क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला – 15 : सापेक्षिक बेशी मूल्य का उत्पादन
मशीनों के आने के साथ न सिर्फ कार्यदिवस पहले से लम्बा हो गया बल्कि श्रम की सघनता में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई। वजह यह थी कि अब उत्पादन प्रक्रिया में मौजूद छोटे-छोटे अन्तराल अब न्यूनातिन्यून होते जाते हैं। मज़दूर मशीन का विस्तार बन जाता है और निरन्तर काम करता रहता है। नतीजतन, पूँजीवाद के दौर में मशीन मज़दूर के काम को आसान बनाने की जगह उसे ज़्यादा श्रमसाध्य, थकाऊ और लम्बा बनाती है। केवल एक समाजवादी व्यवस्था में मशीनीकरण वास्तव में मज़दूर वर्ग के काम को अधिक से अधिक आसान, सुगम और छोटा बना सकती है। उस समय मशीन की गति और लय पर नियन्त्रण किसी शत्रु वर्ग का नहीं होता है, बल्कि स्वयं मज़दूर वर्ग का होता है। मज़दूर वर्ग के अलगाव के समाप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और यदि वह सफलतापूर्वक आगे बढ़ती है तो मशीनीकरण और उत्पादक शक्तियों में होने वाली हर तरक्की मज़दूर वर्ग के जीवन स्थितियों और कार्यस्थितियों को पहले से बेहतर बनाती जाती है। लेकिन पूँजीवाद में इसका ठीक उल्टा होता है, जैसा कि आज हम अपने चारों ओर देख सकते हैं।