Category Archives: क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 13 : पूँजीवादी उत्पादन: श्रम प्रक्रिया के रूप में और मूल्य-संवर्धन प्रक्रिया के रूप में

पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े का स्रोत बेशी मूल्य होता है और समूचे मूल्य के समान ही बेशी मूल्य भी मज़दूर वर्ग के श्रम से ही सृजित होता है, जिसे उत्पादन के साधनों पर अपने मालिकाने के बूते पूँजीपति वर्ग हस्तगत करता है। यह बेशी मूल्य मज़दूर द्वारा दिये गये बेशी श्रम या अतिरिक्त श्रम से पैदा होता है, जो वह उस आवश्यक श्रम को देने के बाद देता है, जिससे उसकी श्रमशक्ति के मूल्य के बराबर मूल्य पैदा होता है। इस सच्चाई को समझने के लिए जो कुंजीभूत कड़ी है वह है श्रमशक्ति के माल में तब्दील होने को समझना। इसके बिना आप पूँजीवादी उत्पादन पद्धति में आवश्यक श्रम और अतिरिक्त श्रम के बीच फ़र्क ही नहीं कर सकते हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 12 : मुद्रा का पूँजी में रूपान्तरण और पूँजीवादी माल उत्पादन

माल उत्पादन दास समाज व अन्य आरम्भिक वर्ग समाजों के गर्भ में ही पैदा हुआ और सामन्ती समाज के दौरान भी मौजूद रहा, लेकिन इन प्राक्-पूँजीवादी समाजों में वह उत्पादन का प्रधान रूप या पद्धति नहीं था। वह किसी अन्य उत्पादन पद्धति के मातहत था और उनमें सहयोजित था, जैसे कि दास उत्पादन पद्धति, सामन्ती उत्पादन पद्धति, आदि। श्रम के अधिकांश उत्पाद अभी माल नहीं बने थे। मसलन, सामन्ती समाज में श्रम के समस्त उत्पादों का बड़ा हिस्सा अभी माल नहीं बना होता है। भूदास व निर्भर किसान इस समय सामन्त की भूमि या सामन्त द्वारा आवण्टित भूमि पर खेती करते थे और उनके उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा उनसे बेशी उत्पाद (surplus product) के तौर पर या उनका बेशी श्रम सामन्तों द्वारा हड़प लिया जाता था।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 11 : स्वर्ण असमर्थित कागज़ी मुद्रा (फियेट मुद्रा) के विशिष्ट मार्क्सवादी नियम

पूँजीवादी उत्पादन में एक ऐसा दौर अपरिहार्य रूप से आता है जब उत्पादन और पूँजी का संचय एक ऐसी मंज़िल पर पहुँच जाता है जब सोने की मुद्रा या सोने में परिवर्तनीय अन्य धातुओं के सिक्कों या कागज़ी मुद्रा द्वारा उपस्थित सीमा एक बाधा बन जाती है। वजह यह है कि राज्यसत्ता व उसके मौद्रिक प्राधिकार अपने स्वर्ण रिज़र्व से बहुत अधिक मात्रा में अन्य परिवर्तनीय मौद्रिक प्रतीकों जैसे कि कागज़ी मुद्रा को जारी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि राज्यसत्ता इन प्रतीकों का वास्तविक सोने के साथ निश्चित विनिमय दर पर विनिमय की गारण्टी देती है, जो अगर पूरी न हो तो समाज में इन मौद्रिक प्रतीकों को स्वीकार ही नहीं किया जायेगा।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-10 : मालों का संचरण और मुद्रा

मुद्रा का विकास सामाजिक श्रम विभाजन और मालों के उत्पादन व विनिमय के विकास की एक निश्चित मंज़िल में होता है। जैसे-जैसे मानवीय श्रम के अधिक से अधिक उत्पाद माल बनते जाते हैं, वैसे-वैसे उपयोग-मूल्य और मूल्य के बीच का अन्तरविरोध तीखा होता जाता है क्योंकि परस्पर आवश्यकताओं का संयोग मुश्किल होता जाता है। हर माल उत्पादक के लिए उसका माल उपयोग-मूल्य नहीं होता है और वह सामाजिक उपयोग मूल्य होता है, जो तभी वास्तवीकृत हो सकता है यानी उपभोग के क्षेत्र में जा सकता है, जब उसका विनिमय हो, यानी वह मूल्य के रूप में वास्तवीकृत हो। लेकिन यह तभी हो सकता है, जब दूसरे माल उत्पादक को उस माल की आवश्यकता हो और पहले माल उत्पादक को दूसरे माल उत्पादक के माल की आवश्यकता हो। जैसे-जैसे अधिक से अधिक उत्पाद माल बनते जाते हैं, यह होना बेहद मुश्किल होता जाता है। इसी को हम उपयोग-मूल्य और मूल्य के बीच के अन्तरविरोध का तीखा होना कह रहे हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षणमाला – 9 : माल से मुद्रा तक

मुद्रा एक रहस्यमयी चीज़ होती है। यह जिसकी जेब में पर्याप्त मात्रा में होती है, वह अपने आपको शक्तिशाली और दुनिया का राजा महसूस करता है। लेकिन वह भी इससे डरता है, इसकी पूजा-अर्चना करता है कि यह उसकी जेब में बनी रहे। जिसके पास यह नहीं होती वह भी इसकी शक्तियों के सामने नतमस्तक होता है और मनाता रहता है उसकी जेब में भी लक्ष्मी का प्रवेश हो जाये। लेकिन आख़िर यह मुद्रा चीज़ क्या है? इसकी इस रहस्यमयी शक्ति के पीछे का रहस्य क्या है? इस बात को समझने के लिए भी हमें माल और माल उत्पादन को समझना होगा। हमें मूल्य और विनिमय-मूल्य के रिश्तों के बारे में समझना होगा। इस दिशा में कुछ शुरुआती क़दम हम उठा चुके हैं। अब आगे बढ़ते हैं। लेकिन इसके लिए संक्षेप में थोड़ा पीछे जाते हैं।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-8 : मार्क्स के आर्थिक चिन्तन के विकास के प्रमुख चरण

अभी तक हमने पढ़ा कि मूल्य का श्रम सिद्धान्त एडम स्मिथ से शुरू होकर डेविड रिकार्डो से होता हुआ किस प्रकार मार्क्स के वैज्ञानिक मूल्य के श्रम सिद्धान्त तक पहुँचा। हमने देखा कि पूँजीवादी समाज के अध्ययन की शुरुआत केवल माल से ही हो सकती है क्योंकि पूँजीवादी समाज में समृद्धि मालों के एक विशाल समुच्चय के रूप में प्रकट होती है। दूसरे शब्दों में, पूँजीवादी समाज में अधिक से अधिक वस्तुएँ और सेवाएँ माल में तब्दील होती जाती हैं। माल वह वस्तु है जो मानव श्रम से पैदा होता है और उसका उत्पादन विनिमय हेतु होता है। यानी माल का एक उपयोग-मूल्य होता है और एक विनिमय-मूल्य होता है।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-7 : मूल्य के श्रम सिद्धान्त का विकास: एडम स्मिथ, डेविड रिकार्डो और मार्क्स – 2 (डेविड रिकार्डो)

अब तक हमने क्लासिकीय राजनीतिक अर्थशास्त्र के पिता एडम स्मिथ के महत्वपूर्ण योगदानों और कमियों को देखा। हमने देखा कि किस प्रकार एक ओर एडम स्मिथ ने मूल्य का श्रम सिद्धान्त दिया और बताया कि हर माल का मूल्य उसमें लगे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष श्रम की मात्रा से तय होता है। दूसरे शब्दों में, हर माल का मूल्य उसमें लगे उत्पादन के साधनों के उत्पादन में ख़र्च हुए श्रम की मात्रा और स्वयं उस माल के उत्पादन में प्रत्यक्ष तौर पर लगे श्रम की मात्रा के योग से तय होता है। इस खोज को एडम स्मिथ के योग्य उत्तराधिकारी डेविड रिकार्डो ने राजनीतिक अर्थशास्त्र के सबसे अहम सिद्धान्तों में गिना। लेकिन एडम स्मिथ अपने इस सिद्धान्त को साधारण माल उत्पादन पर ही सुसंगत रूप में लागू कर सके, यानी माल उत्पादन के उस दौर पर जब अभी उत्पादन के साधनों का स्वामी स्वयं प्रत्यक्ष उत्पादक ही है; यानी, जब तक पूँजीवादी माल उत्पादन का दौर शुरू नहीं हुआ था।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-6 : मूल्य के श्रम सिद्धान्त का विकास : एडम स्मिथ, डेविड रिकार्डो और मार्क्स – 1

हर भौतिक चीज़ के विकास को ही नहीं बल्कि हर वैज्ञानिक सिद्धान्त के विकास को भी हमें ऐतिहासिक तौर पर समझना चाहिए। हमें कभी भूलना नहीं चाहिए कि कोई क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक विचार कहीं आसमान से नहीं टपकता। एक ओर वह सामाजिक व्यवहार के बुनियादी रूपों और उनके अनुभवों के समाहार के ज़रिए विकसित होता है, वहीं वह अपने समय तक की बौद्धिक प्रवृत्तियों के साथ एक आलोचनात्मक रिश्ता क़ायम करके ही विकसित हो सकता है। मार्क्स ने भी अपना वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी राजनीतिक अर्थशास्त्र किसी वैचारिक निर्वात में या शून्य में नहीं विकसित किया।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-5 : माल, उपयोग-मूल्य, विनिमय-मूल्य और मूल्य

मनुष्य के श्रम से पैदा होने वाली वस्तुओं की एक विशिष्टता होती है, उनका उपयोगी होना। वे किसी न किसी मानवीय आवश्यकता की पूर्ति करती हैं। अगर ऐसा न हो तो कोई उन्हें नहीं बनायेगा। उनके उपयोगी होने के इस गुण को हम उपयोग-मूल्य कहते हैं। उपयोग-मूल्य के रूप में वस्तुओं का उत्पादन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है, तब से जब मनुष्य ने पहली बार अपनी आवश्यकता के लिए प्रकृति को बदलकर वस्तुओं को बनाना या पैदा करना शुरू किया था, यानी उत्पादन शुरू किया था। किसी चीज़ का उपयोग-मूल्य कोई पहले से दिया गया प्राकृतिक गुण नहीं होता है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सामाजिक गुण होता है।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-4 : सामाजिक अधिशेष के उत्पादन की शुरुआत और सामाजिक श्रम-विभाजन तथा वर्गों का उद्भव

पूँजीवादी समाज में पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत और मज़दूर वर्ग के शोषण को समझने के लिए हमें कुछ अन्य बातों को समझना होगा, मसलन, सामाजिक अधिशेष, सामाजिक श्रम विभाजन और वर्गों का उद्भव। इन बातों को समझने के साथ हमारे लिए मज़दूर वर्ग के शोषण और पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े के स्रोत को समझना आसान हो जायेगा। इसलिए हम इन मूलभूत अवधारणाओं से शरुआत करेंगे।
आदिम काल में जब मनुष्य क़बीलों में रहता था, तो उसकी उत्पादक शक्तियों के विकास का स्तर बेहद निम्न था।