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देश में चल रही भूमण्डलीकरण की काली आंधी के बीच चुनावी मौसम में सरकार खुशनुमा बयार बहाने में जुटी

देश की अर्थव्यवस्था की सेहत भली–चंगी दिखाने वाले जिन चमत्कारी आंकड़ों की गवाही देकर जनता के भीतर खुशनुमा अहसास उड़ेले जा रहे हैं उसके फर्जीवाड़े को उजागर करने के लिए पूंजीवादी अर्थशास्त्र की बारीकियों में जाने की जरूरत नहीं। कोई भी दुरुस्त दिमाग वाला औसत समझ का आदमी आसानी से यह महसूस कर सकता है कि देश मे भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और खुलेपन के नाम पर कोई खुशनुमा बयार नहीं वरन आम जनता की ज़िन्दगी को तबाह–बर्बाद करने वाली काली आंधी चल रही है।