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रोज़ा लक्ज़मबर्ग की याद में

रोज़ा लक्ज़मबर्ग एक कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी थीं। उनको याद करते हुए लेनिन ने कहा था – “गरुड़ कभी-कभी मुर्गियों से नीची उड़ान भर सकते हैं। लेकिन मुर्गियाँ  कभी भी गरुड़ के बराबर ऊँचाई तक नहीं उठ सकती हैं। …अपनी ग़लतियों के बावजूद वह हमारे लिए गरुड़ थीं और रहेंगी। न केवल दुनियाभर के कम्युनिस्ट उनकी याद को ज़िन्दा रखेंगे बल्कि उनकी जीवनी और उनका पूरा काम पूरी दुनिया के कम्युनिस्टों की कई पीढ़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण सामग्री का काम करेंगे।”

उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग को निजी हाथों में सौंपने पर आमादा योगी सरकार

निजीकरण करने के पीछे बिजली विभाग के घाटे में होने का हवाला दिया जा रहा है लेकिन सच यह है कि बिजली विभाग के घाटे में होने के लिए सरकार की नीतियाँ ही ज़िम्मेदार हैं। उत्तर प्रदेश में निजी कम्पनियों से ऊँची दरों पर बिजली ख़रीदी जा रही है, जिसकी वजह से बिजली विभाग लगातार घाटे में जा रहा है। जाहिर है कि योगी सरकार की मंशा अपने आका पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाना है जिसके लिए वह उनकी कम्पनियों से ऊँचे दामों पर बिजली ख़रीद रही है और अब बिजली के वितरण की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं को सौंप कर जनता को लूटने की खुली छूट दे रही है। उत्तर प्रदेश में सबसे सस्ती बिजली राज्य सरकार की कम्पनियों से ख़रीदी जाती है जो लगभग 1 रुपये प्रति यूनिट की दर से मिलती है और सबसे महँगी बिजली प्राइवेट कम्पनियों से जो लगभग 6 रुपये प्रति यूनिट की दर से मिलती है! साफ़ है कि अगर सरकारी बिजली कम्पनियों को बढ़ावा दिया जाये और सरकारी विभागों को दुरुस्त किया जाये तो बिजली की लागत को बहुत कम किया जा सकता है और बिजली विभाग के घाटे को कम या बिलकुल समाप्त किया जा सकता है।

इतिहास को विकृत करने की संघी साज़िशें

फ़ासीवादी ताक़तें झूठे-मनगढ़न्त, अवैज्ञानिक और अतार्किक प्रचार के ज़रिए समाज में अपने आधार का विस्तार करती हैं। वे हर उस चीज़ का विरोध करती हैं और उन्हें नष्ट करने की कोशिश करती हैं जो उनके इस झूठ और अज्ञान पर आधारित दुष्प्रचार और मिथ्याकरण के ख़िलाफ़ समाज को तार्किक और वैज्ञानिक चेतना से लैस करती है। इतिहास के कूड़ेदान में फेंके गये जर्मनी और इटली के फ़ासिस्टों के कुकृत्य इसके साक्षी हैं।

उत्तर प्रदेश जनसंख्या विधेयक, 2021 – जनता के जनवादी अधिकारों पर फ़ासीवादी हमला

उत्तर प्रदेश कोरोना महामारी की रोकथाम और इलाज में देश में सबसे फिसड्डी राज्यों में साबित हुआ है। लोग दवा-अस्पताल और आक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते रहे, लाशें नदियों में बहती रहीं और बालू में दबायी जाती रहीं और सरकार सिर्फ़ झूठे दावों और जुमलेबाज़ी में लगी रही। लाखों ज़िन्दगियों को तबाह कर देने के बावजूद आज तक कोई ठोस तैयारी नहीं की गयी है जबकि महामारी की तीसरी लहर सिर पर है। प्रदेश में बेरोज़गारी के हालात भयानक हो चुके हैं।

एनआरएचएम के निविदा कर्मियों का संघर्ष

एनएचएम के संविदाकर्मी पिछले लम्बे समय से अपने अधिकारों के लिए आन्दोलनरत हैं। कर्मचारियों की माँग रही है कि अगर उनको उस काम के लिए वही वेतन दिया जाना चाहिए, जो उस काम को करने वाले नियमित प्रकृति के कर्मचारियों को मिलता है। इसके साथ ही साथ कर्मचारियों को मिलने वाली अन्य सुविधाएँ भी संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को मिलनी चाहिए। इसी दौरान पिछली 16 मई को उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुबन्ध समाप्त होने की बात कहकर 18 लोगों को एक झटके में काम से बाहर कर दिया। 23 मई से प्रदेश-भर में एनएचएम के संविदाकर्मियों ने ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा कर्मचारी संघ’ के बैनर तले अपनी पुरानी माँगों और इन कर्मचारियों के समर्थन में आन्दोलन की शुरुआत करते हुए प्रदेश-भर में कार्य बहिष्कार कर दिया। एनआरएचएम की शुरुआत के बाद से ही उसमें अपनी सेवाएँ दे रहे थे।