Category Archives: आर्काइव

फरवरी 2015

  • दिल्ली में ‘आम आदमी पार्टी’ की अभूतपूर्व विजय और मज़दूर आन्दोलन के लिए कुछ सबक
  • देश की 50 फ़ीसदी युवा आबादी के सामने क्या है राजनीतिक-आर्थिक विकल्प?
  • पंजाब में चुनावी पार्टियों की नशा-विरोधी मुहिम का ढोंग
  • उत्तर-पूर्व की उत्पीड़ित राष्ट्रीयताएँ और दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता
  • केजरीवाल की राजनीति और भविष्‍य की सम्‍भावनाओं पर कुछ बातें
  • अमेरिका व भारत की “मित्रता” के असल मायने
  • सेज़ के बहाने देश की सम्पदा को दोनो हाथों से लूटकर अपनी तिज़ोरी भर रहे हैं मालिक!
  • कोल इण्डिया लिमिटेड में विनिवेश
  • कॉरपोरेट जगत की तिजोरियाँ भरने के लिए जनहित योजनाओं की बलि चढ़ाने की शुरुआत
  • साम्प्रदायिक फासीवाद के विरोध में कई राज्यों में जुझारू जनएकजुटता अभियान
  • कुछ सीधी-सादी समाजवादी सच्चाइयाँ
  • जनवरी 2015

  • पूँजीवादी नंगी लूट के विरोध को बाँटने-तोड़ने के लिए साम्प्रदायिक खेल शुरू!
  • प्रवासी स्त्री मज़दूर: घरों की चारदीवारी में क़ैद आधुनिक ग़ुलाम
  • मुनाफ़े की व्यवस्था में बेअसर हो रही जीवनरक्षक दवाएँ
  • इस बार अरविन्द केजरीवाल और ‘आम आदमी पार्टी’ वाले ठेका मज़दूरों का मुद्दा क्यों नहीं उठा रहे हैं?
  • कोयला ख़ान मज़दूरों के साथ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की घृणित ग़द्दारी
  • स्तालिन कालीन सोवियत संघ के इतिहास के कुछ तथ्य और नये खुलासों पर एक नज़र
  • पुलिसकर्मियों में व्याप्त घनघोर स्त्री-विरोधी विचार
  • अमेरिकी सत्ताधारियों के पापों का बोझ ढोते सैनिक
  • ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड – गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ के खि़लाफ़ विशाल लामबन्दी, जुझारू संघर्ष
  • औद्योगिक कचरे से दोआबा क्षेत्र का भूजल और नदियाँ हुईं ज़हरीली
  • क्यों असफ़ल हुआ अस्ति मज़दूरों का साहसिक संघर्ष?
  • दिसम्‍बर 2014

  • साम्राज्यवादी संकट के समय में सरमायेदारी के सरदारों की साज़िशें और सौदेबाज़ियाँ और मज़दूर वर्ग के लिए सबक
  • मोदी सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को औने-पौने दामों में निजी पूँजीपतियों को बेचने के लिए कमर कसी
  • निवेश के नाम पर चीन के प्रदूषणकारी उद्योगों को भारत में लगाने की तैयारी
  • फ़ॉक्सकॉन के मज़दूरों का नारकीय जीवन
  • मोदी सरकार के अगले साढ़े-चार वर्षों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य-विश्लेषण आधारित कुछ भविष्यवाणियाँ!
  • जनता को तोपें और बमवर्षक नहीं बल्कि रोटी, रोज़गार, सेहत व शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें चाहिए
  • पाखण्ड का नया नमूना रामपाल: आखि़र क्यों पैदा होते हैं ऐसे ढोंगी बाबा?
  • 1984 के ख़ूनी वर्ष के 30 साल – अब भी जारी हैं योजनाबद्ध साम्प्रदायिक दंगे और औद्योगिक हत्याएँ
  • अक्‍टूबर 2014

  • दोनों हाथ मज़दूर को लूटो, बोलो ‘श्रमेव जयते’!
  • अमीर और ग़रीब के बीच बढ़ती खाई से दुनिया भर के हुक़्मरान फ़ि‍क्रमन्द – आखि़र ये माजरा क्या है?
  • मक्सिम गोर्की की कहानी – करोड़पति कैसे होते हैं
  • मोदी सरकार का नया तोहफ़ा: जीवनरक्षक दवाओं के दामों में भारी वृद्धि
  • निठारी काण्ड का फैसला: पूँजीवादी व्यवस्था में ग़रीबों-मेहनतकशों को इंसाफ़ मिल ही नहीं सकता
  • नरेन्द्र मोदी का “स्वच्छ भारत अभियान” : जनता को मूर्ख बनाने की नयी नौटंकी
  • कश्मीर में बाढ़ और भारत में अंधराष्ट्रवाद की आँधी
  • हर देश में अमानवीय शोषण-उत्पीड़न और अपमान के शिकार हैं प्रवासी मज़दूर
  • छात्र-युवा आन्दोलन में नया उभार और भविष्य के संकेत