Category Archives: स्‍त्री विरोधी अपराध

दिल्ली में फिर एक लड़की के साथ बर्बरता : न्याय व सम्मान के लिए संगठित होकर लड़ना होगा

नये साल के पहले ही दिन दिल्ली में एक बार फिर एक लड़की कुछ दरिन्दों की हैवानियत का शिकार बनी। नये साल का जश्न मनाकर लौट रहे पैसे, मर्दानगी और शराब के नशे में धुत्त कुछ नरपशुओं ने एक लड़की की स्कूटी को टक्कर मारी और फिर अपनी कार के नीचे फँसे उसके शरीर को मीलों तक सड़कों पर तब तक घसीटते रहे जब तक उसके शरीर के चीथड़े नहीं उड़ गये। किसी स्त्री के साथ हैवानियत की कोई घटना हो और उसमें भाजपा से जुड़े किसी शख़्स का नाम नहीं आये, ऐसा अब केवल अपवादस्वरूप ही होता है। इस बार भी पता चला कि मनोज मित्तल नाम का एक छुटभैया भाजपा नेता और दलाल इसमें शामिल है।

बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों की रिहाई : भाजपा और संघ की बेशर्मी की पराकाष्ठा

2002 से लेकर अब तक कुछ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में न्याय का दरवाज़ा खटखटाने वालों को निराशा ही हासिल हुई है। अभी 24 जून 2022 को ज़ाकिया जाफ़री की याचिका ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। इतिहास के इस काले अध्याय में देश को शर्मसार करने वाला एक और अध्याय जुड़ गया है। 15 अगस्त को बिलकिस बानो बलात्कार और हत्या मामले के 11 अपराधियों को क्षमा दे कर रिहा कर दिया गया। बिलकिस बानो भी गुजरात नरसंहार की शिकार महिला है।

‘देह व्यापार’ स्त्रियों-बच्चों के विरुद्ध शोषण, हिंसा, असहायता और विकल्पहीनता में लिथड़ा पूँजीवादी मवाद है!

सर्वोच्च न्यायलय द्वारा 19 मई को वेश्यावृत्ति को वैध क़रार दिए जाने सम्बन्धी फ़ैसला दिया गया है जिसकी काफ़ी चर्चा हो रही है। इन फ़ैसले के तहत ‘देह व्यापार’ में लगी स्त्रियों के “पुनर्वास” को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं। साथ ही उक्त फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायलय ने वेश्यावृत्ति अथवा ‘देह व्यापार’ को एक “पेशा” य “व्यवसाय” माना है और कहा है कि पुलिस “अपनी इच्छा से” वेश्यावृत्ति कर रही “सेक्स वर्कर्स” के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाई न करे।

बुल्ली बाई और सुल्ली डील इस सड़ते हुए समाज में फैले ज़हर के लक्षण हैं

इस साल की शुरुआत में जहाँ एक ओर देशभर में लोग नये साल का जश्न मना रहे थे, वहीं देश में दूसरी ओर मानवता को शर्मसार कर देने वाली बेहद घिनौनी घटना घटी। सोशल मीडिया पर ‘बुल्ली बाई’ नाम के एक ऐप के ज़रिए कई मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाते हुए इस ऐप पर उनकी बोली लगायी गयी। उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें भद्दे रूप में पेश किया गया। इस पूरे प्रकरण में उन महिलाओं को निशाना बनाया गया, जो राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपना पक्ष रखती हैं, जो मौजूदा समाज में अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हैं।

फ़ासिस्टों के “रामराज्य” में स्त्रियों के विरुद्ध बढ़ते बर्बर अपराध

पिछले दिनों देश के गृहमंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था की तारीफ़ में बोल गये कि यहाँ आधी रात को कोई महिला गहने पहनकर निकल सकती है और उसे कुछ नहीं होगा! लेकिन कोई अन्धभक्त भी शायद ही इस जुमले को सही मानेगा। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में हत्याओं और बर्बर यौन हिंसा सहित तमाम तरह के अपराध बेरोकटोक जारी हैं। केवल पिछले चन्द हफ़्तों के भीतर उत्तर प्रदेश में और देश के कई राज्यों में स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों की जैसे बाढ़ आ गयी, मगर गृहमंत्री से लेकर संसद में ड्रामे करने वाली भाजपा की महिला सांसद शान्त हैं।

कोरोना काल में भी बदस्तूर जारी है औरतों के ख़िलाफ़ दरिन्‍दगी

कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से चोरी, लूटपाट जैसे कई क़िस्म के अपराधों में तो कुछ कमी आयी, लेकिन औरतों के ख़िलाफ़ होने वाले विभिन्न क़िस्म के अपराधों में कमी आना तो दूर, उल्‍टे वे बढ़े ही हैं। इस साल जुलाई के महीने में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा जारी की गयी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोना महामारी के दौरान औरतों द्वारा आयोग में की गयी शिकायतों में पहले की तुलना में 25 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

हाथरस और बलरामपुर जैसी बर्बरता का ज़ि‍म्‍मेदार कौन? मज़दूर वर्ग उससे कैसे लड़े?

हाथरस में एक मेहनतकश घर की दलित लड़की के साथ बर्बर बलात्कार और उसके बाद उसकी जीभ काटकर और रीढ़ की हड्डी तोड़कर उसकी हत्या कर दी गयी। इस भयंकर घटना ने हरेक संवेदनशील इन्सान को झकझोर कर रख दिया है। अभी इस घटना की पाशविकता और बर्बरता पर लोग यक़ीन करने की कोशिश ही कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर में भी ऐसी ही एक भयंकर घटना ने लोगों को चेतन-शून्य बना दिया। हर इन्सान अपने आप से और इस समाज से ये सवाल पूछ रहा है कि हम कहाँ आ गये हैं? क्यों बढ़ रही हैं ऐसी भयावह घटनाएँ? कौन है इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार? दुश्मन कौन है और लड़ना किससे है?

‘बच्चों का कारख़ाना’

पूँजीवाद अपने जन्मकाल से ही हर चीज़ को बिकाऊ माल में तब्दील करने की फ़‍िराक में रहता है। इंसानी रिश्‍ते-नाते और भावनाएँ तक ख़रीदफ़रोख्‍़त की चीज़ बन जाती हैं। लेकिन अब मुनाफ़े की अन्धी हवस में पूँजीवाद इतना गिर चुका है कि वह बच्चा पैदा करने की एक फ़ैक्टरी तक खोलने लगा है जिसमें महिलाओं और बच्चों की ख़रीदफ़रोख्‍़त होती है। नाइजीरिया के दक्षिणी-पश्चिमी राज्य आगन में ऐसी ही एक ‘बेबी फैक्ट्री’ हाल में पकड़ी गयी।

पुलिस हमारी रक्षक है या इस लुटेरी व्यवस्था की रक्षा में तैनात दमन-उत्पीड़न का हथियार?

हैदराबाद में पिछले महीने जिस युवा स्त्री डॉक्‍टर के साथ दरिन्दगी हुई, उसके परिजन जब मदद के लिए पुलिस के पास गये तो 10 घण्टे तक पुलिस उन्हें यहाँ-वहाँ दौड़ाती रही। चारों ओर से हो रही थू-थू के बीच अचानक ख़बर आयी कि पुलिस ने घटना के चारों आरोपियों को मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस की बतायी कहानी साफ़ तौर पर फ़र्ज़ी एनकाउण्टर की ओर इशारा कर रही थी मगर फिर भी देश में मध्यवर्गीय सफ़ेदपोशों के साथ ही प्रगतिशील माने जाने वाले अनेक बुद्धिजीवी भी पुलिस की शान में क़सीदे पढ़ते हुए पाये गये।

स्त्रियों के विरुद्ध जारी बर्बरता – निरन्तर और संगठित प्रतिरोध की ज़रूरत है

पिछले चन्‍द हफ़्तों के भीतर उत्तर प्रदेश में और पूरे देश में स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों की जो बाढ़ आ गयी वह हर नागरिक के लिए चिन्ता और ग़ुस्‍से का सबब है, मगर यह तो होना ही था।