दिल्ली में फिर एक लड़की के साथ बर्बरता : न्याय व सम्मान के लिए संगठित होकर लड़ना होगा
सत्यप्रकाश
नये साल के पहले ही दिन दिल्ली में एक बार फिर एक लड़की कुछ दरिन्दों की हैवानियत का शिकार बनी। नये साल का जश्न मनाकर लौट रहे पैसे, मर्दानगी और शराब के नशे में धुत्त कुछ नरपशुओं ने एक लड़की की स्कूटी को टक्कर मारी और फिर अपनी कार के नीचे फँसे उसके शरीर को मीलों तक सड़कों पर तब तक घसीटते रहे जब तक उसके शरीर के चीथड़े नहीं उड़ गये।
किसी स्त्री के साथ हैवानियत की कोई घटना हो और उसमें भाजपा से जुड़े किसी शख़्स का नाम नहीं आये, ऐसा अब केवल अपवादस्वरूप ही होता है। इस बार भी पता चला कि मनोज मित्तल नाम का एक छुटभैया भाजपा नेता और दलाल इसमें शामिल है। किसी अपराध में, और ख़ासकर स्त्रियों के विरुद्ध हुए किसी अपराध में भाजपा या संघ के किसी व्यक्ति का नाम आये और सरकारी तंत्र से लेकर मीडिया तक उसे बचाने और पीड़ित को ही बदनाम करने में न लग जायें, ऐसा तो कभी नहीं होता है। इस बार भी नहीं हुआ।
मित्तल का भाजपा से सम्बन्ध उजागर होते ही ख़बर आयी कि गृहमंत्री अमित शाह ने इस मामले में सीधी दिलचस्पी लेकर पुलिस से रिपोर्ट माँगी है। बस, अगले ही दिन से कार में सवार दरिन्दों के ख़िलाफ़ मामले को हल्का करने और उल्टे उस लड़की में तरह-तरह से खोट निकालने के कारनामे दिल्ली पुलिस और मीडिया के दल्लों ने शुरू कर दिये। अब कुछ चश्मदीद गवाहों के ज़रिए यह बात भी सामने आ चुकी है कि घटना की रात ही पुलिस ने घनघोर लापरवाही बरती थी और न सिर्फ़ बार-बार इस भयावह घटना की सूचना दिये जाने पर भी कुछ नहीं किया, बल्कि लड़की के शरीर को घसीटते हुए सड़कों पर चक्कर लगा रही कार को एक बार रोककर जाने भी दिया था!
इस घटना ने दिल्ली पुलिस और भाजपा सरकार के जनविरोधी चेहरे को ही नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के पाखण्डी चेहरे को भी एक बार फिर नंगा कर दिया है। सत्ताधारियों के घड़ियाली आँसू और दिखावटी शोक उनके चेहरों पर पुती कालिख को कभी धो नहीं सकते।
16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुई बर्बरता के बाद देशभर में उठी ग़ुस्से और शर्म की लहर के बावजूद बलात्कार, गैंगरेप और छेड़खानी की घटनाएँ कम होने के बजाय बढ़ती ही गयी हैं। हर दो मिनट पर देश में किसी-न-किसी स्त्री की इज़्ज़त पर हमला होता है! और इससे भी कहीं ज़्यादा मामलों की रिपोर्ट भी नहीं होती। घरों में, दफ़्तरों में, कारख़ानों-खेतों-खदानों में, रास्तों-बाज़ारों में, कभी भी, कहीं भी स्त्री सुरक्षित नहीं है। नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार आने के बाद के साढ़े आठ सालों में तो स्त्रियों के विरुद्ध अपराधों की न सिर्फ़ संख्या बढ़ी है बल्कि खुलकर और बेशर्मी के साथ ऐसे दरिन्दों का बचाव और पीड़ितों पर ही हमला करना आम बात हो गयी है!
आज ऐसे अपराधियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दिलाने और हमारी इन बहनों को इन्साफ़ दिलाने के लिए सड़कों पर उतरने के साथ ही हमें इस सवाल पर भी सोचना होगा कि स्त्रियों पर बर्बर हमलों की घटनाएँ इस क़दर क्यों बढ़ती जा रही हैं और इनके लिए कौन-सी ताक़तें ज़िम्मेदार हैं!
आज स्त्रियों पर हमला करने वाले आदमख़ोर भेड़ियों की तरह बेख़ौफ़ घूमते रहते हैं। हिफ़ाज़त के लिए बनी संस्थाएँ ही स्त्रियों की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी हैं। ऐसी हर घटना के बाद सरकार से लेकर सभी विपक्षी चुनावी पार्टियाँ तक जमकर घड़ियाली आँसू बहाती हैं। लेकिन यही पार्टियाँ हैं जो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में स्त्री-विरोधी अपराधों के सैकड़ों आरोपियों को टिकट देती हैं। हर चुनावी पार्टी में बलात्कार, भ्रष्टाचार, हत्या आदि के आरोपी भरे हुए हैं। लेकिन ऐसे अपराधियों का बेशर्मी से बचाव करने में भाजपा और संघ परिवार ने सबको पीछे छोड़ दिया है।
पिछले तीन दशकों से जारी आर्थिक नीतियों ने ‘खाओ-पियो ऐश-करो’ की संस्कृति में लिप्त एक नवधनाढ्य वर्ग पैदा किया है जिसे लगता है कि पैसे के बूते पर वह सबकुछ ख़रीद सकता है। पूँजीवादी लोभ-लालच और हिंस्र भोगवाद की संस्कृति ने स्त्रियों को एक ‘माल’ बना डाला है, और पैसे के नशे में अन्धे इस वर्ग के भीतर उसी ‘माल’ के उपभोग की उन्मादी हवस भर दी है। इन्हीं लुटेरी नीतियों ने एक आवारा, लम्पट, पतित वर्ग भी पैदा किया है जो पूँजीवादी अमानवीकरण की सभी हदों को पार कर चुका है। बार-बार स्त्रियों के साथ होने वाली नृशंसता इसकी गवाही देती है। इस सबको निरन्तर खाद-पानी देती है हमारे समाज के पोर-पोर में समायी पितृसत्तात्मक मानसिकता, जो स्त्रियों को भोग की वस्तु और बच्चा पैदा करने का यंत्रभर मानती है, और हर वक़्त, हर पल स्त्री-विरोधी मानसिकता को जन्म देती है। समाज में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए आगे बढ़ी स्त्री ऐसे लोगों की आँखों में खटकती है और वे उसे “सबक़ सिखाने” में जुट जाते हैं।
इस घटना में भी मीडिया से लेकर पुलिस तक यह सवाल उछाल रही है कि इतनी देर रात गये वह लड़की सड़क पर क्या कर रही थी। कोई यह नहीं पूछेगा कि दिन या रात को ऐसे नरपशुओं को सड़कों पर छुट्टा घूमने क्यों दिया जाता है।
आज सत्ता में वे ही लोग हैं जिन्होंने कुलदीप सिंह सेंगर से लेकर चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारियों-अपराध्यिों को बचाने में दिन-रात एक कर दिये थे। जम्मू में एक 8 वर्षीय बच्ची के बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन में इन्होंने रैलियाँ तक आयोजित की थीं। यह भी भूलना नहीं चाहिए कि 2002 में गुजरात में सैकड़ों मुस्लिम स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी हत्या करने वाले लोग यही थे। हाथरस में बलात्कार और हत्या की शिकार लड़की के अपराधियों को बचाने के लिए योगी सरकार ने आधी रात को ज़बरन उसकी लाश जलवा दी थी। इनके नारी सशक्तीकरण और बेटी-बचाओ के नारों के ढोल की पोल इस बात से खुल जाती है कि आज भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों की सूची में सबसे ऊपर पहुँच चुका है। जिन लोगों की विचारधरा में बलात्कार को विरोधियों पर विजय पाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता हो, जिस पार्टी का इतिहास ही बलात्कारियों को संरक्षण देने का रहा हो क्या उनसे हम स्त्रियों के लिए न्याय, सम्मान, सुरक्षा और आज़ादी की उम्मीद कर सकते हैं?
जब सत्ता में ही ऐसे फ़ासिस्ट विराजमान होंगे तो समाज में भी इनके द्वारा पोषित पितृसत्तात्मक पाशविकता और घोर स्त्री-विरोधी मानसिकता को बल मिलेगा। जिस पार्टी के 40 प्रतिशत से अधिक सांसदों, विधायकों के ऊपर बलात्कार, हत्या के गम्भीर मामले दर्ज हों उससे न्याय की उम्मीद करना हमारी बेवक़ूफ़ी ही होगी। न्याय और सम्मान के लिए हमें ख़ुद संगठित होकर आवाज़ उठानी होगी, लड़ना होगा।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2023
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