Category Archives: क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-3 : कुछ बुनियादी अवधारणाएँ जिन्हें समझना ज़रूरी है – 2

पिछली बार हमने कुछ बेहद बुनियादी अवधारणाओं को समझने के साथ शुरुआत की थी, मसलन, उत्पादक शक्तियाँ, उत्पादन सम्बन्ध, मूलाधार या आर्थिक आधार, अधिरचना, इत्यादि। साथ ही, हमने यह भी समझा था कि आर्थिक आधार में निहित बुनियादी अन्तरविरोध क्या है, अधिरचना में निहित बुनियादी अन्तरविरोध क्या है और साथ ही आर्थिक आधार और अधिरचना के बीच का अन्तरविरोध किस प्रकार समूचे मानव समाज की गति को व्याख्यायित करता है।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-2 : कुछ बुनियादी बातें जिन्हें समझना ज़रूरी है – 1

किसी भी समाज की बुनियाद में मनुष्य के जीवन का भौतिक उत्पादन और पुनरुत्पादन होता है। यदि मनुष्य जीवित होगा तो ही वह राजनीति, विचारधारा, शिक्षा, कला, साहित्य, संस्कृति, वैज्ञानिक प्रयोग, खेल-कूद और मनोरंजन जैसी गतिविधियों में संलग्न हो सकता है। मनुष्य अपने जीवन के भौतिक उत्पादन और पुनरुत्पादन के प्रकृति के साथ एक निश्चित सम्बन्ध बनाता है और उसका रूपान्तरण कर उसके संसाधनों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालता है। इस गतिविधि को ही हम उत्पादन कहते हैं। मनुष्य के भौतिक जीवन के पुनरुत्पादन के लिए उपयोगी वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन करने के लिए मनुष्य प्रकृति को रूपान्तरित करता है। यह मनुष्य का उत्पादन के लिए, यानी अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप, प्रकृति के रूपान्तरण का संघर्ष है।

क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-1 : मज़दूरी के बारे में

हम मज़दूर जानते हैं कि मज़दूरी की औसत दर में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन ये उतार-चढ़ाव एक निश्चित सीमा के भीतर होते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर मज़दूरी में आने वाले उतारों-चढ़ावों के मूलभूत कारण क्या होते हैं और उसकी अन्तिम सीमाएँ कैसे निर्धारित होती है। लेकिन शुरुआत हम कुछ बुनियादी बातों से करेंगे।