं की सम्भावना कम होती जायेगी।
- रेलवे सिग्नलिंग तन्त्र और सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबन्द और सुचारु करने के लिए वहाँ भी बड़े पैमाने पर भर्तियाँ की जायें।
मज़दूर बिगुल, जून 2023
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