ग़रीबी, महँगाई, भ्रष्टाचार से छुटकारे का रास्ता – चुनाव नहीं, इंक़लाब है!
कांग्रेसी सरकार बने चाहे भाजपाई, क्षेत्रीय दलों और नक़ली लाल झण्डे वालों के साँझे मोर्चे की सरकार बने चाहे ”ईमानदारी” की क़समें खाने वाली ”आप” पार्टी की सरकार बने – सरकार तो जनता को लूटने-खसोटने वाले पूँजीपति धन्नासेठों की ही बननी है। इन चुनावों का खेल है ही ऐसा। लुटेरे पूँजीपति हमेशा जीतते हैं, जनता हमेशा हारती है। अंग्रेज़ों के जाने के बाद के पिछले 67 सालों में आज तक जितनी भी सरकारें बनती रही हैं बिना किसी अपवाद के अमीरों की यानी पूँजीपतियों की ही सरकारें थीं। और इस बार भी कुछ अलग नहीं होने वाला है। जिस समाज में कारख़ानों, खदानों, ज़मीनों, व्यापार, आदि तमाम आर्थिक संसाधनों और धन-दौलत पर मुट्ठीभर पूँजीपतियों का क़ब्ज़ा हो, उसमें चुनाव के ज़रिए जनता की सरकार बनने की उम्मीद पालना मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। पूँजी के बलबूते ही चुनाव लड़े और जीते जाते हैं। जनता से झूठे वादे करके, पूँजीवादी अख़बारों व टीवी चैनलों के ज़रिए अपने पक्ष में माहौल बनाकर, जनता को धर्म-जाति-क्षेत्र के नाम पर बाँटकर, दंगे करवाकर, वोटरों को खऱीदकर, नशे बाँटकर, बूथों पर क़ब्ज़े करके आदि हथकण्डों द्वारा चुनाव जीते जाते हैं। इन चुनावों में भी यही कुछ हो रहा है और पूँजीवादी व्यवस्था में यही हो सकता है।