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(मज़दूर बिगुल के दिसम्बर 2016 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
मेहनतकश जन-जीवन पर पूँजी के चतुर्दिक हमलों के बीच गुज़रा एक और साल
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
नोटबन्दी – जनता की गाढ़ी कमाई से सरमायेदारों की तिजोरियाँ भरने का बन्दोबस्त / मुकेश त्यागी
नोटबन्दी और बैंकों के ‘‘बुरे क़र्ज़’’ / श्वेता
श्रम कानून
फासीवाद / साम्प्रदायिकता
फासीवाद की बुनियादी समझ बनायें और आगे बढ़कर अपनी ज़िम्मेदारी निभायें / कविता कृष्णपल्लवी
विशेष लेख / रिपोर्ट
अक्टूबर क्रान्ति की विरासत और इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रान्तियों की चुनौतियाँ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की जीत का मतलब क्या है? / शिवार्थ
समाज
शासक वर्गों द्वारा मेहनतकशों की जातिगत गोलबन्दी का विरोध करो! अपने असली दुश्मन को पहचानो! / अभिनव
16 दिसम्बर की बर्बर घटना के पाँच साल बाद बलात्कार पीड़िताओं को इंसाफ के झूठे वादे / रणबीर
शिक्षा और रोजगार
भारत में बढ़ रही बेरोज़गारी / सिकन्दर
गतिविधि रिपोर्ट
नोटबन्दी के विरोध में बिगुल मज़दूर दस्ता और जनसंगठनों का भण्डाफोड़ अभियान
कला-साहित्य
कविता – मसखरा / कविता कृष्णपल्लवी
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन